मुनीर-शहबाज को बार-बार याद आ रहा ऑपरेशन सिंदूर, चीन-तुर्किए के साथ मिलकर क्या खिचड़ी पका रहा पाकिस्तान?


मई 2025 में भारत की तरफ से चलगाए गए ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी सामने आई. उसका सैटेलाइट सर्विलांस नेटवर्क युद्ध जैसी तेज स्थितियों में काम नहीं कर पाया. जमीनी हालात समझने के लिए पाक सेना को समय पर और साफ सैटेलाइट तस्वीरें नहीं मिल सकीं. इसी वजह से युद्ध के कई अहम पल पाकिस्तान की नजरों से छूट गए. इसी कमजोरी ने पाकिस्तान को मजबूर किया कि वह अपने स्पेस सर्विलांस सिस्टम को तेजी से मजबूत करे.

चीन-तुर्किये और यूरोप से सहयोग
कमजोरियां दिखने के बाद पाकिस्तान ने कुछ ही महीनों में तीन नए सैटेलाइट लॉन्च किए. साथ ही उसने चीन, तुर्किये, अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों से सहयोग बढ़ाकर अपनी निगरानी क्षमता मजबूत करने की कोशिश शुरू की.

जनवरी 2025: तीन दिनों में दो बड़े सैटेलाइट लॉन्च
पहली सैटेलाइट -PAUSAT-1 

पाकिस्तान ने SpaceX के Falcon-9 रॉकेट से PAUSAT-1 लॉन्च किया. द संडे गार्डियन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, यह 10U नैनो-सैटेलाइट पाकिस्तान की एयर यूनिवर्सिटी ने तुर्किये की इस्तांबुल टेक्निकल यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया है. इसमें हाई-रिजॉल्यूशन कैमरे और खास सेंसर लगे हैं, जो जमीन, फसलों और इमारतों का ज्यादा साफ डेटा देते हैं. तुर्किये के साथ साझेदारी से पाकिस्तान को यूरोपीय तकनीक तक भी अप्रत्यक्ष पहुंच मिल रही है.

दूसरी सैटेलाइट- PRSC-EOL
17 जनवरी को पाकिस्तान ने PRSC-EOL नाम का नया पृथ्वी निगरानी सैटेलाइट चीन के जिउक्वान स्टेशन से लॉन्च किया. हालांकि इसे ‘पाकिस्तान में बना’ बताया जाता है, लेकिन डिजाइन, तकनीक और लॉन्च चीन की मदद से ही होता है. यह कृषि, शहरों और पर्यावरण की निगरानी में काम आता है, लेकिन इसका सैन्य उपयोग भी साफ नजर आता है.

अक्टूबर 2024 में भेजा गया था HS-1
HS-1 पाकिस्तान का पहला हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट है, जिसे चीन ने लॉन्च किया. यह छिपे सैन्य ठिकानों का पता लगाने, एयरबेस की गतिविधियों को समझने और बुनियादी ढांचे में बदलाव पकड़ने में सक्षम है.

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्योंं फेल हुआ पाकिस्तान?
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का मुख्य सैन्य सैटेलाइट PRSS-1 केवल एक बार भारतीय एयरबेसों- पठानकोट, उधमपुर और आदमपुर की साफ तस्वीर ले सका. इसके बाद मौसम और ऑर्बिट की समस्या के कारण कई घंटे तक कोई उपयोगी इमेज नहीं मिली. इसी दौरान भारत ने कई बदलाव कर दिए, जिन्हें पाकिस्तान समय पर पकड़ नहीं सका. PakTES-1A नाम का एक पुराना सैटेलाइट पहले ही काम करना बंद कर चुका था.

ग्राउंड सिस्टम भी कमजोर, बैकअप नहीं
पाकिस्तान के पास सिर्फ दो ही ग्राउंड स्टेशन हैं- कराची और इस्लामाबाद. 2022 की बाढ़ में कराची स्टेशन 18 घंटे ठप रहा, जिसके कारण जरूरी तस्वीरें देरी से मिलीं. पश्चिमी पाकिस्तान में बैकअप स्टेशन की योजना अभी भी अधूरी है.

यूरोपीय तस्वीरें मिलती हैं, लेकिन कंट्रोल नहीं
पाकिस्तान Airbus और यूरोपीय कंपनियों से तस्वीरें तो मंगा सकता है, लेकिन उन्हें तुरंत रिटास्क नहीं कर सकता. 2024 में ईरान-पाकिस्तान तनाव के दौरान यूरोपीय तस्वीरें 36–48 घंटे की देरी से मिली थीं. वहीं, चीन का PRSS-1 लगभग 4-6 घंटे में ताजा तस्वीरें भेज सकता है. इसी वजह से चीन की भूमिका पाकिस्तान के लिए अभी भी सबसे अहम बनी हुई है.

2026–27 तक SAR सैटेलाइट लाने की तैयारी
पाकिस्तान अब ऐसा SAR सैटेलाइट बनाना चाहता है जो बादलों और रात में भी तस्वीरें ले सके. यह तकनीक किसी देश को असली सैन्य निगरानी क्षमता देती है.

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