‘आइए करें वसुधा का हरित शृंगार’, हरियाली के लोकतंत्र में लगाएं ‘एक पेड़ मां के नाम’

‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु ॥’
(अथर्ववेद)

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यह उद्घोष भारतीय जीवनदर्शन का सार है। हमारी संस्कृति ने सिखाया है कि धरती केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, वह हमारी मां है। उसकी छाया में ही जीवन पनपता है। जब मां पीड़ा में हो, उसकी सांसें गर्म लपटों में घुटने लगे, तब पुत्र का धर्म है कि वह उसे राहत दे, पुनर्जीवन दे। आज जब प्रकृति वैश्विक संकटों से जूझ रही है, गर्मी बढ़ रही है, जलस्तर घट रहा है, हवाएं विषैली हो रहीं हैं, ऐसे समय मां की गोद को फिर से हराभरा करने का संकल्प आवश्यक है।

इसी भावना से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश ने ‘एक पेड़ मां के नाम 2.0’ का सद्प्रयास किया है। यह अभियान वृक्ष के माध्यम से अपनी मां के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का प्रदर्शन रहित उपक्रम है। यह विचार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि, संवेदनशीलता और प्रकृति-केंद्रित नेतृत्व का प्रतीक है।

वर्ष 2017 से 2024 के बीच प्रदेश में 210 करोड़ से अधिक पौधे रोपे जा चुके हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून की रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2024 के बीच जनसहभागिता से उत्तर प्रदेश के हरित आवरण में ऐतिहासिक रूप से पांच लाख एकड़ की वृद्धि दर्ज की गई है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित वर्ष 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य भारत की वैश्विक नेतृत्व की भावना को दर्शाता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को हरित आवरण में व्यापक वृद्धि करनी होगी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस अभियान को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तीनों स्तरों पर गहराई से जोड़ा है। हमने किसानों का आह्वान किया कि वे खेतों की मेड़ों पर पौधे लगाएं ताकि वे कार्बन क्रेडिट के अंतर्गत लाभ अर्जित करें। मुझे यह बताते हुए संतोष है कि पिछले वर्ष प्रदेश के पांच मंडलों के 25 हजार से ज्यादा किसानों को 2.80 लाख रुपये का भुगतान हुआ और इस वर्ष सात मंडलों के हजारों किसानों को 2.20 लाख रुपये की धनराशि दी जा रही है।

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आज जब वैश्विक तापमान असामान्य गति से बढ़ रहा है, हमें भावी पीढ़ियों के भविष्य के लिए जागना होगा। प्रधानमंत्री का यह विचार उसी चेतना की पुकार है। नौ जुलाई से शुरू हो रहे पौधारोपण अभियान-2025 में हम केवल पौधे नहीं लगाएंगे। हम भविष्य रोपेंगे, हम संस्कार रोपेंगे। इस बार हमारा लक्ष्य 37 करोड़ से अधिक पौधे लगाने का है।

जब एक किसान अपने खेत की मेड़ पर एक पौधा लगाएगा और कहेगा ‘यह मेरी मां के नाम है’, तब यह कार्य केवल क्रिया नहीं, एक भाव होगा। जब एक बालिका स्कूल में पौधा रोपकर अपनी मां के नाम पट्टिका लगाएगी, तब वह वृक्ष उसके जीवन का हिस्सा बन जाएगा। पौधों को रोपना आसान है, उन्हें बचाना कठिन। हमने इस बार तय किया है कि हर एक पौधे से भावनात्मक रिश्ता जोड़ा जाए।

इस वर्ष वन महोत्सव के दौरान जन्म लेने वाले हर नवजात को ‘ग्रीन गोल्ड सर्टिफिकेट’ देने की योजना है। साथ ही, एक पौधा भी भेंट किया जाएगा। पौधा उस शिशु का सहचर बनेगा। जैसे-जैसे बालक बड़ा होगा, वह पौधा भी बढ़ेगा और जब वह किशोरावस्था में पहुंचेगा, तब उसे अहसास होगा कि पर्यावरण से रिश्ता केवल पाठ्यपुस्तकों की बात नहीं, बल्कि जीवन की जिम्मेदारी है।

अभियान में हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि गांव से लेकर शहर, खेत से लेकर सचिवालय, एक्सप्रेसवे से लेकर गौशालाओं तक, हर जगह हरियाली पहुंचे। उत्तर प्रदेश सरकार का लक्ष्य केवल पौधारोपण की संख्या बढ़ाना नहीं है, बल्कि विलुप्त होती नदियों के पुनर्जीवन से लेकर प्राकृतिक जलस्रोतों के संरक्षण तक पर्यावरणीय परिकल्पना को मूर्त रूप देना है। ‘एक जनपद, एक नदी’ अभियान के अंतर्गत लखनऊ की कुकरैल, अयोध्या की तिलोदकी, प्रयागराज की लोनी, सोनभद्र की बेलन, झांसी की कनेरा, जौनपुर की पीली, कानपुर की नोन जैसी कई नदियों को पुनः जीवनदान मिला है।

जब कोई छात्र अपने स्कूल में खुद लगाया हुआ नीम का पेड़ देखेगा, तो उसमें न केवल प्रकृति का सम्मान जगेगा, बल्कि अपने श्रम की गरिमा भी महसूस होगी। हमने यह नहीं कहा कि सरकार पौधे लगाएगी। यह कहा है कि समाज पौधे लगाएगा और सरकार उसके साथ चलेगी। यही ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का पर्यावरणीय संस्करण है। यह पौधारोपण नहीं, हरियाली का लोकतंत्र है। हमारा संकल्प है कि प्रत्येक पौधे को संरक्षित किया जाए।

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हमारे पूर्वजों ने जल, जंगल और जमीन की पूजा की। यह उत्तर प्रदेश की आत्मा को उसकी जड़ों से जोड़ने का यज्ञ है। मैं प्रदेशवासियों से केवल अपील नहीं करता, बल्कि आमंत्रण देता हूं आइए, एक पौधा लगाइए- मां के नाम पर। यह पौधा आपके जीवन में नई छाया लाएगा और मां पृथ्वी के आंगन में नई मुस्कान। प्रधानमंत्री के इस संकल्प को जनांदोलन बनाएं। एक वृक्ष लगाना आसान है लेकिन जब वह वृक्ष किसी भावना से जुड़ जाए, तब वह साधारण नहीं रहता, जिम्मेदारी का प्रतीक बन जाता है।

आज अगर हम यह कर पाए तो न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरा देश और दुनिया यह कहेगी कि भारत ने फिर से प्रकृति को हृदय से लगाया है। तब एक नवजात, एक मां, एक किसान, एक छात्र, हर कोई कहेगा- ‘मैंने एक पेड़ मां के नाम लगाया है।’

लेख: (मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तर प्रदेश)

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