बाबरी मस्जिद विध्वंस के 31वीं बरसी पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ये दिन देश के लिए काला दिन है. बाबरी मस्जिद का फैसला आस्था की बुनियाद पर था. उन्होंने कहा, ‘जिस दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के क़त्ल के बाद दिल्ली की सड़कों पर सिखों का खून की होली खेली गई, वो मुल्क के लिए काला दिन था. जिस वक्त 2002 में गुजरात और अहमदाबाद में फसादात हुए, वो एक यौम-ए-सियाह था.’
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाए सवाल
ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद नहीं बनाई गई.’
ओवैसी ने बाबरी मस्जिद ध्वंस मामले में आरोपियों के बरी होने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, ‘आज जब हम ये देखते हैं कि क्रिमिनल कोर्ट का फैसला आता है बाबरी मस्जिद के शहादत के जितने मुल्ज़िमीन जिन पर इल्ज़ाम लगाया गया था, कोर्ट ने उन तमाम को बरी कर दिया. सवाल ये पैदा होता है कि फिर 6 दिसंबर 1992 को फिर किसने मस्जिद को शहीद किया था?’
ओवैसी ने धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए 1991 के ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ का उल्लेख करते हुए कहा, ‘आज आप देखते हैं कि 1991 प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट होने के बावजूद भी कई मसाजिद के ऊपर केस पड़ जाते हैं.’
हम आईन को मजबूत रखें: ओवैसी
उन्होंने आगे कहा, ‘हमको जितनी अल्लाह ने हम तमाम को सलाहियत दी है, हम आइन को मज़बूत रखें, क़ानून की बालादस्ती को बरक़रार रखें या रूल ऑफ लॉ को बरक़रार रखें. ऐसी ताक़तों को पहचानें जो मुल्क के आईन को, इंसाफ़ को कमज़ोर करना चाहते हैं.’
अपने भाषण में ओवैसी ने भारत की धर्मनिरपेक्ष पहचान पर जोर देते हुए कहा, ‘याद रखिए, इस मुल्क का कोई मज़हब नहीं है. ये मुल्क तमाम मज़हब के मानने वालों का है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर कोई ये कहेगा कि ये मुल्क एक मज़हब का है, तो फिर याद रखिए, हम उन अज़ीम आज़ादी के मुजाहिदीन की कुर्बानी को रायगा जाने देंगे, क्योंकि उस वक़्त हिन्दू-मुसलमानों ने मिलकर, सिखों ने, ईसाइयों ने मिलकर अंग्रेज़ों से इस मुल्क को आज़ाद करवाया था.’
ओवैसी ने संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें स्वतंत्रता, समानता, न्याय और भ्रातृत्व के मूल्यों का उल्लेख है, जो किसी एक धर्म की बात नहीं करते.
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