Muharram 2025 Why do Shia Muslims hurt themselves Know reason

Shia Muslims hurt Muharram: इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक इस्लाम के 4 पवित्र महीनों में से एक महीना मुहर्रम का होता है. इस्लाम में मुहर्रम को नए साल की शुरुआत भी कहा जाता है. मुहर्रम का 10वां दिन आशूरा, मुसलमानों के लिए बेहद खास होता है.

यौम-ए-आशूरा के दिन शिया मुस्लिम समुदाय के लोग शोक मनाते हैं. इस दिन जगह-जगह जुलूस के साथ ताजिया भी निकाला जाता है. जुलूस में शामिल लोग अपने शरीर को चोट पहुंचाते हैं. हाथ सीने पर मारते हैं. कुछ जगहों पर तो चाबुक और ब्लेड जैसी वस्तुओं से खुद पर वार भी करते हैं. लेकिन ऐसा करने का क्या कारण है? आइए जानते हैं.

जानिए इसके पीछे का कारण 
इस्लाम में यह परंपरा इस्लाम के तीसरे इमाम जिन्हें हजरत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाता है, उनसे जुड़ी हुई है. सन् 680 ई. में कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों को यजीद की फौज ने चारों और से घेर लिया था.

इमाम हुसैन ने अन्याय और तानाशाही के खिलाफ युद्ध में अपने पूरे परिवार के साथ शहादत दी थी. इस घटना को इस्लाम के इतिहास में बेहद क्रूर और दर्दनाक घटना मानी जाती है.

शरीर पर चोट पहुंचाना श्रद्धांजलि देने का प्रतिकात्मक तरीका
मुहर्रम के दौरान शिया मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मातम मनाते है. अपने शरीर पर चोट पहुंचाकर मुस्लिम समुदाय के लोग इसे श्रद्धांजलि देने का प्रतीकात्मक तरीका मानते हैं. इसे ‘जंजीर जनी’ या ‘सीना जनी’ भी कहा जाता है.

यह परंपरा दिखाती है कि वे इमाम हुसैन के दर्द और बलिदान को न केवल याद करते हैं, बल्कि उसे अपने शरीर और आत्मा में भी महसूस करते हैं. इसलिए मुहर्रम के दौरान खुद को चोट पहुंचाना मात्र शारीरिक दर्द नहीं, बल्कि एक गहरी भावनात्मक आस्था भी है.

कुछ मुस्लिम विद्वान इस परंपरा का करते हैं विरोध
हालांकि कुछ मुस्लिम विद्वान इस तरह की शारीरिक हानि वाली परंपराओं का विरोध करते हैं. वे तर्क देते हुए कहते हैं कि इमाम हुसैन की याद को सामाजिक सेवा, शांति और दुआ के जरिए भी जिंदा रखा जा सकता हैं.

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