Guru Purnima 2024 celebration reason Know introduction on this day from Sri Sri Ravi Shankar

Guru Purnima 2024: लोक-परंपरा के अनुसार गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु और शिष्य के लिए खास होता है. आज के दिन शिष्य अपने गुरु के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं. व्रत चंद्रिका अध्याय क्रमांक 12 के अनुसार, आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान वेद व्यास की स्मृति में गुरु पूर्णिमा के रूप मनाई जाती है.

महाभारत आदि पर्व 104.15 के अनुसार वेद व्यास ने 4 वेदों (Vedas), ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद की व्याख्या की थी इसलिए उन्हें ‘व्यास’ की उपाधि दी गई है और चूंकि उनका रंग काला था इसलिए उन्हें कृष्ण कहा जाता है. 
 
वेद व्यास को द्वैपायन क्यों कहा जाता है?

महाभारत आदि पर्व 63.86 के अनुसार, वेद व्यास (Ved Vyas) को इस दौरान यमुना द्वीप पर छोड़ दिया गया था, इसलिए उनका नाम द्वैपायन रखा गया. उनको प्रथम गुरुओं में से एक माना गया है इसलिए यह परंपरा है कि इस दिन हमें अपने जीवन में आए सभी गुरुजनों की पूजा करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए.

गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास रखने वालों के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन बहुत महत्वपूर्ण है. कल्पभेद के अनुसार देखा जाए तो नारायण को आदिगुरु माना जाता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा भगवान नारायण (Lord Vishnu) के काल से चली आ रही है.

आदिकाल से ही भारतवर्ष में सद्गुरुओं और ब्रह्मज्ञानियों ने हमारी संस्कृति में स्थापित भौतिक तथा आध्यात्मिक कई विषयों पर उपलब्ध उच्चतम ज्ञान को संरक्षित रख कर मानवता के कल्याण के लिए उसे आगे बढ़ाने का कार्य किया है. उन्हें स्मरण करने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की यह परंपरा भी प्राचीन काल से ही चली आ रही है जिस हम गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते है. 

इसी गुरु-शिष्य परंपरा के कारण ही हमारे देश की प्रत्येक संस्कृति में यह सुनिश्चित हो पाया कि उन्हें तथा आने वाली पीढ़ियों को ऐसा ज्ञान मिलता रहा जिससे मानव कल्याण के लिए उच्च कोटि का ज्ञान अर्जित करने तथा मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के सूत्र उपलब्ध होते रहे. गुरु परंपरा के प्रत्येक गुरुओं ने इस शाश्वत ज्ञान को अपने समय की पीढ़ियों की आवश्यकता अनुसार सरल तथा सार्थक रूप में प्रस्तुत किया है.

श्री श्री रविशंकर के अनुसार, आचार्य और गुरु में भेद है. एक अध्यापक कुछ विषयों के बारे में सूचना मात्र ही देते हैं जबकि गुरु तो अपने शिष्य के जीवन का कायाकल्प ही कर देते हैं. गुरु सच्चे साधकों के साथ आध्यात्मिक ज्ञान को बांटते हैं और भक्त को पूर्णता और मुक्ति के उनके अंतिम लक्ष्य तक ले कर जाते हैं.

हमारे ग्रंथ उसी परंपरा से निकले हैं. पारंपरिक रूप से हर युग में आए हमारे गुरुओं का व्यक्तित्व प्रभावशाली और विलक्षण गुणों से ओतप्रोत रहा है. इस दिन उनका स्मरण करने मात्र से हम उनके गुणों को अपने भीतर अनुभव कर पाते हैं, भले ही यह अल्पावधि के लिए ही हो.

ये भी पढ़ें: Lakshmi Puja: लक्ष्मी पूजन की सही विधि के बिना धन की देवी को प्रसन्न करना मुश्किल

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

Read More at www.abplive.com