Swami Kailashanand Giri: भगवान मूर्ति में कैसे आते हैं ? स्वामी कैलाशानंद ने बताया रहस्य

Swami Kailashanand Giri: हिंदू धर्म में मंदिरों में मूर्ति स्थापना के बाद उसमें प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान जरुर किया जाता है. भगवान की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा एक धार्मिक प्रक्रिया है जिसके जरिए एक मूर्ति को पवित्र और पूजनीय माना जाता है.

यह एक विशेष विधि है जिसमें मंत्रों का जाप, अभिषेक, और विभिन्न अनुष्ठान शामिल होते हैं, ताकि मूर्ति में देवता का वास हो सके. हालांकि घर में भगवान की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती क्योंकि इस अनुष्ठान के बाद नियमों का पालन करना जरुरी है नहीं तो दोष लगता है.

कई लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि पत्थर या धातु से बनी मूर्ति में भगवान कैसे आते हैं ? आज भी ये सवाल कई लोगों के लिए रहस्य बना है. आइए स्वामी कैलाशानंद गिरी से जानें इसका रहस्य.

भगवान मूर्ति में कैसे आते हैं ?

प्राण प्रतिष्ठा वैदिक संस्कार है जिसका अर्थ है ‘देवी-देवता के प्राणों की स्थापना’ करना . जो किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवता या देवी का आह्वान कर उसे पवित्र या दिव्य बनाने के लिए किया जाता है. इसके बाद मूर्ति में ईश्वर की शक्ति निहित हो जाती है. मूर्ति में देवता का वास हो जाता है. इसके लिए मंत्रों का जाप, अभिषेक, हवन, और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं.

इसके बाद एक वेद मंत्र का जाप कर मूर्ति में प्राणों का आव्हान किया जाता है. स्वामी कैलाशानंद गिरी के अनुसार वो वेद मंत्र है – ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँसमिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो३म्प्रतिष्ठ।।- इस मंत्र के द्वारा भगवान को मूर्ति में स्थापित किया जाता है.

नियमों का पालन

एक बाद मूर्ति में भगवान का वास हो जाने के बाद मंदिर के पुजारी और भक्त कुछ नियमों का पालन करते हैं, जैसे कि ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, और शुद्ध आचरण, मूर्ति के सामने नकारात्मक बातें न करना, नियमित रूप से पूजा-अर्चना करना महत्वपूर्ण है। इसमें लापरवाही नहीं करनी चाहिए.

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