Eternal Share Price ने छू लिया अपर प्राइस बैंड, आप भी रहते हैं Upper Circuit को लेकर कंफ्यूज तो समझ लें पूरी ABCD

Eternal Share Price: शेयर बाजार में में निवेश या ट्रेडिंग करते हुए क्या आपने कभी भी देखा है कि कोई शेयर दिनभर के लिए रुक गया? या आपने सुना होगा कि “शेयर ने Upper Circuit लगा दिया”? BSE, NSE की वेबसाइट पर आपने किसी स्टॉक का पेज खोला होगा तो आपने Price Band की डीटेल भी देखी होंगी. हर स्टॉक पर एक अपर और लोअर प्राइस बैंड होते हैं. जोकि अपर सर्किट और लोअर सर्किट का लेवल दिखाते हैं.

Eternal का शेयर मंगलवार को फोकस में रहा. FY26 की पहली तिमाही के नतीजों और आउटलुक के बाद नए हाई पर चला गया. शेयर पर कोई प्राइस बैंड तो नहीं था, लेकिन इसका अपर प्राइस बैंड 311 रुपये पर था, जो इसने टच कर लिया. तो चलिए समझते हैं कि ये Upper Circuit क्या होता है, क्यों लगाया जाता है और कैसे NSE किसी स्टॉक की Circuit Limit 5% से बढ़ाकर 20% करता है.

Upper Circuit क्या होता है?

Upper Circuit एक ऐसा Price Limit है, जो एक्सचेंज (NSE/BSE) एक स्टॉक के लिए तय करता है. इसका मकसद शेयर की कीमत में अचानक बड़ी उछाल को रोकना होता है. अगर किसी दिन कोई शेयर अपने तय % के लिमिट तक चढ़ जाता है, तो उस दिन के लिए उस शेयर में ट्रेडिंग रोक दी जाती है, जबतक शेयर उस लेवल से नीचे नहीं आ जाता. मान लीजिए, अगर किसी शेयर की Upper Circuit लिमिट 10% है और शेयर का प्राइस ₹100 है, तो वह ₹110 से ऊपर नहीं जा सकता.

Circuit Limit कितनी होती है?

स्टॉक की वोलैटिलिटी, मार्केट कैप और ट्रेडिंग वॉल्यूम को देखते हुए NSE/BSE ये सर्किट लिमिट तय करते हैं:

2%, 5%, 10%, या 20% — ये लिमिट्स उन स्टॉक्स पर लगती हैं जो F&O में नहीं हैं

F&O स्टॉक्स (Derivative Stocks) पर कोई Upper या Lower Circuit नहीं होता

डिबेंचर, प्रेफरेंस शेयर्स पर भी 20% की Circuit Limit होती है.

टाइमिंग के हिसाब से Market Halt होता है-











Index Move Time Halt Duration
🔟% सुबह 1:00 बजे से पहले 45 मिनट
🔟% दोपहर 1:00 से 2:30 15 मिनट
🔟% 2:30 बजे के बाद कोई Halt नहीं
🔟5% सुबह 1:00 बजे से पहले 1 घंटा 45 मिनट
🔟5% दोपहर 1 से 2 45 मिनट
🔟5% 2 बजे के बाद दिनभर के लिए बंद
🔟0% कभी भी दिनभर के लिए बंद

Circuit Limit 5% से 20% कब बनती है?

NSE हर महीने या तिमाही में सर्किट लिमिट्स की समीक्षा करता है. अगर कोई स्टॉक स्थिर तरीके से ट्रेड हो रहा है और उसकी वोलैटिलिटी कम है, तो उसकी लिमिट बढ़ाई जा सकती है.

  • लगातार अच्छे वॉल्यूम में ट्रेडिंग हो रही हो और शेयर अचानक उछल-कूद नहीं कर रहा हो.
  • शेयर Upper या Lower Circuit पर बार-बार नहीं जा रहा है.
  • जो स्टॉक्स निगरानी (ASM/GSM) में होते हैं, उनके सर्किट लिमिट कम होती है. Surveillance से बाहर आते ही लिमिट बढ़ाई जा सकती है.
  • Trade-to-Trade से Regular मार्केट में आने पर सर्किट लिमिट बढ़ती है.
  • Bonus, Stock Split या Rights Issue जैसे इवेंट्स के बाद लिमिट रिवाइज हो सकती है.

जैसे कि, मान लीजिए किसी स्टॉक की कीमत ₹100 है और उस पर 5% की सर्किट लिमिट है, तो वह ₹105 से ऊपर नहीं जा सकता. अगर NSE उसे बढ़ाकर 20% कर देता है, तो अब वह ₹120 तक जा सकता है- यानी प्राइस मूवमेंट की गुंजाइश चार गुना बढ़ गई.

कैसे तय होता है किसी भी स्टॉक पर सर्किट लिमिट

  • जो स्टॉक्स बहुत ज़्यादा ट्रेड होते हैं (जिनकी लिक्विडिटी अधिक होती है), उनके लिए सर्किट लिमिट कम (जैसे 2% या 5%) होती है, ताकि अचानक बहुत तेज़ी या मंदी पर कंट्रोल रखा जा सके. वहीं जो स्टॉक्स कम ट्रेड होते हैं (अर्थात जिनकी लिक्विडिटी कम है), उनके लिए ज्यादा सर्किट लिमिट (जैसे 10% या 20%) हो सकती है.
  • अगर बाज़ार में तेज़ उतार-चढ़ाव चल रहा हो, जैसे कि किसी आर्थिक संकट या बड़ी खबर के समय, तो एक्सचेंज सर्किट लिमिट को कम कर सकता है. जब बाजार स्थिर होता है, तो लिमिट्स को थोड़ी छूट भी दी जा सकती है.
  • NSE और BSE जैसे अलग-अलग एक्सचेंज्स के अपने नियम और निगरानी तंत्र होते हैं, जो यह तय करते हैं कि किसी स्टॉक पर कौन-सी सर्किट लिमिट लागू होगी. NSE आमतौर पर मासिक या तिमाही आधार पर सर्किट लिमिट की समीक्षा करता है और ट्रेडिंग वॉल्यूम, प्राइस मूवमेंट के आधार पर बदलाव करता है.
  • जिन स्टॉक्स में फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) ट्रेडिंग होती है, उन पर कोई तय सर्किट लिमिट नहीं होती, बल्कि उनके लिए डायनेमिक प्राइस बैंड होता है.
  • अगर कोई स्टॉक ASM (Additional Surveillance Measure) या GSM (Graded Surveillance Measure) लिस्ट में है, तो उस पर आमतौर पर कड़ी सर्किट लिमिट (जैसे 5%) लागू की जाती है.
  • बोनस शेयर, स्टॉक स्प्लिट, या राइट्स इश्यू जैसे कॉर्पोरेट एक्शन्स के बाद, स्टॉक का भाव बदलेगा, इसलिए सर्किट लिमिट को अस्थायी तौर पर बदला जा सकता है.

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