अगर शेयर बाजार को एक बड़ा क्लासरूम मान लें, तो सेंसेक्स और निफ्टी उसकी रिपोर्ट कार्ड की तरह हैं. ये दोनों इंडेक्स (सूचकांक) हमें बताते हैं कि बाजार किस हाल में है और बड़ी कंपनियों का प्रदर्शन कैसा चल रहा है.
सेंसेक्स ‘Sensitive Index’ है, जिसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) चलाता है. वहीं निफ्टी, ‘National Fifty’ का शॉर्ट फॉर्म है और इसे नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) मैनेज करता है. दोनों का काम एक ही है, बाजार की सेहत और रुझान बताना. लेकिन इनमें शामिल कंपनियों की संख्या और उनकी रेंज अलग है.
कितनी कंपनियां शामिल हैं?
सेंसेक्स में सिर्फ 30 बड़ी और नामी कंपनियां शामिल होती हैं, जो करीब 13 अहम सेक्टर्स को कवर करती हैं. इनमें रिलायंस, HDFC, इंफोसिस जैसी कंपनियां आती हैं. दूसरी तरफ निफ्टी ज्यादा बड़ा है, इसमें 50 कंपनियां होती हैं, जो करीब 24 सेक्टर्स को कवर करती हैं. मतलब, निफ्टी बाजार की थोड़ी ज्यादा विस्तृत तस्वीर दिखाता है, जबकि सेंसेक्स ज्यादा फोकस्ड नज़र आता है.
कैसे तय होता है इनका स्तर?
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इन दोनों इंडेक्स का लेवल किसी एक कंपनी के शेयर से नहीं, बल्कि सभी चुनी गई कंपनियों के शेयर की कीमत और वैल्यू के हिसाब से तय होता है. इसके लिए ‘फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन मेथड’ इस्तेमाल होता है. इसमें सिर्फ वो शेयर गिने जाते हैं जो बाजार में खरीदे-बेचे जा सकते हैं, न कि वो जो मालिक या सरकार के पास स्थायी रूप से रखे होते हैं.
बेस ईयर और बेस वैल्यू
सेंसेक्स का बेस ईयर 1978-79 है और इसकी शुरुआती वैल्यू 100 रखी गई थी. वहीं निफ्टी का बेस ईयर 1995 है और इसकी शुरुआत 1000 से हुई थी. जब आप सुनते हैं कि ‘सेंसेक्स 500 अंक चढ़ा’ या ‘निफ्टी 18,000 से नीचे गया,’ तो इसका मतलब है कि इन कंपनियों के शेयरों की औसत वैल्यू ऊपर-नीचे हुई है.
क्यों बढ़ते या गिरते हैं सेंसेक्स-निफ्टी?
बाजार कई वजहों से ऊपर-नीचे होता है. अगर GDP ग्रोथ अच्छी हो, महंगाई कंट्रोल में हो, कंपनियों का प्रॉफिट अच्छा आए या सरकार की कोई पॉजिटिव पॉलिसी लागू हो, तो सेंसेक्स और निफ्टी ऊपर जाते हैं. वहीं, मंदी का डर, महंगाई बढ़ना, बेरोजगारी, युद्ध, या किसी बड़ी कंपनी के खराब रिज़ल्ट आने जैसी खबरें इंडेक्स को नीचे खींच लेती हैं.
आम लोगों पर असर
सवाल है कि आम इंसान को इनसे क्या फर्क पड़ता है? असल में, बहुत फर्क पड़ता है. सेंसेक्स और निफ्टी से जुड़े म्यूचुअल फंड, इंडेक्स फंड और रिटायरमेंट प्लान करोड़ों लोग खरीदते हैं. अगर ये इंडेक्स बढ़ते हैं, तो आपके निवेश की वैल्यू भी बढ़ती है. अगर ये गिरते हैं, तो आपकी सेविंग्स पर असर पड़ सकता है.
प्वॉइंटर्स में समझिए
सीधा असर- जिनके पास Sensex/Nifty की कंपनियों के शेयर या इनसे जुड़े फंड्स (ETFs, Index Funds) होते हैं, उनके पोर्टफोलियो पर तुरंत असर दिखता है.
अप्रत्यक्ष असर- इंडेक्स की ट्रेंड देखकर बाकी स्टॉक्स में भी खरीद-बिक्री का फैसला होता है.
सेंटीमेंट- Sensex/Nifty में तेजी आने पर निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ता है, गिरावट पर डर हावी हो जाता है.
सेंसेक्स बनाम निफ्टी, कौन ज्यादा अहम?
सेंसेक्स पुराना है और ऐतिहासिक महत्व रखता है, लेकिन निफ्टी ज्यादा कंपनियों को कवर करता है और NSE पर ज्यादा ट्रेडिंग होती है. इसलिए निवेशक और विदेशी फंड दोनों को निफ्टी ज्यादा आकर्षक लगता है. हालांकि दोनों की दिशा ज्यादातर एक जैसी ही रहती है.
ग्लोबल और लोकल असर
सेंसेक्स और निफ्टी सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में भारत की आर्थिक तस्वीर दिखाते हैं. विदेशी निवेशक इन्हें देखकर तय करते हैं कि भारत में पैसा लगाना सुरक्षित है या नहीं. अगर ये ऊपर रहते हैं, तो मैसेज जाता है कि भारत की इकोनॉमी मजबूत है. अगर लगातार नीचे रहते हैं, तो चिंता बढ़ जाती है.
नतीजा क्या निकलता है?
सेंसेक्स और निफ्टी हमारे देश की अर्थव्यवस्था की धड़कन हैं. ये बताते हैं कि कंपनियां बढ़ रही हैं या पिछड़ रही हैं. इनके ऊपर-नीचे होने से न सिर्फ ट्रेडर्स और निवेशक, बल्कि आम आदमी की जेब, नौकरी और सेविंग्स तक प्रभावित होती हैं.
खबर से जुड़े 5 FAQs
Q1. सेंसेक्स और निफ्टी क्या हैं?
ये शेयर बाजार के इंडेक्स हैं जो बड़ी कंपनियों के प्रदर्शन को दिखाते हैं.
Q2. सेंसेक्स में कितनी कंपनियां शामिल होती हैं?
सेंसेक्स में 30 कंपनियां शामिल होती हैं.
Q3. निफ्टी किस एक्सचेंज से जुड़ा है?
निफ्टी, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) से जुड़ा है.
Q4. सेंसेक्स और निफ्टी क्यों ऊपर-नीचे होते हैं?
कंपनियों के रिजल्ट, सरकारी नीतियां, ग्लोबल घटनाएं और इकोनॉमिक हालात इनको प्रभावित करते हैं.
Q5. आम लोगों को इससे क्या फर्क पड़ता है?
इनका असर म्यूचुअल फंड, सेविंग्स और रिटायरमेंट प्लान की वैल्यू पर सीधा पड़ता है.
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