4 dead bodies not burnt in Kashi: काशी जिसे लोग मोक्ष की नगरी भी कहते हैं. काशी को मौत के बाद अंत नहीं बल्कि आत्मा का मोक्ष द्वारा कहा जाता है. मान्यताओं के मुताबिक काशी में जिस भी व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है, उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है. यही कारण है हर कोई अपने अंतिम क्षण में काशी आने की कामना करता है.
काशी की मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर दिन रात लगातार चिताएं जलती ही रहती हैं. लेकिन धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक काशी में 4 तरह के मृत शरीर को नहीं जलाया जाता है. इन चार तरह के शरीर का अंतिम संस्कार करने का तरीका भी अलग होता है. जानते हैं इसके बारे में.
साधु संत के शव को नहीं दी जाती चिता की आग
काशी या अन्य किसी भी जगहों पर साधु-संतों को कभी जलाया नहीं जाता है. ऐसे साधु संत जिन्होंने जीवन भर कठिन तपस्या करके आध्यात्म की दैवीय शक्ति को प्राप्त किया, उन्हें जलाने की जगह जल समाधि या जमीन में दफनाया जाता है. काशी में किसी भी साधु संत के शरीर को नहीं जलाया जाता है.
काशी में कभी भी 12 साल से कम बच्चे के मृत शरीर को नहीं जलाया जाता है. क्योंकि 12 वर्ष से छोटे बच्चे भगवान का स्वरूप होते हैं. ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि छोटे बच्चे पाप और कर्म के बंधन से मुक्त होते हैं.
गर्भवती महिलाओं को भी नहीं होता अंतिम संस्कार
तीसरा काशी में कभी भी गर्भवती महिला को जलाया नहीं जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पेट में बच्चा होता है.
गर्भवती महिला को जलाने से उसे गर्भ में रसायन के कारण पेट फटने का खतरा रहता है. इसी वजह से गर्भवती महिलाओं को जलाया नहीं दफनाया जाता है.
जानकारी के अनुसार जिस व्यक्ति को सांप ने काटा हो, उसके मृत शरीर को काशी में नहीं जलाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि सांप काटने के बाद मनुष्य का दिमाग 21 दिन तक सक्रिय रहता है.
इस तरह के मृत शरीर को केले के पेड़ में बांध घर का नाम पता लिखकर पानी में बहा दिया जाता है.
अगर 21 दिन के अंदर शरीर किसी तांत्रिक को मिल जाए तो वो अपनी तंत्र विद्या से दुबारा मृत शरीर को जिंदा कर सकता है.
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