Ramayan: जिस रावण को मारा, उसी से ज्ञान लेने क्यों भेजा लक्ष्मण को? जानिए चौंकाने वाला सच

Ramayan: भगवान राम ने रावण वध के बाद लक्ष्मण को उसी रावण के पास ज्ञान लेने के लिए क्यों भेजा? क्योंकि राम जानते थे कि युद्ध भले खत्म हो गया हो, लेकिन जीवन का सबसे बड़ा युद्ध ‘अहंकार बनाम ज्ञान’ का होता है. और रावण इस युद्ध में हारने वाला सबसे बड़ा उदाहरण था. राम चाहते थे कि लक्ष्मण शत्रु से नहीं, उसकी गलती से सीखें.

जब भगवान राम ने रावण को युद्ध में मार दिया, तब रावण का शरीर युद्धभूमि में पड़ा रहा। रावण कोई साधारण राक्षस नहीं था, वह शिव भक्त, अत्यंत ज्ञानी, वेदों का पारंगत और परम शिवभक्त रावण था. उसने ब्रह्मा जी से वर प्राप्त किया था और वह नीतिशास्त्र, आयुर्वेद, संहिताओं और ज्योतिष का भी ज्ञाता था.

भगवान राम ऐसे ही नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, वे केवल शत्रु नहीं, एक समय के महान ज्ञानी का भी सम्मान करते थे, वे चाहते थे कि लक्ष्मण उस शरीर को केवल शत्रु की दृष्टि से न देखें, बल्कि उसमें छिपे हुए ज्ञान के प्रकाश को भी समझें. 

राम का आदेश
जब रावण युद्धभूमि में मरणासन्न पड़ा था, राम ने लक्ष्मण से कहा:

गुरुं प्रच्छ सुशास्त्रज्ञं रावणं परमं द्विजम्।
नान्यः पण्डिततामेति यथा रावणपुंगवः॥
(रामायण)

अर्थ-लक्ष्मण! जाओ और इस महान ब्राह्मण, वेदों के ज्ञाता रावण से कुछ सीखो. वह अब हमारे शत्रु नहीं है. वह अब एक गूढ़ ज्ञानी है, जिसकी जैसी नीतिज्ञता शायद किसी और में नहीं है.

भगवान राम के इस आदेश से लक्ष्मण चकित थे, जिस राक्षस ने सीता का हरण किया, जिस पर हमने तीर चलाए, उसी से सीखना है? रावण मृत्युशैया था, लक्ष्मण ने उससे अंतिम शिक्षा ली. रावण के तीन वाक्य जो आज भी नीति के शिखर हैं, ये वाक्य कौन से थे? जानते हैं-

लक्ष्मण ने पहले रावण के सिर की ओर जाकर प्रश्न किया. रावण मौन रहा. तब राम ने लक्ष्मण से कहा, ज्ञान लेने जा रहे हो तो ‘शत्रु’ नहीं, ‘गुरु’ मानकर उसके चरणों में बैठो.

तब लक्ष्मण नीचे बैठे , और रावण ने तीन वाक्य कहे:

  • अच्छे कार्य को कभी टालना नहीं चाहिए.
  • बुरे कार्य को जितना हो, टालते रहना चाहिए.
  • शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए.

यही तीन भूलें रावण के पतन का कारण बनीं और यही तीन सीखें, लक्ष्मण को जीवन की गहराई दिखा गईं.

रावण के साथ क्या मरा? केवल शरीर… ज्ञान नहीं!
राम जानते थे, रावण भले ही अहंकारी था, पर वह एक अद्वितीय विद्वान, नीतिज्ञ और शिवभक्त भी था. उसे मारना जरूरी था, लेकिन उसके ज्ञान को त्यागना नहीं.

यह वही दृष्टि है जो राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाती है, जहां न्याय हो, पर करुणा भी हो. जहां शत्रुता हो, पर सीखने की क्षमता भी.

आज के युग में यह शिक्षा क्यों जरूरी हैं?
आज जब विचारधाराएं लड़ रही हैं, जब ‘असहमति’ को ‘दुश्मनी’ माना जाता है, तब राम का यह दृष्टिकोण हमारे लिए सबसे बड़ा मंत्र है. यानि मत देखो कौन कह रहा है, देखो क्या कह रहा है. चाहे वह रावण ही क्यों न हो!

राम ने रावण को मारा, लेकिन रावण के अनुभवों को नहीं मारा. लक्ष्मण को उस शत्रु के पास ज्ञान लेने भेजकर उन्होंने शत्रु से भी शिक्षा लेने की संस्कृति को जन्म दिया. और यही रामायण की असली जीत है, अहंकार पर नहीं, ज्ञान के प्रति श्रद्धा पर.

FAQs
Q. क्या राम रावण को गुरु मानते थे?
नहीं, राम ने उसे गुरु नहीं कहा, लेकिन ज्ञान को व्यक्ति से अलग मानने की शिक्षा दी.

Q. क्या यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण में आता है?
इस प्रसंग का उल्लेख रामायण की परंपरागत व्याख्याओं में अधिक मिलता है, विशेष रूप से लोककथाओं और नीति शिक्षा में.

Q. रावण ने किन-किन विषयों में लक्ष्मण को ज्ञान दिया?
जीवन की समय-प्रबंधन नीति, निर्णय-विवेक और शत्रु के मूल्यांकन की त्रुटियों पर तीन सूत्र दिए.

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