
रामायण काल में नदियों ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वाल्मिकी रामायण में और अन्य ग्रंथों में बार बार नदियों का उल्लेख मिलता है. आइए जानते हैं इसके बारे में.

सरयू अयोध्या की सबसे पवित्र नदियों में से एक है. वनवास के पहले दिन श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने आर्य सुमंत्र के रथ से सरयू, वेदश्रुति, गोमती नदी को पार किया था. स्यंदिका नदी को पार करने के बाद कोसल की सीमा खत्म हो गई और श्रीराम ने पीछे मुड़कर अयोध्या जाने वाले रास्ते को प्रणाम किया.

कोसल की सीमा पार करने के बाद राम-सीता और लक्ष्मण गंगा तट के किनारे पहुंचे. वनवास की पहली रात उन्होंने तट के समीप श्रृंगवेरपुर में बिताई थी, जहां उनकी मुलाकात निषादराज गुह से हुई, जिन्होंने तीनों को गंगा पार कराई थी. गंगा नदी पार करने के बाद उन्होंने पैदल यात्रा तय की और गंगा-यमुना के संगम प्रयाग जा पहुंचे. प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में उनका सम्मानपूर्वक स्वागत किया गया. तीनों रात को इसी आश्रम में विश्राम किया.

प्रयाग के बाद उन्होंने नाव बनाकर यमुना पार की और यमुना के दक्षिण की ओर चित्रकूट पहुंचे. पास की मंदाकिनी नदी और वहां के मनोरम दृश्य ने वनवास को और भी सुखद बना दिया. रास्ते में महर्षि वालमीकि से भेंट करके उन्होंने चित्रकूट में एक कुटिया बनाई. यही से भरत मिलाप हुआ. चित्रकूट से जाते समय ऋषि अत्रि और देवी अनुसूया से मिलना हुआ.

सालों तक दण्डकारण्य में बिताने के बाद श्रीराम ने पंचवटी में गोदावरी तट पर अपनी कुटिया बनाई. वनवास के अंतिम सालों में यही नदी उनके जीवन का मुख्य आधार बनी. लक्ष्मण यहीं से जल, पुष्प और फल लाते थे. इसी नदी के तट की पंचवटी से सीता जी का हरण हुआ था.

तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में आज भी पम्पा सरोवर है. दोनों ऋष्यमूख पर्वत के समीप स्थित है. कदम्ब के द्वारा बताए गए रास्ते के मुताबिक राम यहां आए थे और सरोवर तट पर ऋषि मतंग के आश्रम में शबरी से मुलाकात हुई थी. पम्पा की शोभा और निर्मल जल ने उनके मन को सांत्वना दी. यहीं हनुमान जी से उनकी पहली भेंट हुई और किश्किंधा कांड का भी सूत्रपात यही हुआ.
Published at : 21 Aug 2025 07:03 PM (IST)
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