Kanpur siddhivinayak Temple: कानपुर का सिद्धि विनायक मंदिर, जहां आजादी की क्रांति ने गणेश भक्ति को जन्म दिया!

Kanpur siddhivinayak Temple: गणेश उत्सव को लेकर पूरे देश में खुशियों की लहर जाग उठी है. ऐसे में कानपुर महानगर में भी गणपति बप्पा के आगमन की तैयारियां जोरों शोरों से चल रही है. कानपुर शहर को हमेशा से एक क्रांतिकारी शहर कहा गया है और यहां के घंटाघर का इलाका हमेशा से भीड़भाड़ और चकाचौंद के लिए मशहूर रहा है.

इसी जगह पर एक ऐसा मंदिर है जो अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का प्रतीक माना जाता है. जिसकी कहानी आज भी लोगों का मन श्रद्धा और गर्व से भर देती है.

इस मंदिर को अंग्रेजों के समय बनवाया गया था. जब वह इस इलाके में किसी को कोई मंदिर बनवाने नहीं देते थे, मगर भक्तों के विश्वास और आस्था के सामने उनका शासन काम नहीं आया और अंग्रेजों को इस की भनक तक नहीं लगी. यह गणेश मंदिर है, जिसे लोग सिद्धि विनायक मंदिर के नाम से भी जानते हैं.

मकान के रूप में बनाया मंदिर 
यह मंदिर करीब सौ साल पुराना है. जब लोगों ने इस मंदिर को बनाने का प्रसाव रखा तब अंग्रेज अफसरों ने इससे साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि यहां करीब में एक मस्जिद है, जिसकी वजह से मंदिर नहीं बन सकता.

तब भक्त निराश हो गए, मगर उन्होंने हार नहीं मानी और मंदिर को एक मकान की तरह बनवाना शुरु कर दिया. जो बाहर से एक तीन मंजिला मकान लगता था. जिससे अंग्रेजों को लगा कि यहां कोई नया मकान बन रहा है, मगर यहां मंदिर बन रहा था. 

तिलक से करवा गया भूमि पूजन
सिद्धि विनायक मंदिर की नींव बाबा रामचरण नाम के एक समाजसेवी द्वारा रखी गई थी. इस समय स्वतंत्रता संग्राम के बड़े नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कानपुर आए थे. तब उन्होंने इसका भूमि पूजन किया. मगर इस वक्त अंग्रेजों के शासन की वजह से यहां मूर्ति स्थापना नहीं हो पाई.

जिसके बाद जब यहां का निर्माण पूरा हुआ. तब ऊपर की मंजिल पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की गई और निचली मंजिल का इस्तेमाल बाकी कार्यों के लिए किया गया. 

मंदिर की अनोखी मूर्तियां है यहां कि पहचान
यह मंदिर अपनी अनोखी मूर्तियों के लिए भी खास माना गया है. यहां भगवान गणेश के कई स्वरूप विराजमान हैं. जैसे संगमरमर और पीतल से बनी सुंदर मूर्तियां जो भक्तों का मन मोह लेती हैं. यहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ की मूर्तियों के साथ दस सिर वाले गणेश जी का स्वरूप भी है. जिसे दुर्लभ माना जाता है. 

मंदिर है श्रद्धा और आजादी का प्रतीक
यह मंदिर पूजा की जगह के साथ-साथ श्रद्धा और आजादी की भावना का प्रतीक भी बन गया है. जिस तरह मुंबई में गणेश महोत्सव का त्योहार खास महत्व रखता है, उसी तरह 
कानपुर के इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हैं.

कानपुर में पहली बार सार्वजनिक गणेशोत्सव इसी मंदिर से मनाई गयी थी. अब भी गणेश चतुर्थी के दिन हजारों श्रद्धालु यहां जुटते हैं और मंदिर परिसर भक्ति गीतों और जयकारों से गूंज उठता है.

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