नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के राज्य भीषण प्रदूषण की चपेट में हैं। जहरीले स्मॉग की चादर ने महानगरों को ढक रखा है जो कम होने के बजाय लगातार गहरी होती जा रही है। सरकार की तमाम कोशिशें विफल साबित हो रही हैं और मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने भी एक लेख में प्रदूषण पर चिंता जताई है और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं।
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उन्होंने लिखा कि अब मोदी सरकार ने इन पहाड़ियों के लिए लगभग एक तरह से ‘डेथ वारंट’ जारी कर दिया है, जो पहले से ही अवैध खनन के चलते काफी हद तक उजड़ चुकी हैं। सरकार ने यह घोषित कर दिया है कि अरावली की जिन पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर से कम है, उन पर खनन से जुड़े सख्त नियम लागू नहीं होंगे।
सोनिया गांधी ने लिखा कि सरकार का यह फैसला अवैध खनन करने वालों और माफियाओं के लिए खुला न्योता है, क्योंकि इससे पर्वतमाला का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा, जो सरकार की ओर से तय की गई ऊंचाई की सीमा से नीचे आता है, पूरी तरह बर्बाद किया जा सकता है।
‘स्मॉग की समस्या सार्वजनिक स्वास्थ्य त्रासदी’
उन्होंने लिखा कि अरावली के उत्तरी छोर पर स्थित राष्ट्रीय राजधानी इस महीने अपनी हर साल की स्मॉग की समस्या से जूझ रही है। धूल, धुएं और बारीक कणों की धुंध लाखों लोगों पर छा गई है, जो रोजमर्रा की ज़िंदगी में इस जहरीली हवा को सांसों के साथ भीतर ले रहे हैं। भले ही स्मॉग अब हमारी सालाना दिनचर्या का हिस्सा बन चुका हो, लेकिन शोध लगातार यह दिखा रहे हैं कि यह एक धीमी गति से चल रही, बड़े पैमाने की सार्वजनिक स्वास्थ्य त्रासदी है।
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‘भूजल नमूनों में मिला यूरेनियम’
सोनिया गांधी ने लिखा कि अनुमानों के मुताबिक, सिर्फ 10 शहरों में ही हर साल इस वायु प्रदूषण के कारण करीब 34,000 लोगों की मौत हो जाती है। ये अलग-अलग घटनाएं नहीं हैं। पिछले हफ्ते खबरों में एक और गंभीर त्रासदी सामने आई। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में जांचे गए 32 प्रतिशत भूजल नमूनों में पीने योग्य सीमा से ज्यादा यूरेनियम पाया गया है। शर्मनाक बात यह है कि पंजाब और हरियाणा के पानी के नमूनों में इससे भी अधिक यूरेनियम प्रदूषण सामने आया है। ऐसे दूषित पानी का रोजमर्रा के कामों में लगातार इस्तेमाल करने से लोगों की सेहत पर कितने खतरनाक असर पड़ सकते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है।
‘सरकार के दबाव से मुक्त हो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’
उन्होंने लिखा कि नीति स्तर पर हमें पिछले एक दशक में किए गए उन कानूनों और नीतिगत बदलावों की तुरंत समीक्षा करनी चाहिए, जिनकी वजह से हम इस विनाशकारी रास्ते पर पहुंचे हैं। मोदी सरकार को वन (संरक्षण) नियम, 2022 में संसद से जबरन पास कराए गए संशोधनों को वापस लेना चाहिए, जो आदिवासी विरोधी हैं और जंगलों में रहने वाले लोगों से बिना सलाह लिए ही वनों की कटाई की इजाजत देते हैं। बड़ी कंपनियों को, जो पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करती हैं, बाद में पर्यावरणीय मंजूरी देने की जो बेहद अव्यवहारिक और खतरनाक परंपरा शुरू की गई है कि जो मोदी सरकार की अपनी नीति है। उसे अब बंद होना ही चाहिए।
सोनिया गांधी ने लिखा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, जिसे लंबे समय से खाली पदों के जरिए कमजोर किया गया है, उसे फिर से उसके सम्मानजनक स्थान पर बहाल किया जाना चाहिए और उसे सरकार की नीति व दबाव से स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाना चाहिए। पर्यावरण से जुड़े मामलों में केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय के साथ काम करना जरूरी है। एनसीआर में वायु प्रदूषण का संकट पूरे सरकारी तंत्र के संयुक्त प्रयास और क्षेत्रीय स्तर के नजरिए की मांग करता है, ठीक जैसे भूजल में यूरेनियम प्रदूषण का मामला करता है। पर्यावरण के मामलों में, अगर कहीं और नहीं, तो मोदी सरकार को सहयोगात्मक संघवाद की भावना जरूर दिखानी चाहिए।
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