सेबी ने सबूतों के अभाव में NSE और इसके पूर्व एग्जिक्यूटिव्स के खिलाफ को-लोकेशन केस खत्म किया – sebi dismisses colocation case against nse and former executives due to lack of evidence

मार्केट रेगुलेटर सेबी ने NSE की को-लोकेशन सर्विसेज के मामले में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE), रवि नारायण, चित्रा रामकृष्ण, आनंद सुब्रमणियन और अन्य के खिलाफ कार्यवाही खत्म कर दी है। सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ने इस सिलसिले में 13 सितंबर को जारी आदेश में कहा, ‘इस बात में कोई दो राय नहीं है कि को-लोकेशन फैसिलिटी के इस्तेमाल को लेकर NSE के पास पहले से कोई तय पॉलिसी नहीं थी।’

सेबी का कहना था, ‘यह TMs द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे सेकेंडरी सर्वर की मॉनिटरिंग करने में भी नाकाम रही है, जबकि इसकी कोई ठोस वजह नहीं थी। NSE ने TMs को को-लोकेशन सुविधा उपलब्ध कराते वक्त वेलकम ईमेल जारी करने के बारे में जो दलील दी थी, वह शुरुआती रेगुलेटर के तौर पर इसकी भूमिका के हिसाब से सही नहीं है।’ इस ऑर्डर में कहा गया है, ‘ सही मॉनिटरिंग के बिना गाइडलाइंस जारी करना ड्यू डिलिजेंस की कमी को दिखाता है।’

हालांकि, आदेश में स्पष्ट किया गया है कि ये निष्कर्ष यह साबित नहीं करते कि OPG और इसके डायरेक्टर्स के साथ NSE और इसके सीनियर मैनेजमेंट की साठगांठ थी। NSE के पूर्व VC रवि नारायण और पूर्व CEO चित्रा रामकृष्णन केस में आरोपी थे। NSE को-लोकेशन केस में कोई निर्देश जारी नहीं किया है।

कब शुरू हुआ था मामला

यह मामला 30 अप्रैल 2019 के सेबी के आदेश से शुरू हुआ, जिसमें NSE की को-लोकेशन फैसिलिटी से संबंधित मुद्दों को एड्रेस किया गया था। यह एक ऐसा सिस्टम है जो ट्रेडिंग मेंबर्स को एक्सचेंज के डेटा सेंटर में अपने सर्वर को को-लोकेट करने की अनुमति देता है। SAT ने जनवरी 2023 के अपने फैसले में कई अपीलों का मूल्यांकन किया, जिनमें NSE और रवि नारायण और चित्रा रामकृष्ण जैसे व्यक्तियों द्वारा दायर की गई अपीलें भी शामिल थीं। ट्रिब्यूनल की समीक्षा में OPG सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड और उसके डायरेक्टर भी शामिल थे, जिन्होंने SEBI के पहले के प्रतिबंधों को चुनौती दी थी।

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