‘हम गांजे की खेती करते थे..’ सिंगर कुणाल गांजावाला ने बताई अपने सरनेम के पीछे की दिलचस्प कहानी


बॉलीवुड को ‘ओ हमदम सोनियो रे’, ‘तौबा तौबा’, ‘दिल ना दिया’ और ‘भीगे होंठ तेरे’ जैसे हिट गानों देने वाले सिंगर कुणाल गांजावाला एक बार फिर चर्चा में बने हुए हैं. दरअसल सिंगर ने अपने सरनेम के पीछे की मजेदार कहानी शेयर की. जिसको लेकर अक्सर सोशल मीडिया पर यूजर्स उन्हें तंज कसते हुए नजर आते हैं.

‘कैंसर रोगियों के लिए बनाते थे दवाई’

टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कुणाल गांजावाला ने खुलासा किया कि, ‘उनका सरनेम ब्रिटिश राज के वक्त का है. ब्रिटिश राज के दौरान, हमारा परिवार मेडिकल सुविधाओं के लिए मारिजुआना उगाता था. हमारे पास लाइसेंस होता था. ये करने काम करने का. ये 1942 से पहले, भारत छोड़ो आंदोलन से पहले हमारा काम होता था. हम उसमें से वो अफीम के इंजेक्शन बनाकर कैंसर रोगियों को दिया करते थे..तभी से हमें ये सरनेम मिला था.’

परिवार ने क्यों बंद किया अफीम का किस्सा?

सिंगर ने आगे बताया कि, ‘ये काम भारत छोड़ो आंदोलन तक जारी रहा, जब महात्मा गांधी ने भारतीयों से आत्मनिर्भर बनने का आग्रह किया. उसके बाद, हमने फ़र्नीचर बनाने का काम शुरू कर दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि उनके सरनेम के कारण आज भी लोग अजीब रिएक्शन देते हैं..”

यूजर्स देते हैं ऐसे रिएक्शन

कुणाल ने कहा, ‘कभी-कभी लोग मेरा सरनेम सुनकर हैरान हो जाते हैं, तो कभी मज़ाक उड़ाते हैं. लेकिन यही असली इतिहास है, लोग मज़ाक करते थे, ‘अरे गांजेवाला, माल है क्या?’ और मैं उन्हें बताता था कि मैं ना तो मैं धूम्रपान करता हूं और ना ही ऐसी चीज़ें खाता हूं..”

कुणाल गांजावाला का करियर

साल 2004 में इमरान हाशमी की फिल्म ‘मर्डर’ का गाना ‘भीगे होंठ’ ने कुणाल गांजावाला का रातोंरात स्टारडम दिला दिया था. इसके बाद उन्होंने ‘कुछ कुछ होता है’ का कोई मिल गया, ‘धूम’ का सलामे और ‘सिंघम’ का मौला मौला जैसे कई हिट गाने इंडस्ट्री को दिए. लेकिन अब वो काफी वक्त से सिंगिंग से दूर हैं. कुणाल ने अपना आखिरी गाना शाहरुख खान की फिल्म ‘ज़ीरो’ के गाने अन-बान दिया था.

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