पूर्व मुख्यमंत्री और BJP विधायक चंपाई सोरेन ने 14 सितंबर को जमशेदपुर में आयोजित ‘आदिवासी महादरबार’ में हेमंत सोरेन सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार आदिवासी समुदाय के हितों के प्रति असंवेदनशील है और PESA (अनुसूचित क्षेत्र का पंचायत विस्तार) अधिनियम को लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं रखती.
चंपाई सोरेन के मुताबिक यह कानून आदिवासी स्वशासन और ग्राम सभाओं को मजबूत करने के लिए जरूरी है लेकिन वर्तमान सरकार इ स दिशा में ठोस कदम उठाने से बच रही है. उन्होंने बताया कि अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने PESA अधिनियम की समीक्षा की थी और पारंपरिक ग्राम सभा को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने के लिए कई विशेष प्रावधान किए थे.
हेमंत सोरेन सरकार ने PESA को कागजों में रखा- चंपाई सोरेन
चंपाई सोरेन ने कहा कि यह अधिनियम आदिवासी समाज के अधिकार, संस्कृति और आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करता है, लेकिन हेमंत सोरेन सरकार ने इसे केवल कागजों में सीमित कर दिया है. उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक पेसा कानून पूरी तरह लागू नहीं होता, तब तक आदिवासी समुदाय को उसका वास्तविक अधिकार नहीं मिल सकता।
तिलका मांझी, सिद्धो-कान्हो का दिया उदागरण
आदिवासी महादरबार में संबोधित करते हुए चंपाई सोरेन ने ऐतिहासिक आदिवासी समाज की महानता का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज ने हमेशा अपने अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष किया है.
उन्होंने बाबा तिलका मांझी, सिद्धो-कान्हो, पोटो हो, चांद भैरव और बिरसा मुंडा जैसे नायकों का उदाहरण देते हुए कहा कि यह समय भी उसी तरह के आंदोलन की मांग कर रहा है. सोरेन ने कहा कि “हमने इतिहास के हर पन्ने को पढ़ा और सुना है, इसलिए आज हम नागरी गांव से इस नई पहल की शुरुआत कर रहे हैं.”
पूर्व मुख्यमंत्री ने आदिवासी समुदाय से एकजुट होने की अपील की. उन्होंने कहा कि जब तक आदिवासी समाज खुद अपने हक के लिए संगठित नहीं होगा, तब तक उसकी परंपरा, पहचान और संस्कृति पर खतरा बना रहेगा.
उन्होंने दावा किया कि पेसा अधिनियम केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं बल्कि आदिवासी अस्मिता और स्थानीय स्वशासन की नींव है. चंपाई सोरेन ने कहा कि अब समय आ गया है कि आदिवासी समाज अपने पूर्वजों के रास्ते पर चलकर अपनी परंपरा, पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए आंदोलन खड़ा करे.
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