इस्लाम में बिल्ली पालना जायज और कुत्ता पालना नाजायज क्यों माना गया है? जानिए धार्मिक कारण

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Islam: इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है जो ईश्वर (अल्लाह) की एकता में विश्वास पर आधारित है और इसके अनुयायी ‘मुसलमान’ कहलाते हैं. इसका अर्थ ‘शांति’ और ‘अल्लाह के प्रति समर्पण’ है.  

इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान है, और मुसलमानों का मानना ​​है कि यह ईश्वर का अंतिम संदेश है. इस्लाम धर्म दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. इस्लाम धर्म में जायज और नाजायज का काफी महत्व होता है, ऐसे में एक बात हैरत में डालने वाली है कि इस्लाम धर्म में बिल्ली पालना जायज है, जबकि कुत्ते पालना नाजायज क्यों  है? 

इस्लाम में बिल्ली पालना जायज है क्यों?

इस्लाम में बिल्ली पालना जायज है, क्योंकि इस्लामी परंपरा में बिल्लियों को धार्मिक रूप से शुद्ध माना जाता है, इसलिए उन्हें घर में रखना और मस्जिदों में आने-जाने की अनुमति है. हजरत अबू हुरैरा जो कि एक सहाबी थे, उनको बिल्लियों से बहुत लगाव था.

उन्होंने अपनी बिल्ली के बच्चे के कारण ही यह उपनाम हासिल किया था. बिल्ली पालना सुन्नत है, क्योंकि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनके साथ अच्छा व्यवहार करने की हिदायत दी है और ऐसा करने पर सवाब (पुण्य) का जिक्र किया है.

 बिल्ली पालना चूहों और अन्य कीटों को नियंत्रित करने में मददगार होता है, जो शरिया के अनुरूप एक उपयोगी उद्देश्य है.

इस्लाम में कुत्ते पालना नाजायज क्यों है?

इस्लाम में शिकार, पशुधन की रखवाली या खेती के अलावा घर में कुत्ते पालना हराम नहीं है, बल्कि मकरूह (नापसंद) है, क्योंकि कुछ हदीसों के अनुसार, जिस घर में कुत्ते होते हैं, वहां फरिश्ते प्रवेश नहीं करते हैं.

इस्लाम में कुत्ते के थूक को अपवित्र माना जाता है, और यदि वह किसी बर्तन से पानी पीता है, तो उस बर्तन को सात बार पानी और एक बार मिट्टी से धोना चाहिए,  हालांकि, अगर कोई कुत्ता आपको छूता है तो आपका वजू नहीं टूटता है, बल्कि आपको अपने हाथ और कपड़े को धोना बेहद जरूरी है.

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