Jane Street: घोटाला नहीं, ‘पहले से प्लान किया गया मैनिपुलेशन’ था! मिले थे वॉयलेंट एक्सपायरी के सबूत फिर भी चुप रहीं माधबी पुरी बुच

भारतीय शेयर बाजार, जिसे करोड़ों निवेशक भरोसे का मंदिर मानते हैं, उसी मंदिर की सबसे बड़ी संरक्षक, SEBI, जब खुद सवालों के घेरे में आ जाए तो क्या हो? यह कहानी है SEBI की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के कार्यकाल की, जिस पर अब सिर्फ लापरवाही के नहीं, बल्कि एक ऐसे ‘खेल’ को संरक्षण देने के आरोप लग रहे हैं, जिसमें अनुमानित तौर पर ₹1 लाख करोड़ की लूट हुई.

यह सिर्फ एक आरोप नहीं, बल्कि तारीखों और आंकड़ों के साथ सामने आए वे सबूत हैं, जो एक ‘पहले से प्लान किए गए मैनिपुलेशन’ की ओर इशारा करते हैं. और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे खेल की जानकारी SEBI को थी, लेकिन बुच फिर भी सबकुछ चुपचाप देखती रहीं.

सबूत नंबर 1: एक्सपायरी के दिन ‘वायलेंट’ मूव्स का पैटर्न

SEBI को बुच के कार्यकाल में ही एक्सपायरी के दिनों में बाजार में हो रही असामान्य और हिंसक चालों के कई सबूत मिले थे. यह कोई सामान्य उतार-चढ़ाव नहीं था, बल्कि एक सोचा-समझा पैटर्न था.


  • क्या था यह पैटर्न?

हर एक्सपायरी पर, इंप्लाइड वोलैटिलिटी (IV), जो बाजार में डर या लालच का मीटर है, अचानक 3 सिग्मा (3σ) से भी ज्यादा उछल जाती थी. आसान भाषा में कहें तो, यह एक भूकंप के झटके जैसा था. इंडेक्स में 2% तक का मूव आता था, जो अरबों रुपये का खेल करने के लिए काफी था.


  • यह निवेश नहीं, मैनिपुलेशन था

बाजार के विशेषज्ञ इसे साफ तौर पर ‘पहले से प्लान किया गया मैनिपुलेशन’ बता रहे हैं. पहले ऑप्शंस में बड़ी पोजीशन बनाई जाती थी, और फिर कैश मार्केट में खरीदारी या बिकवाली करके इंडेक्स को उस दिशा में धकेल दिया जाता था.

एक्सपायरी के कुछ उदाहरण










तारीख इंडेक्स IV में उछाल इंडेक्स में मूव
28 Nov 2024 Nifty 14.3% ➝ 27.7% 400 पॉइंट गिरावट
5 Dec 2024 Nifty 22% ➝ 37.7% 490 पॉइंट तेजी
13 Dec 2024 Sensex 9.5% ➝ 27.8% 1900 पॉइंट उछाल
22 Nov 2024 Sensex 16% ➝ 30% 1700 पॉइंट मूव
30 Dec 2024 Midselect 11.5% ➝ 32.5% 300 पॉइंट उछाल
2 Jan 2025 Nifty 12% ➝ 26% 470 पॉइंट तेजी

सबूत नंबर 2: ‘शांत’ एक्सपायरी का खेल

यह मैनिपुलेशन सिर्फ बाजार को हिलाने का ही नहीं था, बल्कि उसे जानबूझकर एक दायरे में रखने का भी था. कई मामलों में IV को दबाकर बाजार को एक बेहद संकीर्ण रेंज में रखा गया.


  • कैसे होता था यह खेल?

ऑप्शन बेचने वालों को फायदा पहुंचाने के लिए, इंडेक्स को सेटलमेंट स्ट्राइक से सिर्फ 0.10 से 1.1 पॉइंट के भीतर जानबूझकर क्लोज कराया जाता था, ताकि खरीदारों के सारे ऑप्शन जीरो हो जाएं.

21 नवंबर 2024 को निफ्टी की एक्सपायरी 42 पॉइंट की रेंज में हुई और क्लोजिंग सेटलमेंट स्ट्राइक से सिर्फ 0.1 पॉइंट दूर थी. यह संयोग नहीं हो सकता.

NSE की चेतावनियां, जो अनसुनी कर दी गईं

NSE के सूत्रों के अनुसार, एक्सचेंज जनवरी 2024 से ही इन खतरनाक और असामान्य स्पाइक्स के बारे में SEBI को लगातार आगाह कर रहा था. लेकिन ये सारी चेतावनियां बहरे कानों पर पड़ रही थीं. माधबी पुरी बुच के नेतृत्व में इन गंभीर रिपोर्टों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई.

सबसे गंभीर सवाल: क्या निजी स्वार्थ थे वजह?

जब एक रेगुलेटर इतने बड़े सबूतों और चेतावनियों को नजरअंदाज कर दे, तो सवाल उठता है – क्यों? सूत्रों के हवाले से जो आरोप सामने आ रहे हैं, वे बेहद गंभीर हैं.


  • ‘सिंगापुर कनेक्शन’ का आरोप

सूत्रों का कहना है कि माधबी पुरी बुच का सिंगापुर स्थित FPI स्ट्रक्चर के माध्यम से निवेश था. आरोप है कि वे खुद इन रणनीतियों से हो रहे मुनाफे का आनंद ले रही थीं, इसलिए उन्होंने इन रेड फ्लैग्स पर कोई ध्यान नहीं दिया. अगर यह सच है, तो यह सिर्फ एक रेगुलेटरी फेलियर नहीं, बल्कि हितों के टकराव का एक क्लासिक केस है.

नॉन-एक्सपायरी डे पर भी हेरफेर: पहली बार ‘जागा’ SEBI

यह हेरफेर सिर्फ एक्सपायरी तक सीमित नहीं था. 17 दिसंबर 2024 को, मंगलवार के दिन, निफ्टी में 350 पॉइंट का मूव आया और IV 11% से 19% उछल गया. SEBI ने खुद इसे ‘पहला मिडवीक हेराफेरी केस’ माना. शायद यह पहली बार था जब बुच का SEBI नींद से जागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और पैटर्न स्थापित हो चुका था.

Conclusion: खुलेआम मैनिपुलेशन, SEBI बना मूक दर्शक

माधबी पुरी बुच का कार्यकाल एक ऐसे समय के रूप में याद किया जाएगा जब SEBI के पास चार्ट थे, सबूत थे, पैटर्न थे, लेकिन कोई जवाबदेही नहीं थी. उनके नेतृत्व में SEBI एक मूक दर्शक बना रहा, जबकि बाजार में खुलेआम मैनिपुलेशन होता रहा. जेन स्ट्रीट स्कैंडल तो सिर्फ एक ट्रेलर हो सकता है, असल कहानी शायद ₹1 लाख करोड़ की उस लूट की है, जिसे कथित तौर पर रेगुलेटर के संरक्षण में अंजाम दिया गया. अब नए SEBI चीफ तुहिन कांता पांडे के सामने न सिर्फ बाजार को साफ करने की चुनौती है, बल्कि इस बात की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी है कि आखिर देश का सबसे बड़ा रेगुलेटर इतना असहाय क्यों और किसके लिए हो गया था.

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