Akka Mahadevi: शिव को माना पति…भरी सभा में हुई नग्न! दक्षिण भारत की मीराबाई जिसने शिव प्राप्ति के लिए त्यागे कपड़ें


Akka Mahadevi Biography: अक्का महादेवी एक ऐसी महिला संत जिन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पूजा, जिन्हें दक्षिण भारत की मीराबाई भी कहा जाता था. अक्का महादेवी उन महान लोगों में से एक हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान शिव की भक्ति में समर्पण कर दिया. आज के लेख में हम आपको उन्हीं के बारे में बताएंगे.

उत्तर भारत में मीराबाई के बारे में लगभग हर किसी ने पढ़ा या सुना जरूर होगा. उनके द्वारा लिखे गए गीत, कहानियां और भजन आज भी जीवित हैं, जिसे हर किसी ने कभी न कभी जरूर सुना होगा. ठीक इसी तरह दक्षिण भारत में एक महिला संत का जन्म करीब 12वीं शताब्दी में होता है.

इनके मन का भाव भी मीराबाई की ही तरह भगवान शिव के प्रति था. लेकिन आज के समय में उत्तर भारत समेत कई राज्यों में उनका नाम भुला दिया गया. ये कोई और नहीं बल्कि अक्का महादेवी थी.

भगवान शिव को पति के रूप में पूजा

अक्का महादेवी का जन्म 1130 ई. के आसपास हुआ था. उनके बारे में बताया जाता है कि, 12वीं शताब्दी में यह एक प्रसिद्ध कन्नड़ कवयित्री थी. इनके पिता का नाम निर्मल सेठी और माता का नाम सुमिति था. दोनों ही पति पत्नी महादेव के भक्त थे. दोनों की ही इच्छा थी कि, होने वाली संतान भी महादेव की परम भक्त बनें. 

महादेवी अक्का जब 10 साल की थी, तब उन्हें शिव मंत्र द्वारा दीक्षा दी गई. महादेवी भगवान शिव को पति के रूप में पूजती थी. जिस तरह मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण को गिरधर कहकर पुकारती थी. ठीक उसी तरह अक्का महादेवी भगवान शिव को चन्नमल्लिकार्जुन कहती थी.

Akka Mahadevi: शिव को माना पति...भरी सभा में हुई नग्न! दक्षिण भारत की मीराबाई जिसने शिव प्राप्ति के लिए त्यागे कपड़ें

पति के सामने शिव को पति के रूप में स्वीकारा

जब महादेवी युवावस्था में आई तब उनकी सुंदरता इतनी मनमोहक थी कि हर कोई उनके चेहरे की आभा को देखते ही रह जाता था. महादेवी की सुंदरता को देखकर एक जैन कौशिक राजा उनपर मोहित हो गया और शादी करने की इच्छा जताई. राजा कौशिक ने महादेवी के पिता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे अक्का महादेवी के पिता ने मंजूरी दे दी.

राजा कोशिश कैसे न कैसे करके महादेवी के मन में अपनी जगह बनाना चाहता था. महादेवी राजा को बार-बार एक ही बात कहती कि, मेरे पति तो शिव हैं. अक्का महादेवी शिव के अलावा अन्य किसी बात पर ध्यान नहीं देती थी. राजा को महादेवी की यह बात पसंद नहीं आई.

राजा की सभा में महादेवी अक्का ने कपड़ों को त्याग दिया

इस बात से राजा इतना आहत हुआ कि, उसने एक सभा बुलाई और सभा में उपस्थित लोगों से पूछा कि, इस औरत का क्या करना चाहिए? यह अपने पति के सामने किसी ओर का नाम लेती है. सभा में उपस्थित लोगों ने राजा को देश निकाला का फैसला सुनाने को कहा, जिसे अक्का महादेवी ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया. इस बात को देखकर राजा और क्रोधित हो गया.

राजा ने गुस्से में अक्का महादेवी से कहा कि, तुम्हारे शरीर पर जो कपड़े और आभूषण हैं, उन्हें भी यहीं छोड़ दो. इसके बाद महादेवी ने एक-एक करके वस्त्र और आभूषणों को उतार दिए. महादेवी भरी सभा में नग्न हो गई और अपने शरीर को बालों से ढक लिया.

महादेवी को ऐसा करते देख हर कोई हैरान हो गया और सोचने लगा कि ऐसा भी क्या कोई भक्त हो सकता है?

साधु-संतों की संगोष्ठी में पहली बार अक्का नाम मिला

महादेवी ने इसके बाद भी आदरता के साथ राजा से विदा लिया. सभ्य समाज ने जब उन्हें इस हालत में देखा तो मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. कुछ लोग उन्हें देह ढकने के लिए कपड़े देते तो अक्का महादेवी कहती, क्या भगवान की भक्ति या उनसे मिलने के लिए सच में कपड़ों की जरूरत है?

अपनी लंबी यात्रा करने के बाद महादेवी कर्नाटक के कल्याण शहर में पहुंची. बताया जाता है कि, कल्याण नगरी में शिव भक्तों की कोई कमी नहीं है. उस दौरान महादेवी एक ऐसी संगोष्ठी में जा पहुंची, जहां एक से बढ़कर एक विद्वान मौजूद थे.

संगोष्ठी में शामिल सभी लोग उनकी हालत को देखकर काफी आश्चर्य थे. लेकिन जब अक्का महादेवी ने अपने विचार प्रकट किए तो हर कोई हैरान रह गया. और पहली बार उन्हें किसी ने अक्का नाम दिया, जिसका मतलब बड़ी दीदी होता है.

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शिव में समाई श्री अक्का महादेवी

चिन्ना मल्लिका यानी शिव को प्राप्त करने के लिए अक्का महादेवी ने काफी ज्यादा जप-तप किया. फिर भी महादेव के दर्शन नहीं हुए. इसके बाद अक्का महादेवी कल्याण को छोड़कर श्री सेन चली जाती हैं.

श्री सेन में भगवान शिव का एक शिवलिंग है, जिसका नाम श्रीचिन्नामिल्लिकाअर्जुन है. महादेवी जंगल के बीच स्थित एक गुफा जिसका नाम कादली है, वहां चली जाती है और आगे की तपस्या करती है. श्री अक्का महादेवी गुफा में ही शिवलिंग के समक्ष तपस्या करते हुए शिव में समा जाती है.

जिस तरह मीराबाई श्रीकृष्ण की भक्ति में विग्रह में समा गई, ठीक उसी तरह अक्का महादेवी भी शिव की अटूट भक्ति और समर्पण की भावना के कारण शिवलिंग में समा गई. कन्नड़ साहित्य में उनकी कविताओं को काफी योगदान रहा है. उन्होंने अपने जीवनकाल में 430 से ज्यादा कविताएं लिखी. इनकी कविताओं पर वैज्ञानिक अध्ययन भी किया जा रहा है.

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