Teachers Day 2024 Dohe in Hindi Best Kabir Ke Dohe Arth Sahit Shikshak Diwas meaning in Hindi

Teachers Day 2024 Dohe: किसी व्यक्ति की सफलता का श्रेय गुरु हैं. गुरु ज्ञान के प्रकाश से ही अज्ञानता का अंधकार दूर होता है और व्यक्ति सफलता हासिल करता है. गुरु ही सफल जीवन की नींव रखते हैं. इसलिए गुरु ज्ञान के बिना सफल जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

भारत में शिक्षक दिवस ( Shikshak Diwas) हर साल 5 सितंबर को मनाया जाता है. इस दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) की जयंती होती है और साथ ही यह शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का भी दिन होता है.

बचपन से ही हमें शिक्षकों के बारे में बताया जाता है. लेकिन गुरु पर आधारित कबीर दास के ये (Kabir ke dohe) दोहे व्यर्थ जीवन में शिक्षक के अर्थ को गहराई से समझाते हैं. आइये जानते हैं शिक्षक दिवस पर कबीर दास के दोहे अर्थ सहित-

शिक्षक दिवस पर कबीर दास के दोहे (Kabir Das Dohe Meaning in Hindi)


Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥

इस दोहे में कबीर दास गुरु शिष्य के महाबंधन का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, गुरु की तरह कोई दाता नहीं और शिष्य की तरह कोई याचक नहीं. गुरु ने त्रिलोक की संपत्ति से बढ़कर ज्ञान और दान दे दिया.

Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपणै, गोविन्द दियो बताय।।

इस दोहे का अर्थ है कि, अगर जीवन में कभी ऐसी स्थिति आ जाए जब आपके सामने गुरु और गोविंद (ईश्वर) दोनों सामने खड़े हों, तो गुरु के सामने ही शीश झुकाना चाहिए. क्योंकि गुरु ही हमें गोविंद से परिचय कराते हैं. इसलिए गुरु का स्थान गोविंद से भी ऊंचा है.

Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

तीन लोकों भय नाहिं…

गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं॥

कबीर दास कहते हैं कि, गुरु को सदैव अपना सिर मुकुट मानकर उनकी आज्ञा का पालन करें. ऐसा करने वाले शिष्य या सेवकों को तीनों लोकों का भय नहीं रहता.
Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥

कबीर दास कहते हैं कि, जिस तरह पारस के स्पर्श से पत्थर भी सोना बन जाता है, ठीक वैसे ही गुरु की शरण में साधारण या अज्ञानी व्यक्ति भी महान बन जाता है.

Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय, 
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय। 

कबीर कहते हैं कि, मान लो यह पूरी धरती एक कोरे कागज की तरह है और जंगल की सारी लकड़िया कलम. सातों समुद्र का जल स्याही है. फिर भी इन सभी को मिलाकर गुरु का बखान करना असंभव है, क्योंकि गुरु की महिमा को शब्दों को नहीं पिरोया जा सकता.

Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, 
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।

अपने इस दोहे में कबीर दास शिष्य की तुलना विष की बेल और गुरु की तुलना अमृत की खान से करते हुए कहते हैं कि, गुरु का ज्ञान और महिमा इतनी बेशकीमती है कि शिष्य अगर अपना शीश (सिर) भी कलम करके गुरु की कृपा पा जाए तो यह सस्ता सौदा होगा.

Teachers Day 2024 Dohe: गुरु समान दाता नहीं...शिक्षक की महिमा का बखान करते हैं कबीर दास के ये दोहे

गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥

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