Kanwar Yatra: हजारों साल पुरानी है कांवड़ यात्रा! जानिए क्यों शिव को जल चढ़ाने की यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवित है जितनी त्रेता युग में थी रामायण, महाभारत और शिवपुराण तक में मिलते हैं कांवड़ यात्रा के संकेत, जानिए कैसे एक लोक परंपरा बन गई दुनिया की सबसे बड़ी श्रद्धा पदयात्रा
क्या है कांवड़ यात्रा? एक व्रत, एक संकल्प और एक चलती फिरती साधना
हर साल सावन महीने में उत्तर भारत की सड़कों पर भगवा रंग की एक बाढ़ सी आ जाती है. सिर पर कांवड़, पैरों में छाले और मुख से बोल बम का घोष, ये हैं वो कांवड़िये, जो सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गंगाजल लाते हैं और अपने आराध्य शिव को अर्पित करते हैं. ये भक्ति की अनूठी यात्रा है.
पर क्या आपने कभी सोचा है कि इस यात्रा की शुरुआत कहां से हुई? क्या यह केवल हालिया श्रद्धा है या हज़ारों साल पुरानी कोई परंपरा? आइए जानते हैं.
कांवड़ यात्रा का इतिहास
1. वैदिक युग में जल से यज्ञ और शिव पूजन की शुरुआत
- वैदिक काल में अप उपहूत यज्ञ अर्थात पवित्र जल से देवताओं का अभिषेक किया जाता था.
- गंगाजल, यमुनाजल और नर्मदाजल का विशेष महत्व था.
- यज्ञ मंडप और शिवलिंग पर जल चढ़ाना तप का अंग माना जाता था.
2. रामायण में कांवड़ परंपरा के संकेत
- मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने श्रावण मास में कांवड़ उठाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया था.
- दक्षिण भारत की परंपराओं में इसे “कांदकाट्टम” कहा गया है, जिसमें भक्त दो कलशों में जल लेकर पदयात्रा करते हैं.
3. महाभारत में अर्जुन और शिव पूजन
- महाभारत (वनपर्व) में अर्जुन ने गुप्त साधना कर शिव को प्रसन्न किया और एक पवित्र जलाशय से शिव को जल चढ़ाया.
- यह कांवड़ यात्रा का आद्य रूप माना जाता है.
4. शिव महापुराण और स्कंद पुराण का उल्लेख
- शिव महापुराण में जलाभिषेक को सर्वश्रेष्ठ उपासना कहा गया है.
- स्कंद पुराण के केदारखंड में हरिद्वार और बैजनाथ धाम को जोड़ने वाली जलयात्रा का विशेष उल्लेख है.
आधुनिक युग में कैसे बनी यह विश्व की सबसे बड़ी पदयात्रा?
कालखंड | विशेषताएं |
19वीं सदी | अंग्रेजों ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर शिवालयों में चढ़ाने वाले कांवड़ियों का वर्णन किया |
1950–1980 | ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित संख्या में श्रद्धालु इस परंपरा को निभाते थे |
1990–2020 | बम-बम भोले आंदोलन के साथ यह यात्रा सामूहिक जनश्रद्धा का प्रतीक बनी |
2020 के बाद | 5 करोड़ से अधिक लोग हर वर्ष इस यात्रा में भाग लेते हैं, विशाल सुरक्षा बल, भंडारे और चिकित्सा सेवा जुड़ चुकी हैं. पूरी दुनिया में इसकी चर्चा है. |
कांवड़ श्रद्धा की संतुलित साधना
कांवड़ शब्द संस्कृत के ‘कांबट’ से निकला है, दो सिरों पर जलपात्र और मध्य में एक लाठी. यह योग की प्रतीकात्मक यात्रा भी है, जहां बाएं और दाएं जलपात्र इड़ा और पिंगला नाड़ी और लाठी सुषुम्ना मानी जाती है. इस दृष्टि से यह यात्रा केवल बाहरी नहीं, आंतरिक शुद्धि की प्रक्रिया भी है.
क्यों चढ़ाते हैं गंगाजल शिवलिंग पर?
- गंगाजल को तीनों लोकों को पवित्र करने वाला माना गया है (गंगा त्रिलोक पावनी है).
- शिव ने ही गंगा को जटाओं में धारण किया, इसलिए गंगाजल शिव को समर्पित करना उनकी कृपा का मार्ग है.
शिव पुराण के अनुसार
गंगाजलेनाभिषिक्तं यः शिवं पूजयेद् व्रती.
स याति परमं स्थानं यत्र वै शंकरो स्वयम्॥
यानि शिव को गंगाजल से अभिषेक करने वाला भक्त, शिवलोक को प्राप्त करता है.
आज की कांवड़ यात्रा क्यों है अद्वितीय?
- विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा, हर साल करोड़ों कांवड़िये इसमें श्रद्धा और भक्तिभाव से शामिल होते हैं.
- श्रद्धा, सेवा और अनुशासन का अनूठा संगम, लाखों भंडारे, निशुल्क चिकित्सा और सुरक्षा की व्यवस्था रहती है.
- सामाजिक समरसता का उत्सव, जाति, वर्ग, भाषा, क्षेत्र से परे एकता का संदेश देने वाली धार्मिक यात्रा.
कह सकते हैं कि कांवड़ यात्रा एक युगों पुराना संकल्प है, जो हर साल शिवभक्तों के संकल्प से फिर जीवित होता है. यह यात्रा केवल गंगाजल ढोने का उपक्रम नहीं, बल्कि अपने भीतर के ताप, क्रोध और विकार को ठंडा करने की चेष्टा है. यह भक्ति है, तप है, सेवा है और सबसे बढ़कर, भारतीय सनातन परंपरा की जीवित ऊर्जा है. यही शिव का दर्शन भी है.
FAQ
Q1. कांवड़ यात्रा की शुरुआत कब से मानी जाती है?
A1. इसकी जड़ें वैदिक युग और रामायण-काल तक जाती हैं, लगभग 3000 वर्ष पुरानी मानी जा सकती है.
Q2. क्या कांवड़ यात्रा में कोई तांत्रिक अर्थ भी है?
A2. हां, कई नाथ और कापालिक परंपराएं इसे शरीर, नाड़ी और साधना की प्रतीकात्मक यात्रा मानती हैं.
Q3. क्या महिलाओं को भी कांवड़ ले जाने की अनुमति है?
A3. अब कई क्षेत्रों में महिलाएं भी यह यात्रा करती हैं, हालांकि कुछ स्थानों पर सामाजिक मान्यताएं अलग हो सकती हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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