विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट से झटका, SIR पर रोक लगाने से इनकार, वोटर ID और राशन कार्ड को लेकर दिया ये सुझाव

Supreme Court on voter list review: बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिव्यू को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसको लेकर आरजेडी सांसद मनोज झा, एडीआर और महुआ मोइत्रा समेत 10 लोगों ने याचिकाएं दायर की थीं। याचिका में निर्वाचन आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। मामले में आयोग की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी पेश हुए हैं। जबकि याचिकाकर्त्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकर नारायण ने दलीलें दीं।

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने क्या कहा?

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि हमारी मांग है कि यह सत्यापन अभियान जारी रहना चाहिए। हमने कहा है कि मतदान मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एक मौलिक अधिकार है। अगर मतदाता सूची में एक भी रोहिंग्या या एक भी घुसपैठिए का नाम है, तो उसे हटाना जरूरी है। जब तक भारत में घुसपैठिए मतदान करते रहेंगे, तब तक इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं माना जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। यह सुनवाई 28 जुलाई को होगी। दूसरी ओर, इसमें आधार, मतदाता सूची और राशन कार्ड को भी शामिल करने की मांग की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर चुनाव आयोग चाहे तो इन तीनों दस्तावेजों को स्वीकार कर सकता है। यह चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र है। इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि वह बिहार चुनाव से पहले यह प्रक्रिया पूरी कर लेगा।’

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वोटर आईडी और राशन कार्ड शामिल करने का सुझाव

बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन की प्रकिया पर कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि एसआईआर की प्रकिया जारी रहेगी। वहीं कोर्ट ने आयोग को वेरिफिकेशन दस्तावेजों की सूची में आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड शामिल करने का सुझाव दिया है। मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कोर्ट से कहा कि एसआईआर पहली बार हो रहा है। यह किसी नियम में नहीं है, किसी कानून में नहीं है। ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हो रहा है। इस पर जस्टिस धुलिया ने कहा कि चुनाव आयोग वहीं कर रहा है जो संविधान में दिया गया है। तो आप ऐसा नहीं कह सकते हैं वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। इस पर गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। मैं दिखाऊंगा कि उन्होंने किस तरह से सुरक्षा उपाय दिए हैं। इस पूरी प्रकिया का कानून में कोई आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव से ठीक पहले यह नहीं होना चाहिए था।

पढ़ें याचिकाकर्ताओं के वकील ने क्या कहा?

1. गोपाल शंकरनारायणन ने इस बात पर सवाल उठाया कि 2003 से पहले वालों केवल फ़ॉर्म भरना है। उसके बाद वालों को डॉक्यूमेंट लगाने हैं। यह बिना किसी आधार के यह भेद किया गया है। कानून इसकी अनुमति नहीं देता। इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि इसमें तो व्यावहारिकता भी जुड़ी हुई है। ECI ने यह तारीख़ इसलिए तय की क्योंकि यह कंप्यूटराइजेशन के बाद पहली बार हुआ था। तो इसमें एक रीज़निंग है।

2.गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि आधार को सभी मामलों में पहचान के लिए वैलिड डॉक्यूमेंट माना जाता है। लेकिन इसे वोटर वेरिफिकेशन में नहीं माना जा रहा है।

3.कपिल सिब्बल ने SIR की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। चुनाव आयोग कौन होता है कहने वाला कि हम सिटीजन नहीं हैं!

4. कपिल सिब्बल ने कहा कि बिहार सरकार के सर्वे से पता चलता है कि बहुत ही कम लोगों के पास वो कागज हैं जो चुनाव आयोग मांग रहा है। पासपोर्ट केवल 2.5% लोगों के पास है, मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र 14.71% के पास है। वन अधिकार प्रमाणपत्र बहुत ही कम लोगों के पास है, निवास प्रमाणपत्र और ओबीसी प्रमाणपत्र भी बहुत कम लोगों के पास हैं। जन्म प्रमाणपत्र को बाहर रखा गया है, आधार को बाहर रखा गया है, मनरेगा कार्ड को भी बाहर रखा गया है।

5. सिब्बल: केंद्र सरकार तय करेगी कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक है या नहीं। चुनाव आयोग ये तय नहीं कर सकता। BLO को ये पॉवर दिया गया है कि वो तय करे कि कोई भारत का नागरिक है या नहीं।

चुनाव आयोग की दलीलें

1.चुनाव आयोग के वकील ने दलील देते हुए कहा कि जो 11 दस्तावेज मांगे हैं उनके पीछे एक उद्देशय है। आधार कार्ड, आधार कार्ड एक्ट के तहत लाया गया। 60 फीसदी लोगों ने अब तक फॉर्म भर दिया है। अब तक आधे फॉर्म को अपलोड भी कर दिया है। करीब 5 करोड़ लोगों ने फॉर्म को भर दिया है। आधार कार्ड कभी भी नागरिकता का आधार नहीं हो सकता। ये केवल एक पहचान पत्र है।

2.जाति प्रमाणपत्र आधार कार्ड पर निर्भर नहीं है। आधार केवल पहचान पत्र है उससे ज्यादा कुछ नहीं। ये नागरिकता का आधार नहीं है।

3.कोर्ट द्वारा एक महीने के समय पर सवाल उठाने के बाद आयोग ने कहा कि चुनाव आयोग ने कहा कि यह मतदाताओं पर निर्भर करता है। अगर वो चाहेंगे तो यह प्रक्रिया नीयत समय में पूरी हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने क्या कहा?

1.सुनवाई के दौरान जजों ने कहा कि अगर आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण SIR के तहत नागरिकता की जांच करनी थी, तो ये काम आपको पहले शुरू करना था।

2.जस्टिस धूलिया ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आप जो डॉक्यूमेंट मांग रहे हैं, अगर आप मुझसे मांगते हैं, मेरे पास भी नहीं मिलेगा। आपने जो टाइमलाइन दिया है वह पर्याप्त नहीं है।

3.कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि हमें इस बात में संशय है कि आप ने जो समय सीमा तय किया है उसके भीतर आप इस प्रक्रिया को पूरा कर पाएंगे!

4.कोर्ट ने कहा कि हमें इस पर डाउट करने का कोई कारण नहीं है। फिर एक काम करिए, हम इस मामले की सुनवाई कोर्ट खुलने के बाद करेंगे। तब तक आप ड्राफ्ट लिस्ट पब्लिश नहीं करेंगे!

5.कोर्ट ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि वेरिफिकेशन की प्रकिया में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को प्रकिया में शामिल किया जाए।

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