Condemnation in Garuda Purana: निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय, कबीर दास जी का ये दोहा उन लोगों पर सटीक बैठता है, जो हर समय दूसरों की निंदा करते हैं. निंदा यानी किसी का मजाक उड़ाना या अपमानित करना. हिंदू धर्म में निंदा करने वाला और किसी की निंदा सुनने वाला दोनों ही आपराधिक श्रेणी में आते हैं.
गरुड़ पुराण के अनुसार किसी की निंदा करना एक गंभीर अधर्म का काम है, ऐसा करने वाले को परलोक में कठोर से कठोर सजा मिलती है. गरुड़ पुराण के मुताबिक किसी की निंदा या अपमान करना मानसिक और वाणी के पापों में गिना जाता है.
गरुड़ पुराण में निंदा को लेकर क्या जिक्र है?
गरुड़ पुराण के पूर्व खंड, अध्याय 41 के मुताबिक “यो निन्दति परं नित्यं स्वयमेव गुणं वदेत्। नरकं स विशेषेण याति कालमकारयन्॥” जो व्यक्ति दूसरों की निंदा करता है और खुद को महान बताता है, ऐसा व्यक्ति पाप का भागीदारी होता है.
मरने के बाद उसका नर्क जाना तय है. नरक में निंदा करने वाले व्यक्ति की जीभ काटी जाती है. उसे गर्म लोहे की छड़ से सजा दी जाती है.
गरुड़ पुराण में साफ साफ लिखा है कि, निंदा करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में मानसिक तनाव, अकेलापन और समाज में घूलने मिलने में कतराता है. ऐसा व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र और पारिवारिक जीवन में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है.
निंदा को लेकर देवराहा बाबा के प्रिय शिष्य ने क्या कहा?
ब्रह्मऋषि योगीसम्राट श्री श्री देवराहा बाबा सरकार जी के सबसे प्रिय शिष्य ब्रह्मऋषि देवदास जी महराज ने निंदा करने वालों के बारे में कहा कि, ‘निंदा करने वाला व्यक्ति जिसकी निंदा करता है, उसके मल को चाटता है.
आप जिसकी भी निंदा करते हैं, उसके अवगुण और पाप आपको लगते हैं. निंदा करने से आपको हानि होती है.’
शास्त्रों में लिखा है कि निंदा ऐसा जानिए सब पापन के मूल, जो करे निंदा किसी का चुबे हृदय में शूल. जो व्यक्ति किसी की निंदा करता है, वो तेजहीन और ओजहीन हो जाता है. उससे धन की लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होती है.
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