क्या होता है उमराह? इस्लाम में उमराह को बेहद खास माना जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक उमराह अल्लाह के करीब जाने का एक ऐसा मौका होता है, जहां मुसलमान अपने गुनाहों की माफी मांग सकता है और अल्लाह के करीब हो सकता है. उमराह का मतलब मक्का में हरम शरीफ की जियारत करने से हैं, हालांकि इसका कोई वक्त मुकर्रर नहीं होता है, यह साल में किसी भी वक्त कर सकते हैं.
उमराह में मुसलमान काबा के चारों ओर चक्कर लगाते हैं यानी हरम शरीफ की तवाफ करते हैं और सफा और मरवा के दरमियान सई करते हैं. मान्यता है कि जिसका तवाफ पूरा हो जाता है, उसका उमराह मुकम्मल हो जाता है. आखिर में एहराम तोड़ने के लिए मर्द अपना सिर मुंडवाते हैं. वहीं, औरतों को अपने बाल एक उंगली के बराबर काटने होते हैं.
हज और उमराह में क्या फर्क है?
हज और उमराह इस्लाम में बेहद खास और रूहानी सफर माना जाता है. हर मुसलमानों पर एक हज जरूर फर्ज होता है, खासकर उन सभी लोगों पर जो मालदार है. अगर ऐसे लोग हज नहीं करते हैं तो वह गुनहगार कहलाएंगे. जबकि उमराह के लिए ऐसा नहीं माना गया है, क्योंकि उमराह मुस्तहब होता है. उमराह और हज का एक ही मकसद होता है, अल्लाह की रजा और अपने गुनाहों की माफी मांगना.
हज और उमराह में कई फर्क है जैसे आपको हज के दौरान अरफात के मैदान में ठहरना पड़ेगा, साथ ही कुर्बानी करानी पड़ेगी और शैतान को कंकरिया मारनी पड़ेगी. जबकि उमराह करने वाले लोग मक्का मुकर्रमा जाते हैं, वहां काबा शरीफ का तवाफ करते हैं. उमराह की खास बात यह है कि हज के दिनों को छोड़कर साल भर कभी भी किया जा सकता है. ईमान को ताज़ा करने और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने का एक खूबसूरत मौका है.
सोमवार तड़के मक्का से मदीना जा रहे भारतीय उमरा यात्रियों की बस मुफ़रिह़त इलाके में एक डीज़ल टैंकर से टकरा गई. बस में 43 लोग सवार थे जिनमें से शुरुआती जानकारी के अनुसार केवल एक यात्री जीवित बचा है. बाकी 42 यात्रियों के शहीद होने की आशंका जताई जा रही है. अधिकतर यात्री तेलंगाना के निवासी बताए जा रहे हैं, जिनमें कई महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं.
यह समूह मक्का में उमरा अदा कर चुका था और रोज़े-ए-रसूल ﷺ की ज़ियारत के लिए मदीना शरीफ़ की ओर बढ़ रहा था. हादसे की वजह भले सड़क दुर्घटना हो, लेकिन मुस्लिम समुदाय में यह भावना बहुत गहरी है कि —
जो अल्लाह के घर की इबादत के सफर में दुनिया से रुख़्सत होते हैं, वे मौत नहीं पाते, बल्कि अल्लाह की रहमत के साथ जन्नत का बुलावा पाते हैं.
मजहबी रहनुमाओं के मुताबिक —
“काबा की देहलीज़ पर इबादत पूरी कर, रसूल के शहर की तरफ़ बढ़ते हुए जान देना मुकद्दर वालों को ही नसीब होता है. यह दुनिया की नज़र में मौत है, लेकिन ईमान वालों की नज़र में यह बुलावा जन्नत का होता है.
हादसे ने पूरे भारतीय मुस्लिम समुदाय को ग़मगीन कर दिया है, लेकिन लोगों के दिलों में यह उम्मीद भी है कि —
अल्लाह उन सभी शहीद हुए मुसाफ़िरों को जन्नतुल फ़िरदौस में उंचा मक़ाम दे, और उनके घर वालों को सब्र और हिम्मत अता करे. पूरे देश में उनके लिए दुआओं का सिलसिला जारी है.
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