H-1B वीजा पर इतनी भारी भरकम फीस ट्रंप ने क्यों लगाई, अमेरिकन्स को क्या मैसेज देना चाहते हैं, भारत पर कितना पड़ेगा असर ?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार (19 सितंबर, 2025) को एक अहम घोषणा कर भारतीय आईटी सेक्टर और वहां नौकरी के सपने देखने वाले युवाओं को चौंका दिया है. व्हाइट हाउस से जारी नए Proclamation के मुताबिक, अब कोई भी कंपनी अगर H-1B वीज़ा पर विदेशी कर्मचारी को अमेरिका लाना चाहती है तो उसे हर याचिका के साथ 1 लाख डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) का अतिरिक्त भुगतान करना होगा. बिना इस भुगतान के विदेशी कर्मचारी को एंट्री ही नहीं दी जाएगी.

यह नियम 21 सितंबर 2025 से लागू होगा और फिलहाल एक साल के लिए मान्य रहेगा. हालांकि अमेरिका का Homeland Security Department राष्ट्रीय हित को देखते हुए किसी-किसी मामले में छूट भी दे सकेगा. इसका मतलब साफ है कि अब केवल वही विदेशी कर्मचारी अमेरिका पहुंच पाएंगे जो या तो टॉप-स्किल्ड हैं या जिनकी मौजूदगी अमेरिकी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी मानी जाएगी.

H-1B वीज़ा का दुरुपयोग हो रहा- ट्रंप प्रशासन

ट्रंप प्रशासन का दावा है कि H-1B वीज़ा का दुरुपयोग लंबे समय से हो रहा है. इस प्रोग्राम को शुरू करने का मक़सद यह था कि ऐसे हाई-स्किल्ड विदेशी कर्मचारी अमेरिका आएं जिनकी वहां कमी है, लेकिन हकीकत यह है कि बड़े आईटी आउटसोर्सिंग फर्म्स ने इस सिस्टम का इस्तेमाल अमेरिकी कर्मचारियों को हटाकर सस्ते विदेशी वर्कर्स रखने में किया, हालात इतने बिगड़े कि कई रिपोर्ट्स में सामने आया कि अमेरिकी वर्कर्स को अपने ही विदेशी रिप्लेसमेंट को ट्रेन करने तक के लिए मजबूर किया गया.

अमेरिकी सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आईटी सेक्टर में H-1B वर्कर्स की हिस्सेदारी 2003 में 32 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 65 प्रतिशत से ज्यादा हो गई है. इसके कारण अमेरिकी युवाओं में बेरोज़गारी बढ़ी है. खासकर कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स को सबसे ज़्यादा दिक्कत हो रही है, जहां बेरोज़गारी दर 6 से 7.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो कई दूसरे क्षेत्रों की तुलना में दोगुनी है.

भारतीय आईटी कंपनियों के लिए भी बड़ा झटका
भारत के लिहाज़ से यह फैसला बेहद अहम है. दरअसल, H-1B वीज़ा धारकों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी भारतीयों की होती है. हर साल हजारों भारतीय इंजीनियर, सॉफ्टवेयर डेवलपर और टेक प्रोफेशनल्स इस वीज़ा के जरिए अमेरिका पहुंचते हैं. भारतीय आईटी कंपनियों के लिए भी यह एक बड़ा झटका है. TCS, Infosys, Wipro और Cognizant जैसी कंपनियां H-1B पर बड़े पैमाने पर भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका भेजती रही हैं. उनके लिए यह नया नियम पूरे बिज़नेस मॉडल पर असर डाल सकता है, क्योंकि bulk hiring अब बेहद महंगी हो जाएगी.

ट्रंप का क्या कहना है
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस कदम को अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा है. उनका कहना है कि H-1B का दुरुपयोग अमेरिकी टेक्नॉलॉजी सेक्टर की वेतन संरचना को नुकसान पहुंचा रहा है और अमेरिकी युवाओं को विज्ञान और टेक्नोलॉजी करियर अपनाने से हतोत्साहित कर रहा है. यही वजह है कि उन्होंने इस वीज़ा को महंगा और कठिन बनाकर कंपनियों को मजबूर किया है कि वे पहले अमेरिकी वर्कर्स को ही प्राथमिकता दें.

भारतीयों के लिए बड़ी चेतावनी 

कुल मिलाकर यह साफ है कि अब अमेरिका में H-1B वीज़ा पाना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाएगा. भारत के लिए यह फैसला एक झटका भी है और एक चेतावनी भी. झटका इसलिए कि हज़ारों भारतीय प्रोफेशनल्स के अवसर कम होंगे और चेतावनी इसलिए कि अब भारत को अपनी आईटी इंडस्ट्री और नौजवान टैलेंट के लिए ऐसे अवसर अपने देश में ही पैदा करने होंगे, ताकि उन्हें विदेशों पर निर्भर न रहना पड़े.

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