इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 319 के तहत 15 साल पुराने मामले में राम नारायण, राम दारोगा और अन्य को आरोपी के रूप में तलब किया गया था. जस्टिस समीर जैन की सिंगल बेंच ने यह निर्णय सुनाया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत आरोपी को तलब करना ट्रायल कोर्ट की असाधारण शक्ति है, लेकिन इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक और ठोस सबूतों के आधार पर किया जाना चाहिए.
याचि ने इस मामले में कोर्ट के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की थी.
क्या है पूरा मामला ?
यह मामला चंदौली जिले के 12 नवंबर 2010 की घटना से संबंधित है, जिसकी एफआईआर मजिस्ट्रेट के आदेश पर तीन महीने बाद 12 फरवरी 2011 को दर्ज की गई थी. पुलिस जांच में याचियों की संलिप्तता झूठी पाई गई थी, और उनके नाम चार्जशीट में शामिल नहीं किए गए थे. हालांकि, ट्रायल के दौरान पीड़ित पक्ष के बयानों के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने 30 अक्टूबर 2023 को याचियों को आरोपी के रूप में तलब कर लिया.
हाईकोर्ट का निर्णय
याचियों ने ट्रायल कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि एफआईआर में देरी मामले में एफआईआर दर्ज करने में अत्यधिक देरी हुई, जो संदेह पैदा करती है.गवाहों के बयानों की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने नजरअंदाज किया. ट्रायल कोर्ट ने बिना पर्याप्त सबूतों के असाधारण शक्ति का उपयोग किया.
ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द
हाईकोर्ट ने याचियों की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट के 30 अक्टूबर 2023 के आदेश को रद्द कर दिया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 319 के तहत आरोपी को तलब करने के लिए गवाही में पर्याप्त बल होना आवश्यक है, और इस शक्ति का प्रयोग आंख मूंदकर नहीं किया जा सकता. याचि ने इस फैसले से राहत की सांस ली है.
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