IMA (भारतीय चिकित्सा संघ) के एक सर्वे में ये चौंकाने वाली बात सामने आई है कि देशभर के डॉक्टर, खासकर महिला डॉक्टर, रात की ड्यूटी में खुद को बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इस सर्वे में 22 से ज्यादा राज्यों के 3,885 डॉक्टरों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 85 प्रतिशत की उम्र 35 साल से कम थी. इनमें से 61 प्रतिशत डॉक्टर प्रशिक्षु या पोस्टग्रेजुएट थे. कुछ एमबीबीएस कोर्स में 63 प्रतिशत महिलाएं थीं, जो लिंग अनुपात के हिसाब से सही था.
महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर चिंता
यह सर्वेक्षण कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए कथित बलात्कार और हत्या के बाद डॉक्टरों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को समझने के लिए किया गया था. सर्वे के नतीजे बताते हैं कि लगभग एक तिहाई डॉक्टर खुद को असुरक्षित (24.1 प्रतिशत) या बहुत असुरक्षित (11.4 प्रतिशत) महसूस करते हैं. खासकर महिलाओं में असुरक्षा की भावना ज्यादा पाई गई. 20-30 साल के उम्र के डॉक्टरों, जो अधिकतर प्रशिक्षु और पोस्टग्रेजुएट हैं, में सुरक्षा का सबसे ज्यादा अभाव था. हालत इतनी खराब है कि कुछ डॉक्टरों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार रखने की जरूरत तक महसूस होती है.
ड्यूटी रूम की कमी और खराब स्थिति
सर्वे में ये भी सामने आया कि 45 प्रतिशत डॉक्टरों के पास ड्यूटी रूम नहीं होता. जिनके पास होता भी है, वो भीड़भाड़ वाला, गोपनीयता की कमी वाला और सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा होता है. कुछ ड्यूटी रूम में तो बाथरूम भी नहीं होता, जिससे डॉक्टरों को रात में बाहर जाना पड़ता है, जो उनकी सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है.
डॉक्टरों के सुरक्षा सुझाव
डॉक्टरों ने अपनी सुरक्षा को लेकर कुछ सुझाव दिए हैं, जैसे कि अस्पतालों में ज्यादा प्रशिक्षित सुरक्षा गार्ड की तैनाती, सीसीटीवी कैमरे लगाना, बेहतर रोशनी की व्यवस्था करना और सुरक्षित ड्यूटी रूम उपलब्ध कराना.
प्रशासन की लापरवाही
सर्वे में यह भी पता चला कि डॉक्टरों की सुरक्षा चिंताओं को प्रशासन गंभीरता से नहीं ले रहा है. कई बार प्रशासन यह कह देता है कि सीनियर डॉक्टर भी ऐसी ही स्थितियों में काम करते हैं, जिससे जूनियर डॉक्टरों की परेशानियों को अनदेखा किया जाता है.
सुरक्षा कानून की मांग
डॉक्टरों ने मांग की है कि देशभर के अस्पतालों में हवाईअड्डों जैसी सुरक्षा व्यवस्था की जाए और एक केंद्रीय सुरक्षा कानून लागू किया जाए, ताकि डॉक्टरों का कार्यस्थल सुरक्षित हो और वे बेहतर तरीके से मरीजों की देखभाल कर सकें. IMA ने कहा कि इस सर्वे के नतीजों से बड़े नीतिगत बदलाव हो सकते हैं, और कोलकाता की घटना के बाद सरकार इन मुद्दों पर पहले से ही विचार कर रही है.
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