महाराष्ट्र में जारी भाषा विवाद पर वीर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि सभी को अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि सभी भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है. सावरकर ने ये भी कहा कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए भाषा के मसले पर राजनीति कर रहे हैं.
जम्मू में मीडिया से बातचीत में वीर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने कहा, ”ये जो भाषा के ऊपर वॉर शुरू हुआ है, मैं कहना चाहता हूं कि 1915 में वीर सावरकर ने कहा था कि अंग्रेजों ने जात और धर्म के आधार पर हमें विभाजित किया ही है. आगे चलकर ये प्रांत की भाषा के आधार पर विभाजित करेंगे. पिछले दस सालों का इतिहास देखें तो समाज बिखर रहा है और हमारे दुश्मन देश इसका फायदा उठा रहे हैं.
#WATCH | Jammu | On Maharashtra language row, Ranjit Savarkar, Grandson of Veer Savarkar, says, “…In the last ten years, society has been disintegrating, and our enemy countries are taking advantage of this…One should feel proud of one’s language, not arrogance…All Indian… pic.twitter.com/m9nxQOjgqq
— ANI (@ANI) July 13, 2025
भाषा को लेकर दुराभिमान बहुत ज्यादा-रंजीत सावरकर
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्होंने आगे कहा, ”हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए, अहंकार नहीं. भाषा को लेकर दुराभिमान बहुत ज्यादा पैदा हो रहा है और समाज का विघटन हो रहा है, जो बहुत ही गलत बात है. भाषा का दुराभिमान बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए.”
सभी भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई-सावरकर
इसके साथ ही उन्होंने दावा करते हुए आगे कहा, ”सभी भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है. तमिल भी संस्कृत से ही उत्पन्न हुई है और संस्कृत के प्रमुख ग्रंथ सबसे पहले तमिल लिपि में लिखे गए थे. उस समय देवनागरी लिपि नहीं थी. आज जो कुछ भी संस्कृत में उपलब्ध है, वह तमिल में लिखा गया था. यह सब याद रखना चाहिए.”
ये लोग अपने फायदे के लिए राजनीति कर रहे- सावरकर
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, ”ये लोग अपने फायदे के लिए राजनीतिकरण कर रहे हैं और जो कुछ भी कर रहे हैं, उससे उनके बच्चे अपनी मातृभाषा में नहीं सीखते. अगर आपको अपनी मातृभाषा पर अभिमान है तो उस भाषा का ज्ञान बढ़ाओ. किसी भी भाषा को ज्ञान भाषा बनाओ. बच्चों के ज्ञान ग्रहण करने की शक्ति सबसे ज्यादा मातृभाषा में होती है लेकिन वो ऐसा करेंगे नहीं वे सिर्फ राजनीति करेंगे और अपने बच्चों को पढ़ने के लिए यूरोप भेजेंगे.”
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