नवरात्रि की उत्सव और पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की धूम के बीच बांग्लादेश के निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने हिंदू संस्कृति और बंगाली संस्कृति को लेकर बयान दिया है. तसलीमा नसरीन ने कहा कि हिंदू संस्कृति ही बंगाली संस्कृति की नींव है. इसके साथ इसमें बंगली मुसलमानों की संस्कृति भी शामिल है. तसलीमा नसरीन के इस बयान पर मशहूर गीतकार और शायर जावेद अख्तर ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लोगों का गंगा-जमुनी-अवधी संस्कृति की कद्र करना भी जरूरी है.
गंगा-जमुनी-अवधी संस्कृति, जिसे अक्सर गंगा-जमुनी तहजीब कहा जाता है. इसका मतलब उत्तर भारत में विकसित उस साझा और मिश्रित हिंदू-मुस्लिम संस्कृति से है, जो दोनों परंपराओं का मेल है.
हिंदू संस्कृति को लेकर क्या बोलीं तसलीमा नसरीन?
तसलीमा नसरीन ने यह टिप्पणी नवरात्रि की अष्टमी तिथि यानी दुर्गाष्टमी, मंगलवार (30 सितंबर, 2025) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में करके की. उन्होंने अपने पोस्ट में दुर्गा पूजा पंडाल और अन्य सांस्कृतिक आयोजनों की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा कि धर्म चाहे कोई भी हो, सभी बंगाली भारत से ही ताल्लुक रखते हैं.
उन्होंने कहा, ‘इसमें कुछ भी छिपाने जैसा नहीं है. हिंदू संस्कृति ही बंगाली संस्कृति की नींव है. हम बंगाली, चाहे इतिहास में हमने कोई भी धर्म या दर्शनशास्त्र को अपनाया हो, राष्ट्रीय पहचान के तौर पर भारत से ही जुड़े हैं. भारत के हिंदू, बौद्ध, ईसाई, मुसलमान और यहां तक कि नास्तिकों, लगभग सभी के पूर्वज भारत के हिंदू ही थे.
There is nothing to conceal: Hindu culture is the foundation of Bengali culture. We Bengalis—whatever religion or philosophy we may have embraced over the course of history—belong, in our national identity, to India. The forefathers and foremothers of Hindus, Buddhists,… pic.twitter.com/yyvYN3dZqH
— taslima nasreen (@taslimanasreen) September 29, 2025
बंगाली मुसलमानों की संस्कृति अरब की नहीं, हिंदू परंपराओ में जमी है- नसरीन
अक्सर इस्लामी परंपराओं की आलोचना करने वाली नसरीन ने दावा किया कि बंगाली मुसलमानों की संस्कृति अरब की नहीं है, बल्कि हिंदू परंपराओं में गहराई से जमी हुई है. उन्होंने कहा, ‘अगर कोई बंगाली मुसलमान भी है, तो उसकी संस्कृति अरबी नहीं है. उसकी संस्कृति बंगाली संस्कृति है और वह संस्कृति हिंदू परंपरा से जुड़ी हुई है. ढोल-नगाड़े, संगीत और नृत्य, ये सब बंगाली संस्कृति की मौलिक अभिव्यक्तियां हैं. बंगाली होने का मतलब यही है. इसे नकारने का मतलब अपने अस्तित्व को नकारना है.’
तसलीमा नसरीन के पोस्ट पर जावेद अख्तर ने क्या दी प्रतिक्रिया?
तसलीमा नसरीन के पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए जावेद अख्तर ने उनकी बातों पर आंशिक रूप से सहमति जताई. हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के इस मिलन से बनी नफासत और मिलावट वाली गंगा-जमुनी तहजीब की सराहना भी की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘हम अवधी संस्कृति के परंपरागत लोग बंगाली संस्कृति, भाषा और साहित्य का बहुत सम्मान करते हैं. लेकिन अगर कोई महान गंगा-जमुनी-अवधी संस्कृति और उसकी नफासत और उसकी मिलावट की कद्र नहीं कर पाता है, तो यह पूरी तरह से उसका अपना नुकसान है. इस संस्कृति का अरब से कोई लेना-देना नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘फारसी और मध्य एशियाई संस्कृतियां और भाषाएं भी हमारी संस्कृति और भाषा में उसी तरह से घुल-मिल गई है, जैसे पश्चिमी संस्कृति, लेकिन वह हमारे अपनी शर्तों पर हुआ है. वैसे कई बंगाली सरनेम भी फारसी मूल के हैं.‘
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