यहां रास्ते इतने खराब हैं कि पैदल चलना भी आसान नहीं है. टेक्नोलॉजी की बात करें तो 10-20 किलोमीटर तक मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं आता. टीवी-फ्रिज जैसी बेसिक चीजों के बारे में भी कोई नहीं जानता, लेकिन एक बात इन्हें काफी अच्छी तरह आती है कि जल-जंगल और जमीन की सेवा कैसे करनी है? इन तीनों को भविष्य के लिए कैसे बचाना है? हम बात कर रहे हैं उड़ीसा के केंदुझर जिले में आने वाले कई गांवों के लोगों की, जो जल-जंगल और जमीन के लिए लगातार ‘चौका’ लगा रहे हैं और पर्यावरण को बचाने के लिए दुनिया को नई सीख दे रहे हैं.
क्या है चौका और कैसे करता है काम?
चौका बनाने के लिए जमीन में 10x5x1 फीट के गड्ढे जिगजैग स्टाइल में बनाए जाते हैं. इसका मतलब यह है कि एक सीधी लाइन में गड्ढे बनाने के बाद दूसरी लाइन के गड्ढे पहली लाइन के गड्ढों के सेंटर में रखे जाते हैं, जिससे पहली लाइन के गड्ढों से बचा पानी अगली लाइन के गड्ढों में आ सके. ये गड्ढे पहाड़ी इलाकों में बनाए जाते हैं, जिससे पहाड़ों से आने वाले पानी को रोका जा सके. यह वॉटर कंजर्वेशन से लेकर सॉयल कंजर्वेशन दोनों में काफी मदद करते हैं. इसे ही चौका सिस्टम कहा जाता है. इन गड्ढों की मदद से पहाड़ों से आने वाले पानी का फ्लो धीमा हो जाता है, जिससे मिट्टी का कटाव कम करने में मदद मिलती है.
पहाड़ों में क्यों बनाए जाते हैं चौके?
पहाड़ों में पानी जमा करने का एक ही सोर्स है और वह है बारिश. इसके अलावा पहाड़ों में पानी का कोई और सोर्स नहीं होता है. ऐसे में पानी को बचाने के लिए जमीन में गड्ढा यानी चौका खोदा जाता है. इन चौकों को अलग-अलग जमीन के हिसाब से अलग-अलग तरह से बनाया जाता है. दरअसल, पहाड़ों में जमीन तीन तरह की होती है. पहली हार्ड सॉयल, दूसरी सॉफ्ट सॉयल और तीसरी स्टोनी सॉयल. सॉफ्ट सॉयल में 10×5 फीट का चौका बनाया जाता है, जो एक फीट गहरा होता है. इस तरह सॉफ्ट सॉयल में एक चौका 50 फीट का होता है, जो स्ट्रैंगर कॉन्टोर ट्रेंच (SCT) कहलाता है. 50 फीट वाला चौका पहाड़ों के एकदम तली में बनाया जाता है, जिससे पहाड़ों से आने वाले पानी कलेक्ट किया जा सके. यह पानी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग में इस्तेमाल होता है.
कहां बनाया जाता है कौन-सा चौका?
पहाड़ों पर तेजी से आने वाले बारिश के पानी को रोकने के लिए सबसे पहले स्टोन बॉन्डिंग की जाती है, जो पानी के बहाव को कम करते हैं. इसके तहत पत्थरों से मेढ़बंदी की जाती है, जिससे पानी का बहाव धीमा होता है और यह कंटिन्यूअस कॉन्टोर ट्रेंच (CCT) के तहत बनाए गए चौकों को तेज बहाव से टूटने से बचाते हैं. सीसीटी पहाड़ के पीक पॉइंट से करीब 20 फीट नीचे बनाए जाते हैं. इसके ऊपर का एरिया रेसट्रिक्टेक्ड होता है. स्टोन बॉन्डिंग, सीसीटी और एससीटी इस तरह बनाए जाते हैं, जिससे बारिश का पानी, उसकी वजह से बहकर आने वाली उपजाऊ मिट्टी और पत्ते आदि बेकार न हो. उन्हें सहेजा जा सके, जिससे मिट्टी की क्वालिटी बेहतर होती है. अगर इन्हें रोका नहीं जाएगा तो उपजाऊ मिट्टी बह जाती है और जमीन खेती लायक नहीं रहती है.
कैसे मेंटेन किया जाता है चौका?
बारिश के पानी से आने वाली मिट्टी से ये गड्ढे भर जाते हैं. हालांकि, इसमें तीन से पांच साल का वक्त लगता है. ऐसे में जब गड्ढे भर जाते हैं तो उन्हें दोबारा खोद दिया जाता है. अगर किसी गड्ढे में पेड़ या पौधे उग गए हैं तो उनकी देखभाल की जाती है. आमतौर पर देखा गया है कि इन गड्ढों के आसपास उगने वाले पौधों की सेहत काफी अच्छी होती है, क्योंकि चौके की वजह से यहां की मिट्टी काफी ज्यादा उपजाऊ होती है और पत्तों आदि की वजह से मिट्टी की उवर्रक क्षमता काफी ज्यादा हो जाती है. उन्होंने बताया कि बारिश के पानी के साथ काफी बीज भी बहकर आते हैं, जिनमें काफी बीज समय के साथ पौधे बन जाते हैं, जिससे खेती करने वालों को फायदा होता है.
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