1.5 crore children born between 2008 to 2017 are at risk of asthma

हाल ही में हुई एक रिसर्च में पूरी दुनिया में बच्चों की सेहत को लेकर एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई. रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 से 2017 के बीच जन्मे बच्चों में अस्थमा का खतरा काफी बढ़ गया है और अनुमान है कि लगभग 1.5 करोड़ बच्चों को अस्थमा हो सकता है. यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह भी दिखाता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती का सामना कर रही है.

क्या है अस्थमा और क्यों बढ़ रहा है खतरा?

अस्थमा फेफड़ों से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें सांस की नली सूज जाती हैं और सिकुड़ जाती हैं. इससे सांस लेने में दिक्कत, खांसी, सीने में जकड़न और सांस लेते समय घरघराहट जैसी आवाजें आती हैं.

बच्चों में अस्थमा के बढ़ते मामलों के पीछे कई वजहें हो सकती हैं:

  • बढ़ता वायु प्रदूषण: भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. हवा में मौजूद बारीक कण और जहरीली गैसें बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है.
  • एलर्जी और पर्यावरणीय कारक: धूल के कण, पोलेन (कण), पालतू जानवरों की रूसी, फफूंद और कुछ केमिकल बच्चों में एलर्जी पैदा करते हैं, जो अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं.
  • लाइफस्टाइल में बदलाव: बच्चों का बाहर खेलने के बजाय घर के अंदर, खासकर मोबाइल और टीवी पर ज़्यादा समय बिताना, उनकी शारीरिक गतिविधियों को कम कर रहा है इससे उनकी रोग इम्यूनिटी कमजोर होती है.
  • बदलता खानपान: जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड) का ज्यादा सेवन भी बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल रहा है, जिससे एलर्जी और अस्थमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है.
  • जेनेटिक्स: अगर माता-पिता में से किसी को अस्थमा या कोई और एलर्जी संबंधी बीमारी है, तो बच्चों में अस्थमा होने की संभावना बढ़ जाती है.

बच्चों पर अस्थमा का असर

अस्थमा सिर्फ सांस की बीमारी नहीं है, यह बच्चों के पूरे जीवन को प्रभावित कर सकती है.

  • पढ़ाई पर असर: अस्थमा के कारण बच्चों को स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ सकती है, जिससे उनकी पढ़ाई छूट जाती है. सा.स लेने में दिक्कत होने पर वे क्लास में ध्यान भी नहीं लगा पाते.
  • फिजिकल एक्टिविटीज में कमी: अस्थमा से पीड़ित बच्चे अक्सर खेलकूद या अन्य शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने से कतराते हैं, जिससे उनका शारीरिक विकास प्रभावित होता है.
  • मेंटल हेल्थ पर असर: बार-बार अस्थमा के अटैक आना या सांस लेने में दिक्कत महसूस होना बच्चों में एन्जाइटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं को भी जन्म दे सकता है.
  • अस्पताल में भर्ती होने का खतरा: अस्थमा का गंभीर अटैक होने पर बच्चों को अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ सकता है.

यह आंकड़े हमें चेतावनी दे रहे हैं कि हमें तुरंत कदम उठाने होंगे.

  • जागरूकता बढ़ाएं: माता-पिता, शिक्षकों और समाज को अस्थमा के लक्षणों और बचाव के तरीकों के बारे में जागरूक होना चाहिए.
  • प्रदूषण कम करें: सरकार और समाज दोनों को मिलकर वायु प्रदूषण कम करने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे
  • हेल्दी लाइफस्टाइल: बच्चों को पौष्टिक आहार लेने और नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि करने के लिए प्रोत्साहित करें.
  • डॉक्टर से सलाह: अगर आपके बच्चे में अस्थमा के कोई भी लक्षण दिखें, तो बिना देरी किए डॉक्टर से मिलें. सही समय पर इलाज और प्रबंधन से अस्थमा को नियंत्रित किया जा सकता है.

यह जरूरी है कि हम इस गंभीर समस्या को पहचानें और अपने बच्चों को एक स्वस्थ भविष्य देने के लिए मिलकर काम करें.

ये भी पढ़ें: सरसों का तेल मिलावटी सेहत के लिए कितना खतरनाक? इतनी बीमारियों को देता है दावत

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )

Calculate The Age Through Age Calculator

Read More at www.abplive.com