लखनऊ। यूपी के कुछ मुख्य चिकित्साधिकारी प्रदेश सरकार व ईमानदार स्वास्थ्यमंत्री ब्रजेश पाठक की छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ताजा मामला प्रयागराज के मुख्य चिकित्साधिकारी (CMO) का उजागर हुआ है। मुख्यचिकित्सा अधिकारी के यहां प्रिंटिंग जेम निविदा में विगत 5 वर्षों से एक ही फर्म (अमृता प्रिंटर्स) को लाभ पहुंचाने के लिए बिड में अनावश्यक शर्तों को जोड़कर शासन व सरकार की पारदर्शिता धूमिल करने का कार्य कर हैं, जो कि उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार की जांच का विषय है।
पढ़ें :- यूपी में बर्ड फ्लू का अलर्ट जारी, सीएम योगी बोले-चिड़ियाघर और पोल्ट्री फार्मों की बढ़ाएं निगरानी
शिकायतकर्ता घनश्याम तिवारी ने बताया कि छह विड आई थी, जिसमें तीन क्वालीफाई हुई। जो तीन क्वालीफाई हुई उनमें अमृत प्रिंटर,श्रीराम इंटरप्राइजेज व श्रीराम इंटरप्राइजेज हैं। इनमें दो क्वालीफाई होने वाले का एक ही पता और तीसरा क्वालीफाई होने वाली रिश्तेदार है। ऐसे में सवाल उठता है कि मानकों को दरकिनार एक परिवार को दिया गया जोकि जांच का विषय है।
प्रयागराज के सीएमओ द्वारा जेम विड सं०- GEM/2025/3/6292338 दिनांक-03.06.2025 को प्रिंटिंग कार्य के लिए जेम पोर्टल पर प्रकाशित की गयी। शिकातयत कर्ता का आरोप है कि किसी समाचार पत्र में प्रकाशित हुई पता नहीं है। लगभग चार करोड़ की निविदा वैल्यू अलग-अलग स्वास्थ्य कार्यक्रम एवं बजट को जोड़ कर बनाया गया है। जबकि अलग-अलग कार्य के लिए अलग-अलग समय के लिए अलग-अलग बजट एवं वित्तीय कोड निर्धारित होता है। जेम से क्रय करने हेतु दस लाख से ऊपर की निविदा की आवश्यकता नहीं होती है और क्रय की अवधि सामान्यतः 15 से 45 दिन होती है, जबकि निविदा में क्रय करने के लिए समय सीमा 360 निर्धारित की गयी है। जिससे बीच में कोई कार्य का आदेश न हो सके। यही नहीं जेम बिड में क्रय के नमूने निविदा से पहले संलग्न करना अनिवार्य नहीं होता है। जबकि तीन प्रतियों में नमूने निविदा से पहले ही मांगा गया है। जो कि जेम शासनादेश का उल्लंघन है।
नमूने की जांच के लिए 25 हजार का डिमांड ड्राफ्ट राजकीय मुद्रणालय प्रयागराज के पक्ष में अग्रिम जमा करना अनिवार्य किया गया है जो कि पूर्णतया शासनादेश के विरुद्ध है। यदि नमूने की जांच के लिए राजकीय मुद्रणालय को अधिकृत किया गया है तो समस्त प्रपत्रों एवं रजिस्टर आदि की छपाई राजकीय मुद्रणालय प्रयागराज से क्यों नहीं कराया जा रहा है? निविदा में शासनादेश संख्या के क्रम 10, 20, 28, 45, 51 की अनदेखी कर एक फर्म को देने की व्यवस्था कर दी गयी है। जो विगत 5 वर्षों से अपनी नियम शर्तों पर कार्य कर रही है। निविदा के लिए विगत तीन वर्षों का क्रमशः 30 प्रतिशत टर्न ओवर होना चाहिए जिसे नजर अंदाज किया गया है। स्वास्थ्य कार्यक्रम के छोटे-छोटे कार्यों एवं बजट को जोड़ कर एक बड़ी निविदा बनाकर माफिया राज बना दिया गया है, जो वित्तीय भ्रष्टाचार का जांच का विषय है। इसे शासन व प्रशासन के तरफ से उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए।
पढ़ें :- UP Police SI Recruitment 2025 : योगी सरकार ने युवाओं को दिया बड़ा तोहफा, यूपी पुलिस में SI पद पर निकलीं 4 हजार से ज्यादा भर्तियां
Read More at hindi.pardaphash.com