इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला जले हुए नोट मिलने से शुरू होकर एक संघर्ष में बदल गया है, जिसमें एक मौजूदा जज सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक अनुशासनात्मक प्रणाली के खिलाफ खड़ा हो गया है और संसद में एक दुर्लभ महाभियोग प्रस्ताव की जमीन तैयार हो गई है। हालांकि, जस्टिस यशवंत वर्मा ने महाभियोग से पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने आधी जली नकदी मामले में दोषी पाए जाने वाली जांच रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है। जस्टिस वर्मा ने कहा है कि उनके खिलाफ जो कार्रवाई की गई वह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और उन्हें खुद को निर्दोष साबित करने का पूरा मौका नहीं दिया गया।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने क्या तर्क दिया?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी रिट याचिका में जस्टिस यशवंत वर्मा ने तर्क दिया है कि उनके आधिकारिक आवास के बाहरी हिस्से से नकदी की बरामदगी मात्र से उनपर दोष सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि आंतरिक जांच समिति ने नकदी के मालिक या परिसर से उसे कैसे निकाला गया, इसका पता नहीं लगाया है। उन्होंने आंतरिक समिति के निष्कर्षों पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि ये निष्कर्ष किसी ठोस सबूत के आधार पर नहीं, बल्कि कुछ अनुमानों और अटकलों के आधार पर दर्ज किए गए थे, जो पूरी तरह पुख्ता नहीं है। जस्टिस वर्मा ने यह भी कहा कि समिति ने उन्हें पर्याप्त अवसर दिए बिना पूर्व निर्धारित रिजल्ट पाने के लिए जल्दबाजी में यह प्रक्रिया अपनाई।
आंतरिक जांच रिपोर्ट को रद्द करने की मांग
जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इनहाउस जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है। यह रिपोर्ट 8 मई को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा तैयार की गई थी, जिसमें संसद से उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की गई थी। अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा ने कहा कि जांच प्रक्रिया में उनसे ही यह साबित करने को कहा गया कि वे निर्दोष हैं, जो कानून के खिलाफ है। जस्टिस वर्मा के अनुसार, आंतरिक पैनल को निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने थे:-
- आउटहाउस में नकदी कब, कैसे और किसने रखी?
- आउटहाउस में कितनी नकदी रखी गई थी?
- क्या नकदी/करेंसी असली थी या नहीं?
- आग लगने का कारण क्या था?
- क्या याचिकाकर्ता 15 मार्च 2025 को करेंसी के अवशेष को हटाने के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार था?
चूंकि रिपोर्ट में इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए गए, इसलिए इससे उनके खिलाफ कोई दोष सिद्ध नहीं हो सकता। उन्होंने तर्क दिया, सिर्फ कैश मिलने से कोई निर्णायक समाधान नहीं निकलता। यह निर्धारित करना जरूरी है कि किसकी और कितनी नकदी मिली। ये पहलू सीधे तौर पर आरोपों की गंभीरता को दर्शाते हैं। साथ ही सुनियोजित घोटाले की संभावना को, आग लगने का कारण, चाहे जानबूझकर हो या दुर्घटनावश और कथित तौर पर करेंसी को हटाने में याचिकाकर्ता की संलिप्तता भी इसमें शामिल है। 3 मई की अंतिम रिपोर्ट इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब नहीं देती।
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संसद क्या करने वाली है?
जस्टिस वर्मा के मुताबिक, जांच कमेटी ने उनसे उम्मीद की कि वे इस बात को साबित करें कि कैश आखिर उनका क्यों नहीं है। अब इस बीच देश की संसद जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन ले सकती है। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने खुद इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट या फिर हाई कोर्ट के किसी जज को अगर हटाने की बात है तो इसकी ताकत देश की संसद के पास है। केंद्रीय मंत्री के मुताबि, इस समय सभी पार्टियों से बात की जा रही है और उसके बाद ही कोई मोशन लाया जाएगा। रिजिजू के मुताबिक इस मामले में राजनीति नहीं हो सकती, सभी को साथ लेकर चलने की जरूरत है।
क्या है मामला?
बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में होली की रात 14 मार्च को आग लग गई थी। उस वक्त वे और उनकी पत्नी भोपाल में थे। घर पर उनकी बेटी और बुजुर्ग मां मौजूद थीं। आग बुझाने पहुंचे अग्निशमन कर्मियों ने एक स्टोर रूम में नकदी से भरे बोरों में आग लगी हुई देखी। इसके बाद घटनास्थल से दो वीडियो सामने आने पर मामले ने तूल पकड़ा।
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