जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के बनी क्षेत्र में आई हालिया बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है. कहीं पूरे-के-पूरे घर बह गए, तो कहीं लोग अपनी जिंदगी की पूंजी और आशियाना दोनों से हाथ धो बैठे. लेकिन वहीं एक ऐसा मामला भी सामने आया है जो ये दिखाता है कि आपदा कितनी भी बड़ी हो इंसानियत जिंदा हो तो जिंदगी बचाई जा सकती है.
यहां एक हिंदू परिवार ने अपने मुस्लिम पड़ोसी जावेद अहमद और उनके 8 सदस्यीय परिवार को घर में रहने के लिए आसरा दिया. जावेद अहमद का मकान 28 अगस्त को आई अचानक बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो गया था. यह घटना इंसानियत और भाईचारे का अद्भुत उदाहरण पेश किया है.
मददगार सुभाष और संकटग्रस्त परिवार
स्थानीय निवासी सुभाष ने अपने घर के दरवाजे जावेद अहमद और उनके परिवार के लिए खोल दिए. अहमद के परिवार में उनके ससुर और दो दृष्टिहीन बच्चे भी शामिल हैं. अहमद ने बताया कि बाढ़ में उनका घर टूट गया और कहीं सहारा न मिलने पर सुभाष ने उन्हें अपने पहले माले पर दो कमरे दिए और खुद ऊपर शिफ्ट हो गए.
अहमद ने कहा, “हमें ऐसा लगता है जैसे हम अपने ही घर में रह रहे हों. सुभाषजी ने हमें राशन और जरूरी सामान तक दिया है.” उन्होंने सरकार से मुआवजा और राहत की अपील भी की.
समाज और नेताओं की प्रतिक्रिया
स्थानीय विधायक रमेश्वर सिंह ने प्रभावित परिवारों से मुलाकात कर इस मानवीय पहल की सराहना की. उन्होंने कहा कि संकट की घड़ी में एक-दूसरे का सहारा बनना ही जम्मू-कश्मीर की असली खूबसूरती है.
विधायक के अनुसार, अहमद का परिवार बीते एक सप्ताह से सुभाषजी के साथ रह रहा है और उन्हें जितना समय चाहिए उतना वहां रहने की अनुमति दी गई है. पीटीआई के अनुसार, प्रशासन का कहना है कि राहत और पुनर्वास कार्य जारी हैं, लेकिन इस तरह के उदाहरण लोगों के दिलों में भरोसा और भाईचारा बढ़ाते हैं.
मानवीयता और एकता का संदेश
कठुआ जिले की यह घटना साबित करती है कि प्राकृतिक आपदा चाहे कितनी भी विकराल क्यों न हो, मानवीय रिश्ते और सामुदायिक एकता उससे कहीं ज्यादा मजबूत हैं. हिंदू परिवार द्वारा मुस्लिम पड़ोसियों को आश्रय देने का यह कदम सामाजिक समरसता और मानवता की सजीव मिसाल है. प्रशासन ने भी माना कि राहत कार्य जरूरी हैं, लेकिन ऐसी कहानियां असली ताकत को सामने लाती हैं. यह संदेश देती हैं कि आपदा में भी इंसानियत सबसे बड़ी ताकत है.
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