US military deployment in Indian Ocean: अमेरिका ने भारत के करीब हिन्द महासागर में मौजूद डिएगो गार्सिया द्वीप पर अपने जंगी बेड़े की जबरदस्त तैनाती की है. यह जानकारी ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस विश्लेषक एमटी एंडरसन द्वारा जारी एक सैटेलाइट इमेजरी से सामने आई है. इस द्वीप पर पहले भी अमेरिका के एयरबेस मौजूद थे, लेकिन हाल की तैनाती ने इसे फिर से रणनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया है.
कौन-कौन से युद्धक विमान किए गए तैनात ?
सैटेलाइट इमेजरी से यह जानकारी सामने आई है कि डिएगो गार्सिया मिलिट्री बेस पर अमेरिकी वायुसेना ने अत्याधुनिक युद्धक विमानों की एक बड़ी तैनाती की है. यहां चार B-52 बमवर्षक विमान मौजूद हैं, जो परमाणु हथियार ले जाने और बेहद लंबी दूरी तक हमला करने में सक्षम हैं. इसके अलावा, छह F-15 लड़ाकू जेट भी तैनात किए गए हैं, जिनकी गिनती हवा में प्रभुत्व स्थापित करने और किसी भी आकस्मिक खतरे से तुरंत निपटने की क्षमता वाले विमानों में होती है. इनके साथ-साथ छह KC-135 टैंकर विमान भी इस बेस पर मौजूद हैं, जो हवाई मिशनों के दौरान हवा में ही अन्य विमानों में ईंधन भरने का कार्य करते हैं, जिससे अमेरिकी वायुसेना की मारक और संचालन क्षमता कई गुना बढ़ जाती है.
डिएगो गार्सिया क्यों है अहम?
डिएगो गार्सिया द्वीप रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है. यह भारत से लगभग 1800 किलोमीटर दक्षिण, ईरान से 4700 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और चीन से करीब 3000 मील की दूरी पर स्थित है. यह द्वीप चागोस द्वीपसमूह का हिस्सा है, जिसे 1960 के दशक में ब्रिटेन ने अमेरिका को लीज़ पर सौंपा था. अमेरिका ने 1970 के दशक में इस द्वीप पर सैन्य अड्डा स्थापित किया, ताकि सोवियत रूस की सामरिक बढ़त को चुनौती दी जा सके.
इस मिलिट्री बेस पर 3600 मीटर से ज्यादा लंबा रनवे मौजूद है, जो भारी बमवर्षक और मालवाहक विमानों के संचालन के लिए पूरी तरह सक्षम है. साथ ही यहां गहरे पानी का एक बंदरगाह भी है, जो परमाणु पनडुब्बियों और नौसैनिक जहाजों के ठहराव के लिए जरूरी सुविधाएं प्रदान करता है.
ईरान और चीन पर एक साथ अमेरिकी नजर
डिएगो गार्सिया पर की गई यह सैन्य तैनाती अमेरिका की दोहरी रणनीति को दर्शाता है. एक ओर यह ईरान को लेकर गहराते तनाव का संकेत है. हाल ही में इजरायल और ईरान के बीच हुए संघर्ष के बाद भले ही युद्धविराम हो गया हो, लेकिन मिडिल ईस्ट में हालात अभी भी बेहद संवेदनशील बने हुए हैं. अमेरिका को आशंका है कि ईरान फिर से परमाणु संवर्धन तेज कर सकता है और इसी कारण कूटनीतिक वार्ताएं ठप हो गई हैं. डिएगो गार्सिया से अमेरिका ईरान पर लंबे रेंज से हमला करने की सैन्य क्षमता पहले भी प्रदर्शित कर चुका है और इस बार भी संभावित प्रतिक्रिया के लिए यह स्थान पूरी तरह तैयार किया गया है.
दूसरी ओर, चीन के साथ बढ़ते तनाव को लेकर भी अमेरिका की चिंता गहराई है. हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों और दक्षिण चीन सागर में उसके दावे लगातार टकराव की स्थिति पैदा कर रहे हैं. अमेरिका के सहयोगी देशों जैसे जापान, फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया के साथ उसके सैन्य अभ्यासों और समुद्री सुरक्षा साझेदारियों को देखते हुए, चीन को काबू में रखने के लिए अमेरिका को एक स्थायी सामरिक ठिकाने की जरूरत थी. डिएगो गार्सिया इसी जरूरत को पूरा करता है.
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