Importance of Mother: हर धर्म में मां का दर्जा सबसे ऊंचा माना जाता है. चाहे वो इस्लाम, हिन्दू धर्म, ईसाई, बौद्ध या जैन धर्म क्यों न हो. मां वहीं हैं जो हमें जिंदगी देती हैं, हमारी परवरिश करती हैं और बिना किसी फायदे के हमें मोहब्बत देती हैं. उनका प्यार और उनकी देखभाल न सिर्फ इंसान की जिंदगी बल्कि समाज की तरक्की के लिए भी बहुत अहम है. आइए जानते हैं कि मां की अहमियत क्या है….
इस्लाम: इस्लाम में कहा गया है कि जन्नत मां के कदमों के नीचे है, जबकि बाप जन्नत का दरवाजा है– यह हदीस यानी पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कही हुई बात है. मां का मुकाम पिता से भी ऊंचा माना गया है, और उनकी सेवा करके अल्लाह को खुश किया जा सकता है.
हिंदू धर्म: हिंदू धर्म में मां को देवी के रूप में देखा जाता है. उनका सम्मान और आज्ञाक का पालन करना हर व्यक्ति का धर्म होता है. ग्रंथों में लिखा गया है कि माता-पिता में मां को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए. मां का आशीर्वाद बच्चों के जीवन में खुशहाली और सफलता लाता है.
ईसाई धर्म: ईसाई धर्म में भी मां की इज्जत को बहुत महत्व दिया गया है. बच्चों को अपनी मां की सेवा करनी चाहिए और उनके अनुभव से सीख लेनी चाहिए.
बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म में भी मां की सेवा और उनके प्रति भक्ति को बहुत बड़ा पुण्य माना गया है. उनकी देखभाल और मार्गदर्शन से बच्चों का जीवन सही राह पर चलता है और उन्हें नैतिक और आध्यात्मिक सीख मिलती है.
जैन धर्म: जैन धर्म में मां का सम्मान और उनकी सेवा को अहम माना गया है. मां की खुशियां का ख्याल रखना और उनका मार्गदर्शन मानना बच्चों की जिम्मेदारी समझी जाती है.
इस्लाम में मां के कदमों तले जन्नत क्यों है?
इस्लाम में मां का दर्जा कितना अहम है, ये इस बात से साफ पता चलता है कि हदीस में कहा गया है कि ” जन्नत मां के कदमों तले है.” हदीस के मुताबिक, अल्लाह का फरमान है कि जिसने अपने वालदैन को खुश किया उसने मुझे खुश किया और जिसने अपने मां बाप को नाराज किया तो उसने मौला को नाराज किया.
इसका मतलब है कि बच्चों के लिए अपनी मां की इज्जत करना और उनकी खिदमत करना सबसे जरूरी है. पिता का भी मुकाम अहम है, लेकिन मां का दर्जा हमेशा सबसे ऊंचा माना गया है.
मां की बात पहले क्यों माननी चाहिए?
एक हदीस है कि जब किसी बच्चे से एक वक्त में मां-बाप दोनों एक साथ पानी मांगे, तो सबसे पहले मां को पानी दो. इस्लाम में मां का मुकाम पिता से भी ऊंचा करार दिया है. हजरत अबुहुरैरा रजि. ने फरमाया कि एक शख्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से पूछा की ; ” ऐ अल्लाह के रसूल, मेरे अच्छे सुलूक का कौन ज्यादा हकदार है?”
नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम्हारी मां. उसने फिर पूछा; “फिर कौन?” आपने फरमाया तुम्हारी मां. उसने तीसरी बार पूछा; “उसके बाद कौन?” आपने फिर फरमाया तुम्हारी मां. उसने चौथी बार कहा; ” फिर कौन?” अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम्हारा बाप. यानी 75 प्रतिशत मां का मुकाम है और बाप का 25 प्रतिशत मुकाम है.
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