
दुनिया भर में महिलाएं ब्रेस्ट चेकअप के लिए यही टेस्ट कराती हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्रेस्ट टेस्ट के लिए सभी महिलाओं को मैमोग्राम पर डिपेंड नहीं रहना चाहिए क्योंकि ये कई महिलाओं पर असरदार नहीं है, खासकर भारत जैसे देश में.

दरअसल, भारत में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का पैटर्न वेस्ट के देशों से काफी अलग है. यहां कम उम्र से ही ये बीमारी शुरू हो जाती है और महिलाओं में ब्रेस्ट टिश्यू ज्यादा डेंस होते हैं. साथ ही, यहां इसके ट्रीटमेंट और डिटेक्शन की सुविधाएं काफी कम हैं. भारत में ये परेशानी 45 की उम्र से ही शुरू हो जाती है जबकि वेस्ट में ये 55 से शुरू होती है.

डॉक्टर्स बताते हैं कि मैमोग्राम फैटी ब्रेस्ट टिश्यू में बेहतर काम करता है. लेकिन भारतीय महिलाओं में ब्रेस्ट ज्यादा डेंस होने के कारण इस टेस्ट के दौरान कैंसर के शुरुआती लक्षण छूट जाते हैं या गलत रिपोर्ट आ जाती है. इसलिए ये फायदेमंद नहीं है.

ऐसे में डॉक्टर्स का कहना है कि भारत जैसे देश में इसके लिए अल्ट्रासाउंड का ऑप्शन ज्यादा बेहतर है. साथ ही, महिलाओं को सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन भी करनी चाहिए.

भारत में आज ब्रेस्ट कैंसर सबसे कॉमन बन गया है और वेस्ट की कंपैरिजन में तेजी से फैल रहा है. ऐसे में इस बीमारी का पता न चलने या देरी से पता चलने की वजह से 40 से 50 प्रतिशत महिलाएं मर जाती हैं.

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की एक रिसर्च में पाया गया कि क्लिनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के साथ मैमोग्राम को जोड़ने पर भी सही डिटेक्शन नहीं किया जा सका और मौतें होती रहीं. वहीं संजय गांधी पीजीआई की स्टडी बताती है कि महिलाएं अगर हर महीने सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन करें तो वह बदलाव को जल्दी पहचानकर उसका तुरंत इलाज करा सकती हैं.

साथ ही, डॉक्टर्स का कहना है कि हर महीने महिलाओं को खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए और किसी गांठ, निप्पल में चेंजेस की तरफ ध्यान देना जरूरी है. इसके अलावा परेशानी आने पर टारगेटेड इमेजिंग जरूर करवाएं.
Published at : 12 Nov 2025 09:09 AM (IST)
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