Osho Teachings: ओशो कहते हैं कि जिस क्षण स्त्री सचमुच स्वतंत्र होगी. उसी क्षण सबसे बड़ा उपहार पुरुष को मिलेगा. अब तक पुरुष ने स्त्री को कैद में रखा. यह सोचकर कि वह उसका सौभाग्य बढ़ा रहा है. लेकिन उसके उल्टा उसका प्रेम ही मर गया. संबंध अभिनय बन गया. कैद में जीने वाली स्त्री प्रेम नहीं दे सकती. क्योंकि उसका प्रेम मजबूरी बन जाता है.
ओशो का स्पष्ट मत है कि जहाँ स्वतंत्रता नहीं, वहां प्रेम नहीं खिलता. प्रेम तभी जिंदा है जब वह स्वेच्छा से दिया गया हो. जैसे फूल अपनी खुशबू देता है. कैद में रखा गया फूल मुरझा जाता है. वैसे सदियों से स्त्री की आत्मा मुरझाई हुई है.
प्रेम को सुरक्षा नहीं, साहस चाहिए
ओशो समझाते हैं कि आज स्त्री घर संभाल सकती है. सेवा कर सकती है. पर वह प्रेम की सखी नहीं बन सकती. पति-पत्नी का संबंध आज बंधन है, मित्रता नहीं. साथ रहना उस बंधन की बाध्यता है. इसलिए झगड़ा भी बाध्यता बन गया है.
ओशो कहते हैं कि प्रेम अब केवल अभिनय हो गया है. समाज की स्वीकृति पाने के लिए निभाया गया एक नाटक है. यह प्रतिष्ठा और परंपरा के नाम पर रिश्तों को बांधता है. पर जहां बंधन है, वहां प्रेम की ऊर्जा मर जाती है. ओशो कहते हैं -“कानून प्रेम की रक्षा नहीं कर सकता. प्रेम को सुरक्षा नहीं चाहिए. उसे साहस चाहिए. और साहस तभी जन्म लेता है जब स्त्री और पुरुष बराबरी पर हों.
शिक्षा ही मुक्ति का आरंभ
ओशो कहते हैं कि स्त्री को सदियों तक शिक्षा से वंचित रखा गया ताकि वह हमेशा मालिक के अधीन रहे. जिसके पास ज्ञान है. वह किसी और को स्वामी नहीं मानता. इस सामाजिक संरचना ने पत्नी शब्द का अर्थ ही दासी बना दिया और पति का अर्थ स्वामी बना दिया.
ऐसे में प्रेम कैसे जन्म ले सकता है. प्रेम तो हमेशा दो मित्रों के बीच होता है. जहां कोई ऊंचा-नीचा नहीं होता. ओशो कहते हैं कि जिस दिन स्त्री शिक्षित होगी. जागेगी. विद्रोह करेगी. उसी दिन प्रेम सच्चा होगा. फिर स्त्री रसोई की नहीं. आत्मा की सखी होगी.
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