पटना। बिहार में शराबबंदी महज एक औपचारिकता बनकर रह गई। शराब माफिया इसकी वजह से फल—फूल रहे हैं। इसमें नेताओं, ब्यूरोक्रेटस और पुलिस का इनका संरक्षण मिल रहा है। इसके कारण ये आसानी से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। कभी कभार पुलिस अपनी सक्रियता दिखाते हुए छोटे-मोटे शराब माफियाओं को पकड़कर अपनी पीठ थपथपा लेती है लेकिन सत्ता और पुलिस से संरक्षित इन शराब माफियाओं का का ‘गंदा धंधा’ बेखौफ तरीके से चलता रहता है। सूत्रों की माने तो बिहार विधानसभ चुनाव में इन शराब माफियाओं का धंधा और ज्यादा चमकने वाला है।
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मनमाने रेट पर बेचते हैं शराब
बिहार में शराबबंदी के बाद सक्रिय हुए शराब माफियाओं की चांदी हो गई है। 2016 के बाद से कई बड़े शराब माफियाओं का जन्म हुआ, जिन्हें सत्ता, नौकरशाही और पुलिस का संरक्षण मिला हुआ है। इनके संरक्षण से ये शराब माफिया महज 9 सालों में वटवृक्ष हो गए। आज बिहार के हर कोने में इन शराब माफियाओं ने होम डिलिवरी की सुविधाएं तक कर दी हैं। कई बार विपक्षी दल इस मुद्दे को मंच से भी बोल चुके हैं। उनका साफ कहना है कि, शराब बंदी सिर्फ दिखावा है, इससे प्रदेश के राजस्व को नुकसान हो रहा है।
छोटे-मोटे शराब माफियाओं पर सिर्फ कार्रवाई
बिहार में अक्सर अवैध तरीके से शराब की सप्लाई करने वालों पर कार्रवाई की खबरें आती रहती हैं। हालांकि, ये सिर्फ छोटे—मोटे शराब तस्कर होते हैं, जिन पर कार्रवाई करके पुलिस अपनी पीठ थपथपा लेती है लेकिन बड़े शराब तस्करों को खुद ही संरक्षण दिए रहते हैं, जिसके कारण पूरे बिहार में इनका नेटवर्क स्थापित हो गया है, जो चाहते हैं कि बिहार में शराबबंदी लागू रहे और उनकी कमाई में दिन रात बढ़ती रहे।
शराब में दुकान बंद लेकिन होम डिलिवरी जारी
कुछ दिनों पहले प्रशांत किशोर ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में साफ कहा था कि, बिहार में सिर्फ शराब की दुकाने बंद हैं लेकिन शराब बंद नहीं है। इसकी होम डिलिवरी जारी है। 100 रुपये की शराब को 300 रुपये में बेचा जा रहा है। शराब की दुकानों के बंद होने से बिहार की जनता और बिहार सरकार का सलाना 20 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। ये पैस भ्रष्ट नेताओं, शराब माफियाओं और ब्यूरोक्रेट्स के पास पहुंच रहा है। उन्होंने कहा था कि, बिहार में शराब बंद होने के कारण सूखा नशा का कारोबार बढ़ गया है।
पड़ोसी राज्यों से सप्लाई होती है शराब
बिहार में शराबबंदी के बाद अवैध शराब की तस्करी बढ़ गई है। पड़ोसी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल से शराब की तस्करी होती है। तस्कर शराब को छिपाने के लिए अनोखे तरीके अपनाते हैं, जैसे तेल के टैंकर, दूध के डिब्बे, या यहां तक कि बुर्के का इस्तेमाल करते हैं। FICCI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवैध शराब का कारोबार 23,466 करोड़ रुपये का है, जिसमें बिहार का बड़ा हिस्सा है।
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जहरीली शराब की त्रासदी
बिहार में शराबबंदी के कारण जहरीली शराब से आए दिन लोगों की जान जा रही है। अक्सर बिहार में अवैध शराब पीने से लोगों की मौत सुर्खियां बनी रहती हैं। विपक्षी दल के नेता इसको लेकर सवाल भी उठाते हैं लेकिन ये शराब की अवैध तस्कीर आज भी बेखौफ तरीके से जारी है।
राजस्व का नुकसान
बिहार में 1 अप्रैल 2016 को शराबबंदी का फैसला हुआ था। इसके बाद से लगातार प्रदेश को राजस्व को नुकसान हो रहा है। शराबबंदी के बाद अनुमानित 35,000-40,000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान बताया जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े राजस्व नुकसान ने बिहार जैसे गरीब राज्य के विकास को प्रभावित किया।
लाखों की संख्या में हुई FIR
बिहार में शराबबंदी के बाद 2016 से अब तक लाखों की संख्या में FIR दर्ज हुईं। बड़ी संख्या में लोग जेल गए। पुलिस और आबकारी विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे कानून की साख को नुकसान हुआ।
चुनावों में अवैध शराब की खूब होती है खपत
सूत्रों की माने तो बिहार में चुनावों के दौरान अवैध शराब तस्कर मनमाने दामों पर अवैध शराब की सप्लाई करते हैं। चुनाव में शराब की खपत भी बढ़ जाती है। एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी मात्रा में अवैध शराब की सप्लाई की जाएगी। सबसे अहम बात ये है कि, चुनाव के दौरान शराब तस्कर नेताओं, ब्यूरोक्रेटस और पुलिस के इशारों पर अवैध शराब की सप्लाई करेंगे और वोटों को प्रभावित भी करेंगे। इसके कारण निष्पक्ष चुनाव में सत्ता संरक्षित को इसका लाभ मिलेगा।
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