सट्टेबाजी का ‘अखाड़ा’, ‘सिंगापुर कनेक्शन’- SEBI की आड़ में क्या ‘मुनाफे का खेल’ खेल रही थीं माधबी पुरी बुच? जानें पूरी कहानी

भारतीय शेयर बाजार, जो करोड़ों निवेशकों के सपनों और उनकी मेहनत की कमाई का केंद्र है, आज एक गंभीर सवाल से जूझ रहा है. क्या देश का सबसे बड़ा रेगुलेटर, SEBI, खुद एक ऐसे ‘मुनाफे के खेल’ का अखाड़ा बन गया था, जहां नियमों को ताक पर रखकर कुछ चुनिंदा लोगों को फायदा पहुंचाया गया? यह सवाल जेन स्ट्रीट स्कैंडल के बाद और भी गहरा हो गया है. यह कहानी सिर्फ एक रेगुलेटरी विफलता की नहीं, बल्कि SEBI की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के कार्यकाल, उनके फैसलों और उन पर लगे ‘निजी स्वार्थ’ के गंभीर आरोपों की है.

शायद जेन स्ट्रीट स्कैंडल का नाम सबसे ऊपर होगा. लेकिन यह कहानी सिर्फ एक अमेरिकी फर्म की तरफ से ₹4,843 करोड़ की लूट की नहीं है. सूत्रों की मानें तो यह आंकड़ा ₹1 लाख करोड़ तक भी पहुंच सकता है. यह कहानी है SEBI की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के उस कार्यकाल की, जिस पर अब सिर्फ नाकामी के नहीं, बल्कि ‘निजी स्वार्थ’ (Vested Interest) के भी गंभीर आरोप लग रहे हैं.

1. सट्टेबाजी का ‘अखाड़ा’- वीकली एक्सपायरी का ‘खेल’

किसी भी बड़े खेल को खेलने से पहले उसकी बिसात बिछाई जाती है. जेन स्ट्रीट जैसे घोटाले के लिए जमीन तैयार करने का आरोप माधबी पुरी बुच के एक बड़े फैसले पर लगता है- वीकली ऑप्शंस (Weekly Options) की शुरुआत.

कैसे बदली बाजार की तस्वीर?

पहले डेरिवेटिव्स बाजार में मंथली एक्सपायरी होती थी, जिससे सट्टेबाजी पर एक हद तक लगाम थी. लेकिन बुच के नेतृत्व में वीकली एक्सपायरी को मंजूरी दी गई. इस एक कदम ने बाजार का चरित्र ही बदल दिया. इसने हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडर्स (HFT) और बड़े सटोरियों को हर हफ्ते मुनाफा कमाने का एक खुला मैदान दे दिया. बाजार में अस्थिरता (Volatility) कई गुना बढ़ गई और रिटेल निवेशकों के लिए जोखिम आसमान छूने लगा.

F&O कम करने का ‘नाटक’

दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ उन्होंने साप्ताहिक एक्सपायरी से सट्टेबाजी का दरवाजा खोला, तो दूसरी तरफ वे सार्वजनिक मंचों पर F&O ट्रेडिंग के खतरों पर ज्ञान देती रहीं और इसे कम करने का ‘नाटक’ करती रहीं. यह एक विरोधाभासी कदम था, जिस पर विशेषज्ञ सवाल उठाते हैं. क्या यह रिटेल निवेशकों को बाजार से दूर रखने और बड़े HFT प्लेयर्स जैसे जेन स्ट्रीट के लिए मैदान साफ करने की एक सोची-समझी रणनीति थी?

2. सबसे गंभीर आरोप: ‘सिंगापुर कनेक्शन’ और निजी स्वार्थ का टकराव

जब एक रेगुलेटर के फैसलों से किसी खास समूह को फायदा हो रहा हो, तो ‘निजी हितों के टकराव’ का सवाल उठना लाजिमी है. माधबी पुरी बुच के मामले में यह आरोप बेहद गंभीर और सीधा है.

क्या है ‘सिंगापुर फैमिली रूट’ का आरोप?

सूत्रों के अनुसार, आरोप यह है कि माधबी पुरी बुच के सिंगापुर स्थित पारिवारिक रूट के माध्यम से कुछ ऐसे फंड्स में व्यक्तिगत निवेश थे, जो ठीक उसी तरह की हाई-फ्रीक्वेंसी और डेरिवेटिव्स रणनीतियों का इस्तेमाल करके भारी मुनाफा कमा रहे थे, जैसी जेन स्ट्रीट करती थी.

क्यों नहीं हुई जांच?

यही ‘निजी स्वार्थ’ शायद वह वजह थी कि उन्होंने इस मामले की जांच शुरू करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) ने उन्हें इस संदिग्ध ट्रेडिंग पैटर्न की पूरी जानकारी दी थी और लगातार फॉलो-अप भी कर रहा था. जब रेगुलेटर खुद उसी नाव में सवार हो जिससे उसे दूसरों को बचाना है, तो वह नाव को डूबने से कैसे बचा सकता है? आरोप है कि वे अपनी कुर्सी का इस्तेमाल शायद अपने निजी मुनाफे को सुरक्षित रखने के लिए कर रही थीं, जबकि रिटेल निवेशक लुट रहे थे.

3. घोटाले का असली आकार: ₹4800 Cr नहीं, ₹1 लाख Cr की लूट?

SEBI के नए नेतृत्व में की गई शुरुआती जांच में जेन स्ट्रीट का अवैध मुनाफा ₹4,843 करोड़ आंका गया है. लेकिन, यह आंकड़ा शायद उस विशाल बर्फीले पहाड़ का सिर्फ ऊपरी सिरा है जो पानी के नीचे छिपा है.

एक लाख करोड़ का अनुमान

अब सूत्रों के हवाले से जो खबरें आ रही हैं, वे और भी भयावह हैं. अनुमान है कि इस सुनियोजित लूट का असल आकार ₹1 लाख करोड़ तक हो सकता है.

सिर्फ जेन स्ट्रीट ही नहीं

यह भी पता चला है कि इस खेल में सिर्फ जेन स्ट्रीट ही अकेली खिलाड़ी नहीं थी. उससे जुड़ी 3 से 4 और सहयोगी फर्में भी इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल कर रही थीं, जो अब जांच के दायरे में हैं. यह दिखाता है कि यह कोई एक घटना नहीं, बल्कि एक संगठित तरीके से चलाया जा रहा ऑपरेशन था, जिसे SEBI की निगरानी में खुली छूट मिली हुई थी.

4. विवादों की पुरानी कुंडली: हिंडनबर्ग से कांग्रेस तक

माधबी पुरी बुच का कार्यकाल शुरू से ही विवादों और सवालों के घेरे में रहा है. जेन स्ट्रीट स्कैंडल इस कड़ी का सबसे विस्फोटक अध्याय हो सकता है, लेकिन यह पहला नहीं है.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर SEBI की रहस्यमयी चुप्पी

जब हिंडनबर्ग ने अडानी समूह पर अपनी रिपोर्ट जारी की, तो पूरी दुनिया की नजरें SEBI पर थीं. रिपोर्ट में शेल कंपनियों के जरिए फंड के हेरफेर के गंभीर आरोप थे, जिनकी जांच SEBI का काम था. लेकिन उस समय भी बुच के नेतृत्व में SEBI की जांच की गति और दिशा पर गंभीर सवाल उठे थे.

कांग्रेस के सीधे आरोप

कांग्रेस पार्टी ने भी समय-समय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके माधबी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगाए हैं. पार्टी ने न सिर्फ उनकी नीतियों पर, बल्कि उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए थे, जिससे उनकी निष्पक्षता पर शुरू से ही एक प्रश्नचिह्न लगा हुआ था.

तस्वीर बेहद चिंताजनक है

माधबी पुरी बुच के कार्यकाल पर लगे ये आरोप बेहद गंभीर हैं. वीकली एक्सपायरी को मंजूरी देना, चेतावनियों को नजरअंदाज करना, और कथित निजी हितों का टकराव- ये सभी कड़ियां मिलकर एक ऐसी तस्वीर बनाती हैं जो बेहद चिंताजनक है. नए SEBI चीफ तुहिन कांता पांडे ने कार्रवाई करके एक शुरुआत तो की है, लेकिन अब जरूरत एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की है जो इस पूरे ‘खेल’ की तह तक जाए और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में कोई रेगुलेटर अपनी कुर्सी का इस्तेमाल निजी हितों के लिए न कर सके.

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