थाईलैंड ने हाल ही में कंबोडिया के विवादित सैन्य ठिकानों पर एफ-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर सैन्य कार्रवाई की. यह कदम तब उठाया गया जब थाई क्षेत्र में भारी गोलीबारी और रॉकेट से हमला किया गया. थाई सेना की उप प्रवक्ता ऋचा सुक्सुवानन ने स्पष्ट रूप से कहा कि हमने योजना के अनुसार सैन्य ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की. इस दौरान छह एफ-16 विमानों में से एक ने कंबोडियाई क्षेत्र में एक सैन्य ठिकाने को नष्ट कर दिया. वहीं थाईलैंड ने दावा किया है कि कंबोडिया के साथ जारी संघर्ष के दौरान 9 लोगों की मौत हो गई.
यह पहली बार नहीं है, जब दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बढ़ा हो, लेकिन इस बार यह प्रतिक्रिया अधिक आक्रामक और योजनाबद्ध दिखाई देती है. थाई सेना का दावा है कि यह कार्रवाई आत्मरक्षा में की गई है, जबकि कंबोडिया ने इसे क्रूर और बर्बर सैन्य आक्रमण करार दिया है.
प्रीह विहार मंदिर और ऐतिहासिक विवाद
यह विवाद कोई नया नहीं है. दोनों देशों के बीच यह तनाव 12वीं सदी के प्रसिद्ध हिंदू मंदिर प्रीह विहार को लेकर दशकों से जारी है. 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने इस मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा घोषित किया था, लेकिन थाईलैंड के कुछ राष्ट्रवादी गुट इसे आज भी चुनौती देते हैं. मंदिर का न केवल ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि कंबोडियाई राष्ट्रीयता और धार्मिक भावनाओं से भी जुड़ा है. इसी क्षेत्र में बार-बार सैन्य झड़पें हुई हैं. इससे पहले साल 2008, 2011 और अब 2025 में फिर से लड़ाई हो गई थी.
नागरिक क्षति और मानवाधिकार चिंताएं
इस बार हुए हमलों में ना सिर्फ सैन्य ठिकाने बल्कि नागरिक क्षेत्र भी प्रभावित हुए. थाईलैंड के अनुसार कंबोडियाई सैनिकों ने सीमा पर एक सैन्य अड्डे और अस्पताल को निशाना बनाया है. यह सब दर्शाता है कि संघर्ष अब केवल सैन्य सीमाओं तक सीमित नहीं रहा. इसका असर आम नागरिकों पर भी पड़ रहा है. मानवाधिकार संगठनों ने दोनों देशों से संयम बरतने और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने की अपील की है. इसके अलावा UNSC की आपातकालीन बैठक की भी मांग की गई है.
कूटनीतिक तनाव और संभावित अंतरराष्ट्रीय असर
दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजदूतों को निष्कासित कर दिया है. थाईलैंड ने कंबोडिया के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी है कि अगर हमले जारी रहे तो वह अपनी आत्मरक्षा की रणनीति को और तेज करेगा. इस घटना का प्रभाव न केवल क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ेगा, बल्कि ASEAN जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इसके परिणाम देखने को मिल सकते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यही हाल रहा तो अमेरिका और चीन जैसी वैश्विक शक्तियां भी मध्यस्थता के लिए सामने आ सकती हैं.
बारूदी सुरंगों का नया मोर्चा
इस संघर्ष में बारूदी सुरंगों का मुद्दा भी उभरकर सामने आया है. थाईलैंड का दावा है कि हाल ही में बनाई गई बारूदी सुरंगों ने उसके सैनिकों को घायल किया, जबकि कंबोडिया का कहना है कि यह पुरानी सुरंगों के विस्फोट थे. इस आरोप-प्रत्यारोप से स्थिति और गंभीर होती जा रही है क्योंकि बारूदी सुरंगें न केवल सैनिकों बल्कि स्थानीय नागरिकों के लिए भी एक दीर्घकालिक खतरा बन सकती हैं.
कंबोडियाई प्रतिक्रिया और सैन्य भर्ती का काम
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने राष्ट्रीय संबोधन में स्पष्ट कहा कि “अशांत स्थिति के बीच सशस्त्र जवाब देना आवश्यक है. उन्होंने सैन्य भर्ती को दोबारा शुरू करने की घोषणा की, जिससे यह साफ है कि देश दीर्घकालिक संघर्ष के लिए तैयार हो रहा है. यह कदम दर्शाता है कि संघर्ष अब एक अस्थायी तनाव न रहकर, लंबे समय तक चलने वाली रणनीति में बदल सकता है.
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