Marraige in Islam: आयशा रदी अल्लाहु अन्हु जो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की प्रिय पत्नी और उन पर विश्वास करने वालों की मां थीं, ने कहा था कि, रसूल अल्लाह ने फरमाया निकाह करना मेरी सुन्नत है और जो कोई भी मेरी सुन्नत पर अमल नहीं करता है, उसका मुझसे कोई ताल्लुक नहीं है.
निकाह करो ताकि तुम्हारी ज्यादा तदाद पर मैं दूसरी उम्मतों (समुदाय, राष्ट्र, या लोगों का समूह) के सामने फख्र करूंगा. अल्लाह के जिस बंदे में निकाह करने की क्षमता है, वो निकाह जरूर करें और जिसमें क्षमता नहीं है, वो रोजा रखें.
ऐसा इसलिए कि रोजा उसकी शहवत (नफसानी ख्वाहिशात) यानी शारीरिक इच्छाएं या वासना को खत्म कर देगा. (सुनन इब्न माजा, खंड 2, हदीस 2-हसन)
अनस बिन मलिक रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है, कि रसूल अल्लाह ने फरमाया है कि, जब बंदा निकाह करता है तो अपना आधा दीन मुकम्मल कर लेता है. अब उसको चाहिए कि बाकी का आधा दीन में वो अल्लाह से डरता रहे. (अल सिलसिला अस सहिहा -1895)
बरकत वाला निकाह
आयशा रज़ी अल्लाहु कहती हैं कि, रसूल अल्लाह ने फरमाया है कि, सबसे ज्यादा बरकत वाला निकाह वो है, जिसमें मेहनत, मशक्कत और खर्च कम हो. (मुसनद ए अहमद 24529)
निगाहें और शर्मगाह की हिफाज़त
अब्दुल्लाह बिन मसूद (R.A) से रिवायत है कि, रसूल अल्लाह ने फरमाया-ए जवानों जो तुममें से औरतों का हक अदा करने की ताकत रखता है, वो निकाह जरूर करें. क्योंकि निकाह निगाह को झुकाता है और शर्मगाह की हिफाज़त करता है और जिसमें इसकी ताकत नहीं है, वो रोजा रखें क्योंकि ये शहवत (शारीरिक इच्छाओं) को कम करता है. (बुखारी शरीफ़, जिल्द 3, सफ़ा 52, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा 533)
औरतों से उनके हुस्न के सबब में निकाह मत करो, हो सकता है उसका हुस्न तुम्हें बर्बाद कर दें, न ही उसके माल (पैसों) की वजह से निकाह करो, हो सकता है उसका पैसा तुम्हें गुनाहों मुब्तिला यानी मुश्किल में डाल दें.
इसकी जगह निकाह दीनदारी की वजह से करों. काली, चपटी और बदसूरत लड़की अगर दीनदार हो तो बेहतर है. (इब्ने माजा, 1926)
अखलाक और दीन
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रसूल अल्लाह ने फरमाया, अगर तुम्हारे पास कोई ऐसा शख्स रिश्ता लेकर आए जिसका अखलाक और दीन तुम्हें पसंद हो, तो उसे निकाह के लिए हां कर दो, अगर तुम ऐसा नहीं करते हो तो जमीन में फ़ित्ना और फ़साद यानी नैतिक मूल्यों का पतन हो जाएगा. (अस सिलसिला अस सहिहा, 1886)
मेहर की सबसे कम राशि
रसूल अल्लाह ने फरमाया है कि, निकाह करो चाहे मेहर देने के लिए एक लोहे की अंगूठी ही क्यों न देनी पड़ जाए. (बुखारी शरीफ)
गैर मुस्लिम मर्द और औरत से निकाह ना करना
कभी भी मुशरिक औरतों (जो अल्लाह के साथ किसी और को भी साझी मानता है) से तब तक निकाह नहीं करो, जब तक कि वो ईमान अल्लाह के प्रति सच में विश्वास न लाएं. क्योंकि चाहे कोई मुशरिक औरत तुम्हें कितनी भी अच्छी क्यों न लगे, अल्लाह के नजर में ईमान वाली गुलाम और उससे काफी बेहतर है.
इसी तरह, मुशरिक मर्दों से भी तब तक निकाह (शादी) मत करो, जब तक वे ईमान वाला न बन जाए. चाहे मुशरिक मर्द तुम्हें कितना ही पसंद क्यों न हो, उससे अच्छा ईमान वाला गुलाम मर्द होता है.
मुशरिक तुम्हें दोजख की ओर धकेलते हैं
ये मुशरिक (अल्लाह के साथ किसी को भी साझी ठहराने वाले) लोग तुम्हें दोजख (नरक) की ओर धकेलते हैं. जबकि अल्लाह अपनी रहमत (कृपा) से तुम्हें जन्नत (स्वर्ग) और मगफिरत (क्षमा) करता है. अल्लाह बार-बार अपने बंदों को हुक्म देता है, ताकि वे सही राह से भटके नहीं. (सूरा अल बक़रा-2:221)
निकाह का पैगाम
हुजूर ने इरशाद फरमाया कि, जब अल्लाह तआला किसी के दिल में किसी औरत से निकाह की ख्वाहिशें डाले और वो उसे पैगाम दे तो हमें कि जानिब (तरफ) देखने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. (इब्ने माजा जिल्द: 01, पेज: 523, बाब नंबर: 597, हदीस नंबर: 1931)
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