जिस देश की प्रधानमंत्री थीं शेख हसीना, उसी मुल्क ने उन्हें सुनाई फांसी की सजा; जानें फैसले पर भारत ने क्या कहा?

Sheikh Hasina: बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को लेकर बांग्लादेश की एक कोर्ट ने सोमवार को ऐसा फैसला सुनाया, जिसे लेकर सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक इसकी चर्चा हो रही है. साल 2024 में बांग्लादेश में खुद के खिलाफ हुए विद्रोह को दबाने के लिए शेख हसीना के ऊपर कई मासूम लोगों की जान लेने का आरोप लगा है, जिसे लेकर इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई है. कोर्ट के इस फैसले के बाद बांग्लादेश ने भारत से शेख हसीना को उन्हें सौंपने का आग्रह करते हुए प्रत्यर्पण संधि का हवाला दिया. शेख हसीना को लेकर कोर्ट के फैसले पर अब भारत की तरफ से भी पहली प्रतिक्रिया सामने आई है.

भारत ने क्या कहा?

भारत ने प्रतिक्रिया में कहा है कि वह बांग्लादेश के लोगों के साथ खड़ा रहेगा, न कि किसी एक पार्टी या नेता के साथ. भारत की कोशिश है कि वो बातचीत और सहयोग की राह पर बढ़ते हुए स्थिरता बनाए रखे. गौरतलब है कि बीते 15 सालों के दौरान 2009 से 2024 तक शेख हसीना को भारत का सबसे भरोसेमंद पड़ोसी माना गया. उनके कार्यकाल में दोनों देशों के बीच व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा और सीमा समझौतों में उल्लेखनीय काम हुआ. 2015 में हुआ ‘भूमि सीमा समझौता’ दोनों देशों के आपसी भरोसे का प्रतीक बना.

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छात्रों ने हिलाई हसीना सरकार की नींव

आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने में भी दोनों सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलीं. इसी दौर को विशेषज्ञों ने भारत-बांग्लादेश संबंधों का ‘स्वर्ण युग’ कहा था. लेकिन 2024 के मध्य में बांग्लादेश में छात्रों और जनता के बड़े विरोध प्रदर्शनों ने हसीना सरकार की नींव हिला दी. इसके बाद उनकी जगह नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस की देखरेख में एक अस्थायी सरकार बनी, जिसमें बीएनपी और कुछ इस्लामी समूहों की भूमिका अहम रही.

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नई सरकार के बाद रिश्तों में खटास

नई सरकार के बाद भारत-बांग्लादेश रिश्तों की दिशा बदल गई. सीमा सुरक्षा, खुफिया एजेंसियों का तालमेल और आतंकवाद विरोधी सहयोग कमजोर हुआ. वहीं, बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर बढ़ते हमलों और NRC, CAA जैसे मुद्दों पर राजनीतिक तनाव ने भी माहौल को प्रभावित किया. शेख हसीना के हटने के बाद बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ा है. इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें भी सक्रिय हो रही हैं. भारत के लिए यह स्थिति सुरक्षा और रणनीतिक दृष्टि दोनों से चुनौतीपूर्ण है. खासतौर पर पूर्वोत्तर सीमा के इलाकों में अस्थिरता का सीधा असर दिख सकता है.

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