
अंतिम संस्कार के बाद शव की हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं. ये अवशेष भी काफी हद तक जल जाते हैं और इन्हीं को अस्थियों के रूप में रखा जाता है. 13 दिन के अंदर इनका विसर्जन करना आवश्यक होता है, ताकि आत्मा को शांति और मोक्ष मिल सके.

गरुड़ पुराण के अनुसार, तीसरे, सातवें या नौवें दिन अस्थियाँ एकत्र की जाती हैं और फिर दस दिनों के भीतर गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में विसर्जित कर दी जाती हैं.

गरुड़ पुराण के अनुसार अमावस्या और पंचक के दौरान अस्थि विसर्जन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ होता है. कहते हैं इससे परिवार वालों पर संकट आ सकता है.

नियम अनुसार जिस व्यक्ति ने अंतिम संस्कार यानी मृतक को दाग दिया हो. उसी के द्वारा अस्थि विसर्जन भी किया जाना चाहिए.

अस्थि विसर्जन विधि में दाह संस्कार के बाद बची राख को एकत्र करके, एक लाल कपड़े या कलश में रखकर किसी पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी आदि में मंत्रोच्चार और प्रार्थना के साथ प्रवाहित किया जाता है.

इस प्रक्रिया का उद्देश्य दिवंगत आत्मा को मोक्ष दिलाना है और उसके सभी पापों का नाश करना है, जिससे आत्मा को शांति मिले.
Published at : 24 Aug 2025 10:30 AM (IST)
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