ब्लॉक डील के नियमों में बदलाव के पीछे क्या है SEBI का असल मकसद? – block deals sebi plans changes in block deals rules know what is sebi objective behind it

शेयरों में होने वाली ब्लॉक डील स्टॉक एक्सचेंजों की आम शोरगुल के बीच नहीं होती। यह स्टॉक एक्सचेंज की खास ब्लॉक डील विंडो के जरिए होती है, जिसे आप वीआईपी लाउन्ज कह सकते हैं। फाइनेंशियल ईयर 2023-24 में ब्लॉक डील की संख्या रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। प्राइवेट इक्विटी फंड्स और प्रमोटर्स ने जमकर ब्लॉक डील के जरिए अपने शेयर बेचे। ब्लॉक डील के लिए सेबी के खास नियम हैं। यह डील पिछले दिन स्टॉक की बंद कीमत से 1 फीसदी से कम या ज्यादा पर होनी चाहिए। ब्लॉक डील का विंडो रोजाना दो बार ओपन होता है। इस डील में सिर्फ बायर और सेलर होता है जो बातचीत के बाद ब्रोकर के टर्मिनल से ट्रांजेक्शन करते हैं।

अगर आप 5 फीसदी डिस्काउंट पर स्टॉक खरीदना चाहते हैं तो इस ट्रांजेक्शन के लिए आप एक्सचेंज की ब्लॉक डील विंडो का इस्तेमाल नहीं कर सकते। ऐसे में बायर, सेलर और ब्रोकर के बीच फोन पर कई बार की बातचीत के बाद डील पक्की होती है। उसके बाद कामकाज के रेगुलर घंटों के दौरान दोनों साइड के ब्रोकर्स पहले से तय समय पर ‘एग्जिक्यूट’ बटन दबाते हैं। यहां से चीजें बिगड़नी शुरू हो जाती हैं। कई बार डील की जानकारी लीक हो जाती है। इससे कुछ बिडर्स बेहतर प्राइस ऑफर कर डील चुरा ले जाते हैं। असली बायर ठगा हुआ महसूस करता है।

सबसे गंभीर मामला पीएमएस या एआईएफ के पोर्टफोलियो मैनेजर्स का है जो अपने पर्सनल अकाउंट्स से ब्लॉक डील करते हैं। यह अक्सर लीक हुई जानकारी पर आधारित होती है। बाद में वे प्राइस रिकवर करते ही वे शेयरों को निकाल देते हैं। इससे कीमतों के बीच के फर्क से उनकी कमाई हो जाती है। इसका असर म्यूचुअल फंड्स पर भी पड़ता है। रिटेल इनवेस्टर्स के हित में ट्रेड करने वाले म्यूचुअल फंड पहले से तय कीमत पर ब्लॉक डील करने में नाकाम हो जाते हैं।

SEBI इस समस्या को जड़ से मिटाना चाहता है। इसके लिए वह ब्लॉक डील के लिए बड़ा प्राइस बैंड चाहता है। इसका मतलब है कि 1 फीसदी कम या ज्यादा का प्राइस बैंड बढ़ जाएगा। इससे बड़े बड़े बायर और सेलर ईमानदारी से और आसानी से ब्लॉक डील कर सकेंगे। उन्हें ब्लॉक डील के बारे में जानकारी लीक होने का डर भी नहीं रहेगा। इस बारे में सेबी के एक वर्किंग ग्रुप ने कुछ प्रस्ताव दिया है। इन प्रस्तावों पर विचार के बाद सेबी अंतिम फैसला लेगा।

दरअसल सेबी ने रिटेल इनवेस्टर्स के हित को ध्यान में रख 1 फीसदी का प्राइस बैंड ब्लॉक डील के लिए तय किया था। अब सेबी चाहता है कि इंस्टीट्यूशनल प्लेयर्स को भी ब्लॉक डील के लिए शेयरों की कीमतों के मामले में मोलभाव का मौका दिया जाए। कुछ संस्थागत निवेशकों की शिकायत है कि ब्लॉक डील की विंडो काफी पुरानी हो चुकी है। अमेरिका में ब्लॉक डील के लिए कई विंडो है। वहां कीमतों को लेकर बातचीत के बाद डील होती है। लेकिन, इंडिया में रेगुलेटर का फोकस पारदर्शिता पर रहा है।

अब यह माना जा रहा है कि नियमों में बदलाव का समय आ गया है। जब यह पता होता है कि शेयर कौन बेचने वाला कौन है तो उसका असर स्टॉक पर पड़ता है। अगर सेलर ओपन मार्केट में शेयर बेचता है तो कीमतें क्रैश कर जाती हैं। इससे रिटेल और इंस्टीट्यूशनल दोनों तरह के इनवेस्टर्स को लॉस होता है। इसके उलट बातचीत के बाद होने वाले ट्रेड में किसी पैनिक वाली स्थिति की गुंजाइश नहीं रह जाती है।

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