Kaliyug Ke Lakshan: सनातन धर्म में 4 युगों का वर्णन किया गया है, जिसमें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग शामिल है. वर्तमान में कलयुग का समय चल रहा है, जो पाप, अधर्म, झूठ और भ्रम का युग माना गया है.
श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों में कलियुग के कई लक्षणों का जिक्र किया गया है. हैरान करने वाली बात ये है कि कलियुग के लिए की गई भविष्यवाणियां आज के समाज में मुखर रूप से दिखाई दे रही है. आइए जानते हैं कलियुग के पांच ऐसे लक्षण जो आज के समय में महसूस किए जा सकते हैं.
धर्म की जगह अधर्म का वर्चस्व
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार कलियुग में धर्म के चार पैरों में से एक धर्म ही रह जाएगा और वह भी धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगा. आज वर्तमान समय में देखा जा सकता है कि ईमानदारी की अपेक्षा झूठ और छल ज्यादा प्रभावी हो गए हैं. लोग अपने हित के लिए धर्म को तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं.
गुरु और शिष्य के रिश्ते का पतन
कलियुग में गुरु-शिष्य परंपरा भी धीरे-धीरे पतन होते चली जाएगी. गुरुओं का उद्देश्य ज्ञान देना नहीं बल्कि पैसा और प्रसिद्धि कमाना होगा. वही शिष्य भी ज्ञान की जगह डिग्री और नौकरी के पीछे भागते दिखेंगे. आज वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली इसका ताजा उदाहरण हैं. समाज में धीरे-धीरे नैतिकता और आत्मज्ञान की जगह भौतिकता ने ले ली है.
धन को सर्वोच्च समझा जाएगा
कलियुग में व्यक्ति की पद प्रतिष्ठा उसके धन और बाहरी दिखावे से तय होगी, न कि उसके गुण और आचरण से, किंतु आज के समय में यही हो रहा है. जिसके पास ज्यादा पैसा है, उसकी ही बात सुनी जाती है. वर्तमान समय में रिश्ते, शिक्षा और यहां तक कि न्याय भी कहीं न कहीं धन पर निर्भर हो चुका है.
विवाह और संबंधों में तनाव
शास्त्रों के अनुसार कलियुग में पति-पत्नी का संबंध वासना और सुविधाओं पर निर्भर होगा, न कि प्रेम और धर्म पर. वर्तमान समय में रिश्तों में जितनी जल्दी नजदीकियां बढ़ेगी, उतनी ही जल्दी रिश्ते खत्म हो जाएंगे. कलियुग में लिव-इन, तलाक और वासना जैसी बातें सामान्य हो जाएंगी.
माता-पिता का अपमान और वृद्धाश्रम में वृद्धि
कलियुग का एक प्रमुख लक्षण यह भी होगा कि संतान अपने माता-पिता का आदर करना भूल जाएगी. समाज में वृद्धाश्रम की संख्या में बढ़ती चली जाएगी. बच्चे अपने माता-पिता से अलग रहना पसंद करेंगे. कलियुग में पारिवारिक मूल्य धीरे-धीरे गिरता चला जाएगा.
कलियुग के लक्षणों को लेकर पौराणिक ग्रंथों में की गई कल्पानाएं आज के प्रत्यक्ष समाज में अनुभव की जा सकती है. यह मनाव जीवन के लिए चेतावनी है कि अगर हमने नैतिक मूल्यों का आत्ममूल्यांकन नहीं किया तो आध्यात्मिक और पारिवारिक जीवन का पतन तेजी से होता चला जाएगा.
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