
प्राचीन भारतीय सभ्यताओं ने रिश्तों की व्यवहारिकता को लेकर काफी स्पष्ट विश्लेषण किया है. मनुस्मृति, महाभारत, याज्ञवल्क्य स्मृति और अर्थशास्त्र जैसे धार्मिक ग्रंथों में सासों के व्यवहार के आधार पर 6 श्रेणी में बांटा गया है. आइए जानते हैं इसके बारे में.

प्राचीन भारतीय सभ्यता के मुताबिक पहली श्रेणी में ऐसी सास आती है, जो घर की शक्ति, मान-सम्मान, और परिवार में नियंत्रण शक्ति को लेकर जुनूनी होती है. इस तरह की व्यवहार करने वाली सास बहु को प्रतियोगी के रूप में देखती है, और बेटे पर अपना अधिकार जमाए रखने के लिए भावनात्मक दबाव के साथ-साथ मानसिक नियंत्रण की भी सहायता लेती है. इन्हें घर की सत्ता हाथ से जाने का भय सताता है.

दूसरी श्रेणी में वो सासें आती हैं, जो अपनी बहु को परिवार में काफी मान-सम्मान और नई बेटी की तरह स्वीकार करती है. ऐसी सासें बहुओं का मार्गदर्शन करने के साथ उनके साथ दोस्ताना बर्ताव करती हैं. ये रिश्तों में स्थिरता बनाए रखने के लिए रीढ़ की हड्डी मानी जाती है.

पांचवी श्रेणी की सासें इससे बिल्कुल उलट होती है, बाहर से जितनी शांत अंदर उतनी ही राजनीति चल रही होती है. ऐसी सास कभी भी बहु से सीधा टकराव करने के बजाए चीजों को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करती हैं, जो कहीं न कहीं रिश्तों में दूरियों और खटास का कारण बनता है.

चौथी श्रेणी की सासें अपनी समय के साथ बहु के प्रति अच्छे बदलाव अपनाती हैं. घर में बहु को भी बराबरी का स्थान देती हैं. ऐसी सासें बहुओं के साथ दोस्ताना व्यवहार अपनाते हुए घरेलू मामलों में उनका समर्थन करती है.

छठीं और अंतिम श्रेणी में वो सासें आती हैं, जो बहु के आते ही घर की राजनीति से खुद को अलग कर लेती हैं. यह इनकी कमजोरी नहीं, बल्कि एक परिपक्व समझदारी होती है, जो परिवार पर काबू रखने की बजाए उन्हें साथ लेकर चलने पर अमल करती हैं. उनका शांत और प्रेमपूर्वक रवैया बहु को हमेशा खुश रखता है.
Published at : 02 Dec 2025 05:46 PM (IST)
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