शेयर बाजार में पैसा डूबने का है डर? तो ‘बॉन्ड्स’ हैं आपके लिए ‘संजीवनी बूटी’, बिना रिस्क पाएं ढेर सारा पैसा! लेकिन कैसे शेयर बाजार की अनिश्चितता से परेशान निवेशकों के लिए बॉन्ड्स एक बेस्ट विकल्प साबित हो सकते हैं, जो स्थिरता और नियमित रिटर्न देते हैं. हालांकि कई लोगों को ये कठिन लगते हैं, लेकिन कुछ बातें जानकर आप इन्हें आसानी से समझ सकते हैं और अपने निवेश पोर्टफोलियो को मज़बूती दे सकते हैं.

शेयर मार्केट की तेजी और उतार-चढ़ाव के बीच, कई निवेशक अक्सर एक ऐसे ऑप्शन की तलाश में रहते हैं जो स्थिरता और नियमित आय प्रदान कर सकें. यहीं पर बॉन्ड्स (Bonds) उनके लिए अहम भूमिका निभाता है. हालांकि बॉन्ड्स को अक्सर इक्विटी (शेयर) की तुलना में कठिन समझा जाता है, लेकिन इन्हें समझना उतना मुश्किल नहीं है.असल में हर निवेशक को बॉन्ड्स के बारे में 4 बुनियादी बातें हमेशा पता होनी चाहिए जिससे वो अपने पोर्टफोलियो को बैलेंस कर सकें और स्थिर रिटर्न प्राप्त कर सकें.

बॉन्ड क्या है? 

सिंपल भाषा में समझें तो बॉन्ड एक तरह का लोन होता है. जब आप बॉन्ड खरीदते हैं, तो आप सरकार, कंपनी या किसी संस्था को कुछ टाइम के लिए अपना पैसा उधार देते हैं. इसके बदले वो संस्था (जिसे Issuer कहा जाता है) आपको तय टाइम पर ब्याज देती है और मैच्योरिटी पर आपकी पूरी रकम वापस कर देती है. उदाहरण के लिए आप सरकार से ₹10,000 का बॉन्ड खरीदते हैं, तो आप सरकार को ₹10,000 उधार दे रहे हैं. सरकार आपको इस पर सालाना ब्याज देगी और एक निश्चित समय बाद आपके ₹10,000 वापस कर देगी.

बॉन्ड्स के बारे में जानने योग्य 4 बुनियादी बातें:

1. बॉन्ड के प्रमुख घटक (Key Components of a Bond)

बॉन्ड को समझने के लिए उसके तीन मुख्य भागों को जानना ज़रूरी है:

बॉन्ड से जुड़ी कुछ जरूरी बातें आसान भाषा में समझें:

अंकित मूल्य (Face Value): यह वो रकम है जो आपको बॉन्ड के पूरे होने पर वापस मिलेगी, आमतौर पर यह ₹1,000 या ₹10,000 ही होती है.

कूपन दर (Coupon Rate): यह बॉन्ड पर मिलने वाली सालाना ब्याज दर होती है, जैसे कि अगर कूपन दर 8% है और अंकित मूल्य ₹10,000 है, तो हर साल ₹800 ब्याज मिलेगा.

परिपक्वता तिथि (Maturity Date): यह वो डेट होता है जब बॉन्ड खत्म होता है और जारी करने वाली संस्था आपको पूरी रकम लौटा देती है. इसकी अवधि कुछ मंथ से लेकर 30-40 साल तक हो सकती है.

2. बॉन्ड की कीमतें और यील्ड का संबंध (Bond Prices & Yields: The Inverse Relationship)

जब एक बार बॉन्ड जारी हो जाता है, तो आप उसे  फिर सेकेंडरी मार्केट यानी बाजार में किसी और को बेच भी सकते हैं. यहां उसकी कीमतें रोज बदलती रहती हैं, और इसका सीधा असर यील्ड (रिटर्न) पर पड़ता है.हालांकि लेकिन ध्यान रहे कि बॉन्ड की कीमत और यील्ड का रिश्ता उल्टा होता है.

यील्ड क्या है?

असल में यह वो असली रिटर्न है जो आपको बॉन्ड की मौजूदा कीमत पर मिलता है.

कैसे उल्टा संबंध होता है?

तो अगर ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो नए बॉन्ड अधिक ब्याज देने लगते हैं. इससे पुराने बॉन्ड की मांग घटती है, उनकी कीमत गिरती है और यील्ड बढ़ती है, तो अगर  ब्याज दरें घटती हैं, तो पुराने बॉन्ड की मांग बढ़ जाती है क्योंकि वो ज्यादा ब्याज दे रहे होते हैं. इससे उनकी कीमत बढ़ जाती है और यील्ड घट जाती हैय

तो फिर अब अगर आप बॉन्ड को उसकी पूरी अवधि तक रखते हैं, तो आपको तय ब्याज और पूरा पैसा मिलेगा. लेकिन अगर आप उसे पहले बेचते हैं, तो हो सकता है कि आपको नुकसान या फायदा दोनों हो – ये उस समय की ब्याज दर पर निर्भर कर सकता है.

3. बॉन्ड के प्रकार और जारीकर्ता (Types of Bonds & Issuers)

वैसे बॉन्ड दो तरह के होते हैं,सरकारी और कॉर्पोरेट

सरकारी बॉन्ड-सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं और इन्हें सबसे सेफ माना जाता है, क्योंकि इनमें पैसा डूबने का रिस्क बहुत कम होता है. सरकार इन बॉन्ड्स से सड़क, बिजली जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स या बजट की कमी पूरी करने के लिए फंड जुटाती है.

कॉर्पोरेट बॉन्ड-कंपनियां अपने बिजनेस को बढ़ाने या नए प्रोजेक्ट्स के लिए पैसे जुटाने के लिए जारी करती हैं. हालांकि  इनका रिस्क कंपनी की स्थिति और उसकी क्रेडिट रेटिंग पर निर्भर करता है. जबकि अच्छी रेटिंग वाले बॉन्ड सुरक्षित होते हैं, जबकि कमजोर रेटिंग वाले बॉन्ड में जोखिम ज्यादा होता है, लेकिन मुनाफा भी ज्यादा हो सकता है.

4. बॉन्ड से जुड़े जोखिम (Risks Associated with Bonds)

बॉन्ड्स को आमतौर पर शेयरों से कम रिस्क वाला माना जाता है, लेकिन इनमें भी कुछ खतरे होते हैं, जिन्हें समझना जरूरी होता है

ब्याज दर जोखिम: तो अगर मार्केट में ब्याज दरें बढ़ जाती हैं, तो आपके पुराने बॉन्ड की कीमत गिर सकती है, ऐसे में खासकर जब आप उसे मैच्योरिटी से पहले बेचना चाहें.

क्रेडिट जोखिम: अगर बॉन्ड जारी करने वाली कंपनी या संस्था ब्याज या मूलधन टाइम पर नहीं चुकाती, तो नुकसान हो सकता है. ऐसे में सरकारी बॉन्ड में ये जोखिम कम होता है, जबकि कॉर्पोरेट बॉन्ड में रेटिंग पर निर्भर करता है.

मुद्रास्फीति जोखिम: अगर महंगाई दर बॉन्ड के रिटर्न से ज्यादा हो जाए, तो आपके पैसे की असली वैल्यू भी घट सकती है.

जोखिम: हालांकि कुछ बॉन्ड ऐसे होते हैं जिन्हें बाजार में तुरंत बेचना मुश्किल होता है, यानी ज़रूरत पर कैश में बदलना आसान नहीं होता है.


बॉन्ड्स आपके इन्वेस्टमेंट में स्थिरता और सुरक्षा लाते हैं.तो ये आपको तय समय पर नियमित आय देते हैं और शेयर बाजार की तेज़ी-गिरावट से भी बचाते हैं. ऐसे में अगर आप निवेश में कम जोखिम चाहते हैं, तो बॉन्ड एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है. फिर इन्हें समझना आसान है – बस आपको अपनी जरूरत, लक्ष्य और जोखिम उठाने की क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए. तो अगर आप इन चार बातों को समझ लें – स्थिरता, नियमित कमाई, विविधता और जोखिम – तो आप आसानी से बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं और अपने फ्यूचर को सेफ बना सकते हैं.(नोट: ये आर्टिकल सिर्फ जानकारी के लिए है और इसे किसी भी तरह से इंवेस्टमेंट सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, निवेश के लिए वित्तीय सलाहकारों से सलाह लेने का सुझाव लें)

 

Read More at www.zeebiz.com