दिल्ली हाई कोर्ट ने लश्कर-ए-तैयबा के दोषी आतंकी मोहम्मद अयूब मीर की पैरोल याचिका खारिज कर दी है. मीर ने आठ हफ्ते की पैरोल मांगी थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इसे ठुकरा दिया. दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि पैरोल कोई हक नहीं बल्कि एक छूट है और जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो, तो इस पर और भी सख्ती बरतनी पड़ती है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि आतंकी मोहम्मद अयूब मीर को जम्मू के सरकारी मेडिकल कॉलेज में बेहतर से बेहतर इलाज मिले और अगर जरूरत पड़े तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर उसे किसी बड़े अस्पताल में शिफ्ट किया जाए.
मोहम्मद अयूब मीर को साल 2008 में ठहराया गया था दोषी
लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मोहम्मद मीर को साल 2002 में दर्ज एक मामले में दोषी ठहराया गया था और 2006 में उसकी सजा बरकरार रखी गई थी. वह इस समय आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. पहले भी उसे मई 2015 से फरवरी 2018 तक पैरोल मिली थी. लेकिन पुलिस की रिपोर्ट के बाद यह रद्द कर दी गई थी.
उस समय आरोप लगा था कि उसने श्रीनगर में युवाओं को आतंक की राह पर भड़काने की कोशिश की थी. 2018 में जेल के अंदर भी उस पर कैदियों को भड़काने और नारे लगाने का आरोप लगा, जिसके बाद उसे जम्मू की कोट भलवाल जेल शिफ्ट कर दिया गया.
आतंकी ने अपनी याचिका में बताया कई कारण
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में आतंकी मीर ने कई वजहें बताईं, जिसमें कैंसर का इलाज, दिव्यांग बेटी की देखभाल, घर के गिराए जाने के बाद परिवार की मदद और 22 साल से ज्यादा की कैद. वहीं, इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में उसके वकील ने दलील दी कि दिल्ली सरकार का 15 अप्रैल, 2025 का पैरोल ठुकराने का आदेश बिना वजह और अमानवीय है.
हालांकि, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली सरकार के वकीलों ने कहा कि मीर को पहले से ही इलाज मिल रहा है और उसकी रिहाई देश की सुरक्षा के लिए खतरा होगी. कोर्ट ने भी इन्हीं तर्कों से सहमति जताई और याचिका खारिज कर दी.
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