अगस्त में बुरी तरह धड़ाम हो सकता था शेयर बाजार, लेकिन इन 5 वजहों ने बचा लिया आपका पोर्टफोलियो

Stock Market: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से जुड़ी चिंताओं और 4 अरब डॉलर से अधिक की एफआईआई की बिकवाली के बीच भारतीय शेयर बाजार में कई फैक्टर्स की वजह से एक बड़ी गिरावट टल गई है. इन फैक्टर्स में घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की खरीदारी, जीएसटी रेट्स को रेशनलाइज बनाने को लेकर पॉजिटिव सेंटीमेंट, पहली तिमाही के मजबूत जीडीपी आंकड़ों और ऑटोमोबाइल शेयरों में तेजी शामिल हैं. यह जानकारी शुक्रवार को आई एक रिपोर्ट में दी गई.

किन फैक्टर्स से मिला सपोर्ट?

1. HSBC Mutual Fund के अनुसार, डीआईआई ने 10.8 अरब डॉलर का निवेश किया, जिससे एफआईआई द्वारा की गई 4.3 अरब डॉलर की बिकवाली की भरपाई हो गई. इसकी वजह से अगस्त में बाजार मामूली गिरावट तक सीमित रहा. सेंसेक्स और निफ्टी में क्रमशः 1.5 प्रतिशत और 1.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

2. वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों को मजबूत सेवाओं और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का सपोर्ट मिला.

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3. जुलाई में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI ) घटकर 1.6 प्रतिशत रह गया, जो आठ वर्षों में सबसे कम है, जिससे बाजार में खरीदारी को बल मिला.

4. ऑटो सेक्टर ने जीएसटी दरों में कटौती का लाभ उठाते हुए बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि ऑयल एंड गैस, बिजली और रियल एस्टेट क्षेत्र पिछड़ गया.

5. S&P ने भारत की सॉवरेन रेटिंग को बीबीबी- से बढ़ाकर बीबीबी (स्टेबल) कर दिया, जो लगभग दो दशकों में पहली बार हुआ, जिससे इस महीने शेयर बाजार को भी बढ़ावा मिला.

किन वजहों से रही कमजोरी?

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के अमेरिकी फैसले का करेंसी, इक्विटी और बॉन्ड बाजारों पर असर पड़ा. राजकोषीय चिंताओं के कारण भारतीय मुद्रा कमजोर हुई. जीडीपी के 4.4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के पूरा होने की उम्मीद है, हालांकि कमजोर कर संग्रह और जीएसटी रेट्स को रेशनलाइज बनाने से कुछ जोखिम पैदा होंगे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई ने 2025 में ब्याज दरों में 100 आधार अंकों की कटौती की योजना बनाई है और अब इसमें कुछ समय लग सकता है. इस बीच, लिक्विडिटी पर्याप्त बनी हुई है, जिससे डेट मार्केट में शॉर्ट टर्म यील्ड को समर्थन मिल रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक व्यापार संबंधी चुनौतियों और टैरिफ दबावों के बावजूद भारत के मैक्रो फंडामेंटल बेहतरीन जीडीपी वृद्धि, सौम्य मुद्रास्फीति और एक सहायक पॉलिसी बैकग्राउंड के साथ मजबूत और बेहतर बने हुए हैं.

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